खंडपीठ का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
यह याचिका लुधियाना के भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव समिति के अध्यक्ष और इस्कॉन मंदिर संचालन बोर्ड के उपाध्यक्ष राजेश ढांडा द्वारा दायर की गई थी। याचिका में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों पर लक्षित हिंसा से हिंदुओं की सुरक्षा की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला विदेश नीति से संबंधित है और भारतीय न्यायपालिका दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
खंडपीठ का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी मामलों में हस्तक्षेप से किया इनकार
सुनवाई के दौरान, सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा: “यह विदेशी मामलों से संबंधित है। यह न्यायालय दूसरे देश के मामलों पर कैसे टिप्पणी कर सकता है? यह बहुत अजीब होगा अगर यह न्यायालय दूसरे देश, वह भी पड़ोसी देश में हस्तक्षेप करे!”
खंडपीठ ने सुझाव दिया कि यह मामला सरकार के माध्यम से उचित चैनलों के तहत उठाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत के परामर्श के बाद जनहित याचिका वापस लेने का निर्णय लिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने याचिका वापस लेने की दी अनुमति
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा: “याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी वर्तमान रिट याचिका को वापस लेने की अनुमति चाहते हैं तथा कहते हैं कि याचिकाकर्ता सरकार से संपर्क कर सकता है। उपर्युक्त बातों को दर्ज करते हुए रिट याचिका को वापस लिया गया मानकर खारिज किया जाता है।”
याचिका में की गई मांगें
याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित प्रमुख मांगें रखी थीं:
- बांग्लादेश से भागे हिंदुओं के लिए नागरिकता आवेदन की समय-सीमा बढ़ाई जाए – याचिका में यह अनुरोध किया गया कि जो हिंदू बांग्लादेश में हिंसा के कारण भारत आए हैं, उन्हें नागरिकता प्राप्त करने के लिए अधिक समय दिया जाए।
- विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि वे बांग्लादेश में स्थित भारतीय उच्चायोग के माध्यम से हिंदू अल्पसंख्यकों को सहायता प्रदान करें।
- बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत वैश्विक दबाव बनाया जाए।
सरकार की भूमिका पर अदालत का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर निर्णय लेना सरकार का कार्यक्षेत्र है। भारत सरकार की विदेश नीति और राजनयिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता की संभावित अगली कार्रवाई
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को विचार करने से इनकार कर दिया है, याचिकाकर्ता के पास कुछ विकल्प बचते हैं:
- वे भारत सरकार से इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के लिए अनुरोध कर सकते हैं।
- वे संसद और अन्य राजनीतिक माध्यमों से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार पर दबाव बना सकते हैं।
- वे बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से संपर्क कर सकते हैं।
विदेशी मामलों में हस्तक्षेप से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
यह मामला भारतीय न्यायपालिका की सीमाओं को दर्शाता है, जहां दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से परहेज किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत की विदेश नीति और न्यायिक मर्यादाओं को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, यह मामला हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर भी प्रस्तुत करता है।
केस टाइटल: राजेश ढांडा बनाम भारत संघ विदेश मंत्रालय तथा अन्य | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 153/2025
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