अमेरिका में मंदी की आहट: दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका इन दिनों मंदी के खतरे की दहलीज़ पर खड़ी है।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञों और फाइनेंशियल एजेंसियों के आकलन के मुताबिक अमेरिका की अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लक्षण साफ दिखाई दे रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का दावा है कि मंदी ने अमेरिका में दस्तक भी दे दी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस वैश्विक आर्थिक संकट का भारत पर क्या असर होगा? क्या भारतीय अर्थव्यवस्था भी इस तुफान की चपेट में आ जाएगी? इसी बीच दुनिया की प्रमुख इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विस कंपनी गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें भारत और अमेरिका की अर्थव्यवस्था के बीच संबंध, मंदी का असर और शेयर बाजारों की चाल को लेकर अहम जानकारियां दी गई हैं।
इस रिपोर्ट में कई ऐसी बातें सामने आई हैं जो भारतीय निवेशकों और अर्थव्यवस्था को लेकर राहत देने वाली हैं, लेकिन कुछ चेतावनियां भी दी गई हैं जिनका नज़रअंदाज़ करना खतरनाक साबित हो सकता है।
अमेरिका में मंदी की आहट: अमेरिका में मंदी भारत पर असर क्यों कम होगा?
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की संभावित मंदी का भारत की जीडीपी पर सीधा प्रभाव बेहद सीमित रहेगा। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत का अमेरिकी बाजार पर निर्भरता तुलनात्मक रूप से कम है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत का कुल निर्यात उसकी जीडीपी का केवल 12 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 19 प्रतिशत और वियतनाम जैसे देश में 82 प्रतिशत तक है।
इसका मतलब यह हुआ कि यदि अमेरिका की आर्थिक गति धीमी होती है और वहां मंदी आती है, तो इसका सीधा और गहरा असर भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा। भारत की घरेलू मांग और उपभोग क्षमता इतनी मजबूत है कि वह किसी हद तक वैश्विक उतार-चढ़ाव के झटकों को झेल सके।
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पिछले 20 वर्षों के आंकड़े क्या कहते हैं?
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट ने पिछले 20 वर्षों के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया है। इसमें कहा गया है कि भारत की जीडीपी ग्रोथ दर पर वैश्विक आर्थिक घटनाओं का प्रभाव बहुत कम पड़ा है। केवल दो मौके ऐसे रहे जब भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी की चपेट में आई —
- 2008 की ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस (GFC) के दौरान, जब दुनिया भर के स्टॉक मार्केट और बैंकिंग सेक्टर लड़खड़ा गए थे।
- 2019-20 की कोविड-19 महामारी, जिसने पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया था।
इन दोनों मौकों को छोड़कर भारत की जीडीपी ग्रोथ दर पर वैश्विक परिस्थितियों का खास असर नहीं पड़ा है। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की घरेलू बाजार संरचना और खपत आधारित मॉडल उसे बाहरी आर्थिक संकटों से बचाने में कारगर है।
शेयर बाजार पर अमेरिकी मंदी का तगड़ा असर
हालांकि, भारतीय शेयर बाजार की स्थिति कुछ अलग है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत का शेयर बाजार अमेरिका के बाजार से गहराई से जुड़ा हुआ है। खासतौर पर Nifty 50 इंडेक्स (भारत की 50 सबसे बड़ी कंपनियों का इंडेक्स) और S&P 500 कंपोजिट इंडेक्स (अमेरिका की 500 बड़ी कंपनियों का इंडेक्स) के बीच पिछले एक दशक में जबरदस्त समानता देखी गई है।
2005 से 2015 तक दोनों इंडेक्स की चाल में कुछ अंतर था। लेकिन 2015 के बाद दोनों इंडेक्स में तेजी से समानता आने लगी।
कोरोना महामारी की शुरुआत यानी 2020 की शुरुआत में दोनों बाजारों में भारी गिरावट देखी गई। इसके बाद बाजारों में जोरदार रिकवरी हुई और 2021 के अंत तक दोनों इंडेक्स नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए।
इसलिए, अगर अमेरिका में मंदी गहराती है और वहां का शेयर बाजार गिरता है, तो उसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ेगा।
कुछ सेक्टर्स पर पड़ सकता है असर
गोल्डमैन सैक्स ने इस रिपोर्ट में यह भी कहा है कि भले ही भारत की जीडीपी पर अमेरिका की मंदी का असर कम हो, लेकिन कुछ खास सेक्टर्स प्रभावित हो सकते हैं।
विशेष रूप से आईटी सेक्टर, टेक स्टार्टअप्स, मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट यूनिट्स जैसी कंपनियां जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं, उनकी आय और ग्रोथ पर मंदी का सीधा प्रभाव पड़ेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक आईटी सर्विसेज और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) कंपनियां अमेरिका में मंदी के चलते खर्च में कटौती और प्रोजेक्ट्स में देरी से प्रभावित हो सकती हैं।
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कंपनियों के वैल्यूएशन में कटौती
रिपोर्ट का सबसे अहम और चेतावनी भरा हिस्सा यह है कि गोल्डमैन सैक्स ने कुछ भारतीय कंपनियों के वैल्यूएशन मल्टीपल्स में कटौती की है।
वैल्यूएशन मल्टीपल का मतलब होता है कि किसी कंपनी का शेयर उसकी कमाई के अनुपात में कितना महंगा या सस्ता है।
गोल्डमैन सैक्स ने बताया कि मंदी और वैश्विक आर्थिक सुस्ती के चलते कई कंपनियों के लिए लागत और मुनाफा बनाए रखना मुश्किल होगा। ऐसे में कुछ कंपनियों का शेयर वैल्यू घटाया गया है, क्योंकि भविष्य में उनका प्रदर्शन उम्मीद से कम रह सकता है।
भारत के लिए दी गई अहम सलाह
गोल्डमैन सैक्स ने भारतीय नीति निर्माताओं और कंपनियों को सलाह दी है कि वे घरेलू मांग को मजबूत बनाए रखें, खर्च को नियंत्रित करें और लागत प्रबंधन पर ध्यान दें।
साथ ही निवेशकों को भी सलाह दी गई है कि वे बाजार में निवेश के समय वैश्विक हालात और अमेरिकी बाजार की चाल पर नज़र रखें।
लॉन्ग टर्म निवेशक को घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन शॉर्ट टर्म ट्रेडर्स के लिए जोखिम बना रहेगा।
भारत का भरोसेमंद आर्थिक मॉडल
कुल मिलाकर गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट भारत के लिए राहत भरी है। अमेरिकी मंदी का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं होगा।
भारत की मजबूत घरेलू मांग, उपभोग आधारित जीडीपी संरचना और अपेक्षाकृत कम निर्यात निर्भरता उसे इस संकट से काफी हद तक बचा सकती है।
हालांकि, शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव बने रहेंगे और कुछ सेक्टर्स को सावधानी बरतनी होगी। निवेशकों और नीति निर्माताओं को सतर्क रहने की जरूरत है।
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त खुद को और ज्यादा आत्मनिर्भर बनाने का है।