गणेश चतुर्थी 2024: गणपति उपासना स्व जागरण की एक तकनीकी और वैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह केवल बाहरी ढोल-नगाड़ों या पंडालों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असली उद्देश्य हमारी समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण पाकर ध्यान के माध्यम से अपने भीतर ईश्वरीय तत्व को पहचानना और मोक्ष की ओर अग्रसर होना है। गणपति, जिन्हें हम बाहरी पंडालों में विराजित देखते हैं, वास्तव में हमारे अंतर्मन में, हमारे मूलाधार चक्र में स्थाई रूप से विराजमान होते हैं।
मूलाधार चक्र हमारे शरीर का प्रथम चक्र माना जाता है, और गणपति का आवास भी यहीं है। इस चक्र के जागरण से हम अपने जीवन में स्थिरता और शक्ति का अनुभव करते हैं। गणपति स्थापना का यही आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है, जहां हम बाहरी आडंबरों से हटकर, अपने भीतर के गणपति को जागृत करने का प्रयास करते हैं। गणेश पूजन का वास्तविक स्वरूप यही है कि हम अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानें, उसे नियंत्रित करें और उसे सही दिशा में मोड़कर आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ें।
इस प्रक्रिया के माध्यम से हम जीवन में संतुलन, स्थिरता और समृद्धि को आमंत्रित करते हैं। गणपति स्थापना का यही महत्वपूर्ण उद्देश्य है, जो हमारे जीवन को खुशियों से भर देता है।
गणेश चतुर्थी 2024: गणपति उपासना: शत्रुओं पर विजय प्राप्ति का तांत्रिक उपाय
महागणाधिपति गणेश, समस्त इंद्रियों के अधिपति और आदिदेव के रूप में पूजे जाते हैं। वे जल तत्व के प्रतीक हैं और उन्हें गणपति तंत्र में विशेष स्थान प्राप्त है। उनकी उपासना के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक और बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। विशेष रूप से, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक का समय गणपति उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय के दौरान, गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके विशेष मंत्रों का जाप और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाता है।
गणपति तंत्र के अनुसार, यदि किसी ने अपने जीवन में दूसरों की आलोचना और निंदा करके अपने यश, कीर्ति, मान और प्रतिष्ठा का नाश कर लिया हो, और इससे शत्रुओं ने उसके जीवन को कष्टकारी बना दिया हो, तो भाद्रपद की चतुर्थी का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन, अंगुष्ठ आकार के हल्दी से बने गणपति की स्थापना की जाती है और उनके समक्ष चतुर्दशी तक “ग्लौं” बीज मंत्र का जाप किया जाता है।
इस जाप की संख्या कम से कम सवा लाख होनी चाहिए, लेकिन कलियुग में यह संख्या चार गुना बढ़ाकर कम से कम पाँच लाख की जाती है। ऐसा करने से व्यक्ति को अपने आंतरिक और बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
गणेश तंत्र में कहा गया है कि गणपति की उपासना से पूर्व के नकारात्मक कर्मों से उत्पन्न दुःख, दारिद्रय, अभाव और कष्टों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति को इन समस्याओं से संघर्ष करने की शक्ति प्राप्त करनी हो, तो उसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक गणपति की प्रतिमा स्थापित करके उसकी उपासना करनी चाहिए। शारदातिलकम, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव और अन्य प्राचीन तंत्र शास्त्रों में इस प्रकार की उपासना का विशेष उल्लेख मिलता है।
गणेश चतुर्थी 2024: भाद्रपद मास में गणपति की उपासना के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ
गणपति की प्रतिमा की स्थापना के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद की चतुर्थी को रक्त चंदन या सितभानु (सफेद आक) के गणपति की अंगुष्ठ आकार की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा की स्थापना के बाद, चतुर्दशी तक नित्य अष्ट मातृकाओं (ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुंडा एवं रमा) तथा दस दिशाओं में वक्रतुंड, एक दंष्ट्र, लंबोदर, विकट, धूम्रवर्ण, विघ्न, गजानन, विनायक, गणपति, एवं हस्तिदन्त का पूजन किया जाता है।
गणपति उपासना के दौरान मंत्र जाप का भी विशेष महत्व होता है। मंत्रों के जाप से व्यक्ति की आंतरिक शक्ति बढ़ती है और उसे अपने जीवन में आ रही समस्याओं से निपटने की शक्ति मिलती है। इसके अलावा, गणपति की उपासना से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
गणपति उपासना के साथ-साथ तिल और घृत की आहुति भी दी जाती है। यह आहुति व्यक्ति के जीवन में उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद लाती है। गणपति की उपासना के दौरान इस प्रकार के अनुष्ठानों का पालन करना व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करता है और उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
इस प्रकार, गणपति की उपासना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक तकनीकी और वैज्ञानिक प्रक्रिया भी है, जो व्यक्ति को आत्मिक जागरूकता की ओर ले जाती है। गणपति तंत्र के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, स्थिरता और समृद्धि प्राप्त कर सकता है। गणपति उपासना का यही वास्तविक उद्देश्य है, जो व्यक्ति के जीवन को हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्त करके उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
