जम्मू-कश्मीर HC: हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम दंपत्ति को सुरक्षा प्रदान की, जिन्होंने शादी के बाद अपने रिश्तेदारों और अन्य व्यक्तियों से धमकियों का सामना करने का आरोप लगाया था। यह मामला तब सामने आया जब दंपत्ति ने अदालत का रुख किया और सुरक्षा की मांग की, यह दावा करते हुए कि उनके खिलाफ हिंसा या किसी प्रकार के शारीरिक नुकसान का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
कोर्ट ने इस मामले में दंपत्ति की सुरक्षा के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए, और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी अन्य पक्ष को उनके विवाहित जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा।
जम्मू-कश्मीर HC: बालिगता की पुष्टि के लिए दंत चिकित्सक का पर्चा
इस मामले में महिला के बालिग होने के दावे को प्रमाणित करने के लिए, महिला के वकील ने एक दंत चिकित्सक द्वारा जारी किए गए पर्चे की प्रति को प्रस्तुत किया। इस पर्चे में महिला की आयु 45 वर्ष बताई गई थी, और यह जानकारी उनके आधार कार्ड से मेल खाती थी।
अदालत ने इस प्रमाण के आधार पर महिला की बालिगता की पुष्टि की। इसके अलावा, अदालत ने यह भी माना कि महिला ने अपनी मर्जी और इच्छा से विवाह किया था, और दोनों पति-पत्नी बालिग हैं।
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वकील ने अदालत में यह तर्क प्रस्तुत किया कि महिला के वयस्क होने के प्रमाण के रूप में दंत चिकित्सक द्वारा जारी पर्चे का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें महिला की आयु को प्रमाणित किया गया है। इसके अलावा, इस पर्चे में जो जानकारी दी गई, वह महिला के आधार कार्ड में भी दर्ज थी, जिससे इस दावे की सत्यता को और अधिक मजबूती मिली।
इस जोड़े ने अपनी याचिका में यह कहा कि उन्होंने शरीयत कानून के तहत और अपनी मर्जी से विवाह किया है। लेकिन उन्हें यह डर था कि उनके रिश्तेदार और अन्य लोग उनके विवाहित जीवन में हस्तक्षेप करने के लिए उन्हें धमकी दे सकते हैं।
इस प्रकार, उन्होंने उच्च न्यायालय से सुरक्षा की मांग की थी। जोड़े का कहना था कि उनकी शादी को लेकर उनके परिवार से विरोध हो सकता है, और उन्हें अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता थी।
जम्मू-कश्मीर HC: न्यायमूर्ति मोक्ष खजूरिया काज़मी का आदेश
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मोक्ष खजूरिया काज़मी ने इस बात पर जोर दिया कि जब दोनों पति-पत्नी बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से विवाह किया है, तो किसी भी व्यक्ति को उनके विवाहित जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति काज़मी ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी मर्जी से विवाह किया है, तो उनके विवाहित जीवन में कोई भी बाहरी हस्तक्षेप अस्वीकार्य होगा।
न्यायालय ने यह आदेश दिया कि पुलिस और किसी अन्य प्रतिवादी को इस दंपत्ति के विवाहित जीवन में कोई भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस आदेश के तहत दंपत्ति को पूरी सुरक्षा दी जाएगी, ताकि उनके जीवन में किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक खतरा उत्पन्न न हो।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दोनों याचिकाकर्ता अभी भी पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं और उनकी शादी पूरी तरह से उनकी मर्जी और इच्छा से हुई है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता के द्वारा दी गई जानकारी सही है, तो पुलिस और अन्य किसी भी व्यक्ति को उनके शांतिपूर्ण विवाहित जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
यह आदेश न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करता है, बल्कि यह समाज में वैवाहिक जीवन के प्रति सम्मान को भी बढ़ावा देता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और अन्य अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे दंपत्ति की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इस आदेश से यह स्पष्ट हुआ कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से विवाह करता है और वह कानून के दायरे में रहता है, तो उसे अपने विवाहित जीवन को जीने का पूरा अधिकार है।
जम्मू-कश्मीर HC: समाज में मर्जी और इच्छा से विवाह का महत्व
यह मामला यह दर्शाता है कि समाज में विवाह को लेकर कई तरह के दबाव हो सकते हैं, खासकर जब यह पारंपरिक या धार्मिक कानूनों से जुड़ा होता है। लेकिन अदालत ने इस मामले में यह सिद्ध कर दिया कि मर्जी और इच्छा से विवाह करने का अधिकार हर व्यक्ति को है, और यदि दोनों पति-पत्नी बालिग हैं और अपनी मर्जी से विवाह करते हैं, तो समाज और परिवार को उनका समर्थन करना चाहिए।
इस आदेश से यह भी संदेश मिलता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विवाह के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए, और किसी को भी किसी अन्य व्यक्ति की मर्जी के खिलाफ उनकी शादी पर सवाल उठाने या उस पर दबाव डालने का अधिकार नहीं है।
जम्मू-कश्मीर HC: कोर्ट के आदेश से सुरक्षा का महत्व
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत अधिकार का नहीं बल्कि समाज के एक बड़े मुद्दे का भी प्रतिनिधित्व करता है, जहां लोग अपने रिश्तों और वैवाहिक जीवन में स्वतंत्रता चाहते हैं। कोर्ट का यह आदेश सुरक्षा की आवश्यकता पर बल देता है, और यह दर्शाता है कि किसी भी विवाहित जोड़े को बिना किसी डर और धमकी के अपना जीवन जीने का अधिकार है।
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल दंपत्ति के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देता है कि हर व्यक्ति को अपने विवाहित जीवन को अपने तरीके से जीने का अधिकार है। अदालत के आदेश ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को इस दंपत्ति के जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, और उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी।
इस प्रकार, यह निर्णय समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैवाहिक अधिकारों के महत्व को स्थापित करने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम है।