POCSO Act: कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि शराब के नशे में एक नाबालिग लड़की की छाती छूने की कोशिश को POCSO Act (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत “बलात्कार के प्रयास” के दायरे में नहीं रखा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस घटना में कोई भी “प्रवेश (penetration)” या “प्रवेश का प्रयास” नहीं किया गया था, इसलिए इसे बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। हालाँकि, अदालत ने माना कि यह कृत्य गंभीर यौन उत्पीड़न के प्रयास की श्रेणी में जरूर आ सकता है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी और न्यायमूर्ति बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने सुनाया, जिन्होंने इस मामले में आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार किया।
POCSO Act: हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आए अहम तथ्य
मामला Zomangaih @ Zohmangaiha बनाम पश्चिम बंगाल राज्य से जुड़ा हुआ है।
आरोप यह था कि आरोपी ने शराब के नशे में एक नाबालिग लड़की पर हमला किया और उसकी छाती छूने की कोशिश की थी। घटना के बाद आरोपी के खिलाफ POCSO Act और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सुनवाई के दौरान, पीड़िता ने अपने बयान में बताया कि आरोपी शराब के नशे में था और उसने जबरदस्ती उसकी छाती छूने की कोशिश की थी। हालांकि, पीड़िता ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी ने उसके साथ बलात्कार नहीं किया और न ही कोई “प्रवेश का प्रयास” किया।
मेडिकल रिपोर्ट और सबूत
कोर्ट ने ध्यान दिया कि मेडिकल रिपोर्ट में भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं था जो यह दिखाए कि पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ था या बलात्कार का प्रयास किया गया था।
न्यायालय ने यह माना कि:
“पीड़िता के बयान और मेडिकल साक्ष्य दोनों यह नहीं दर्शाते कि आरोपी ने बलात्कार किया या उसका प्रयास किया। आरोपी ने केवल पीड़िता की छाती छूने की कोशिश की, जो गंभीर यौन उत्पीड़न के प्रयास के अंतर्गत आ सकता है, लेकिन बलात्कार के प्रयास के अंतर्गत नहीं।”
आरोपी पर लगे आरोप
आरोपी पर निम्नलिखित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे:
- POCSO Act की धारा 10: गंभीर यौन उत्पीड़न का प्रयास।
- IPC की धारा 448: आपराधिक रूप से घर में घुसना।
- IPC की धारा 376(2)(c): बलात्कार (विशेष परिस्थितियों में)।
- IPC की धारा 511: अपराध का प्रयास।
निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए 12 वर्ष के कठोर कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
आरोपी की दलीलें
अपनी जमानत याचिका में आरोपी ने कहा कि:
- उसे झूठे आरोप में फंसाया गया है।
- उपलब्ध साक्ष्य बलात्कार के प्रयास का समर्थन नहीं करते।
- बलात्कार के लिए आवश्यक तत्व — यानी “प्रवेश” या “प्रवेश का प्रयास” — का इस मामले में अभाव है।
- वह पहले ही करीब 2 साल 4 महीने से जेल में बंद है।
- उसकी अपील पर जल्द सुनवाई की कोई संभावना नहीं है।
शरीर को छूना और बलात्कार के प्रयास में अंतर
कोर्ट ने कहा कि बलात्कार का प्रयास तभी माना जा सकता है जब यह प्रमाणित हो कि आरोपी ने पीड़िता के शरीर में प्रवेश करने या प्रवेश का प्रयास करने की कोशिश की थी। महज किसी अंग को छूना, हालांकि अत्यंत निंदनीय और अपराध की श्रेणी में आता है, फिर भी उसे बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के बराबर नहीं रखा जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि:
“POCSO Act के तहत, गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए भी सख्त सजा का प्रावधान है। लेकिन इसे बलात्कार के प्रयास के बराबर नहीं माना जा सकता।”
इस आधार पर, कोर्ट ने आरोपी को यह मानते हुए कि उसके खिलाफ बलात्कार का प्रयास नहीं बल्कि गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला बनता है, जमानत देने का आदेश दिया।
nishikant dubey on supreme court
जमानत के आदेश
कोर्ट ने आरोपी को निम्न शर्तों पर जमानत प्रदान की:
- आरोपी को एक व्यक्तिगत बांड और दो जमानतदारों के साथ जमानत दी जाएगी।
- उसे कोर्ट द्वारा तय की गई हर पेशी पर उपस्थित होना होगा।
- वह पीड़िता या उसके परिवार से किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं करेगा।
- वह इस अवधि में किसी भी अन्य अपराध में संलिप्त नहीं होगा।
फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह निर्णय कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- बलात्कार और यौन उत्पीड़न के बीच अंतर:
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बलात्कार के प्रयास और गंभीर यौन उत्पीड़न के प्रयास के बीच एक स्पष्ट रेखा है, जिसे हर मामले में समझना जरूरी है। - POCSO Act की व्याख्या:
अदालत ने POCSO Act की धाराओं की सटीक व्याख्या की और यह बताया कि कानून के तहत किस स्थिति को किस अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है। - झूठे आरोपों से बचाव:
अदालत ने यह भी संकेत दिया कि किसी व्यक्ति को बिना पर्याप्त सबूत के बलात्कार के प्रयास जैसे गंभीर आरोपों में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। - लंबी अवधि तक विचाराधीन कैद:
आरोपी पहले ही दो साल से अधिक समय तक जेल में था और अपील की सुनवाई लंबित थी। इस आधार पर भी उसे जमानत दी गई।
बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में उचित प्रक्रिया का महत्व
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक विवेक, सबूतों के विश्लेषण और कानून की सही व्याख्या का उदाहरण है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यौन अपराधों के मामलों में सबूतों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक है ताकि न्याय सही तरीके से हो सके।
बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के मामले में भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अभियुक्त को उचित प्रक्रिया के तहत सजा मिले और अगर आरोप अत्यधिक या साक्ष्यों से मेल नहीं खाते हैं, तो उस पर उचित कानूनी कार्यवाही हो।
यह फैसला इस बात का भी संदेश देता है कि अदालतें किसी भी आरोप पर केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि कानून और सबूतों के आधार पर निर्णय लेती हैं।
फिलहाल, आरोपी को जमानत मिल गई है, लेकिन अंतिम निर्णय अपील के निपटारे के बाद ही होगा। अदालत ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में सुनवाई के दौरान नए सबूत सामने आते हैं, तो मामला फिर से खुल सकता है।