गणेश चतुर्थी 2024: गणपति बीज मंत्र और उनके रहस्य
गणपति उपासना को भारतीय संस्कृति और धर्म में अत्यधिक महत्व प्राप्त है। यह उपासना केवल धार्मिक आस्था का ही हिस्सा नहीं है, बल्कि इसमें गहरे तांत्रिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपे हुए हैं। गणपति उपासना के विभिन्न रूप और उनकी विधियाँ प्राचीन ग्रंथों और तंत्र शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं। इन विधियों के पालन से साधक अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और संपन्नता तथा सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
गणपति उपासना में मंत्रों का अत्यधिक महत्व है। मंत्र साधना का एक ऐसा पहलू है जिसे व्यक्तिगत रूप से किसी समर्थ गुरु से ही प्राप्त करना चाहिए। इससे मंत्र की शक्ति और उसका प्रभाव अधिक होता है। गणपति का बीज मंत्र “गं” या “ग:” के रूप में जाना जाता है, जो गकार और पंचांतक पर शशिधर या शशि यानि अनुस्वर या विसर्ग के संयोग से निर्मित होता है। गणपति के बीज मंत्र का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है।
भार्गव ऋषि ने गणपति के लिए “वक्रतुण्डाय हुम” और “ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं” मंत्रों को प्रतिपादित किया। वहीं गणक ऋषि ने “गं गणपतये नमः” मंत्र को जनसामान्य के लिए प्रस्तुत किया। कंकोल ऋषि ने “हस्तिपिशाचिलिखै स्वाहा” मंत्र को प्रकट किया। इन मंत्रों का नियमित जप और संबंधित आहुतियाँ जैसे जीरा, काली मिर्च, गन्ना, दूर्वा, घृत और मधु आदि से यज्ञ करना, साधक के जीवन में शुभ फल लाता है। यह उसे समृद्धि, ऐश्वर्य और शत्रुओं से मुक्ति की ओर अग्रसर करता है।
गणेश चतुर्थी 2024: गणपति प्रतिमा की महिमा और निर्माण की विधि
गणपति उपासना में प्रतिमा का निर्माण भी एक महत्वपूर्ण अंग है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, गणपति की प्रतिमा कुम्हार के चाक की मिट्टी से बनानी चाहिए। मिट्टी से निर्मित प्रतिमा संपत्ति प्राप्ति का प्रतीक मानी जाती है, जबकि गुड़ से बनी प्रतिमा सौभाग्य और लवण से बनी प्रतिमा शत्रुओं का नाश करती है।
प्रतिमा का आकार भी विशेष महत्व रखता है। आदर्श रूप से, प्रतिमा का आकार अंगुष्ठ (अंगूठे) से लेकर हथेली (मध्यमा अंगुली से मणिबंध तक) के माप का होना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में, इसका आकार एक हाथ जितना, अर्थात मध्यमा अंगुली से लेकर कोहनी तक, भी हो सकता है।
गणपति की उपासना में प्रतिमा के रंग का भी खासा महत्व है। कामना पूर्ति के लिए लाल रंग की प्रतिमा का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है। इसके अलावा, गणपति की साधना में मिट्टी, धातु, लवण, दही आदि से बनी प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया गया है। हालांकि, शास्त्र विशेष रूप से कुम्हार के चाक की मिट्टी से बनी प्रतिमा को प्राथमिकता देते हैं। यह मिट्टी गणपति उपासना के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है क्योंकि यह साधक के जीवन में शांति और समृद्धि लाती है।
विशालकाय प्रतिमा की उपासना का कोई भी प्राचीन ग्रंथ समर्थन नहीं करता। गणपति उपासना की सार्थकता उनके सूक्ष्म और साधारण रूप में ही निहित है, जो साधक को अपने भीतर की शक्तियों को जागृत करने में सहायता करती है। प्रतिमा का निर्माण स्वयं करना या किसी कारीगर से कराना, और उसका पूजा विधि के अनुसार पूजन करना, साधक के जीवन में अनंत सुख और समृद्धि लाने वाला होता है।
गणपति उपासना की यह विधि न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह साधक को एक उच्च आध्यात्मिक स्थिति की ओर ले जाती है। यह उपासना साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करती है और उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है। गणपति की कृपा से साधक को आंतरिक और बाह्य दोनों ही प्रकार की शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और वह जीवन में सच्ची शांति और संतोष प्राप्त करता है।
गणेश चतुर्थी 2024: गणेश चतुर्थी पर अष्ट द्रव्य का महत्व और चंद्रदर्शन की प्राचीन मान्यताएं
सदगुरुश्री के अनुसार, शारदातिलकम के त्रयोदश पटल, जिसे गणपति प्रकरण के रूप में जाना जाता है, में अष्ट द्रव्य का विशेष उल्लेख मिलता है। यह आठ प्रकार के पदार्थ विघ्नेश्वर के नैवेद्य के रूप में अर्पित किए जाते हैं, जो साधक के जीवन में ऐश्वर्य और समृद्धि लाते हैं। इन अष्ट द्रव्यों में मोदक, चिउड़ा (पोहा), लावा, सत्तू, गन्ने का टुकड़ा, नारियल, शुद्ध तिल, और पके हुए केले शामिल हैं। ये सभी पदार्थ गणेश उपासना में महत्वपूर्ण माने जाते हैं और उनके विशेष पूजन में अर्पित किए जाते हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन को शुभ नहीं माना जाता है। कुछ परंपराओं में इस दिन चंद्रमा के दर्शन को अशुभ और कलंककारक माना गया है, जिससे मान-सम्मान की हानि हो सकती है। यह मान्यता समाज में गहराई से रची-बसी हुई है, हालांकि इसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। फिर भी, भक्तजन इस परंपरा का पालन करते हैं और इस दिन चंद्रमा के दर्शन से बचने का प्रयास करते हैं।