दल-बदल का असर: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे सामने आ चुके हैं और इसके साथ ही यह भी साफ हो गया है कि इस चुनाव में किसके लिए दल-बदल फायदेमंद साबित हुआ और कौन अपने फैसले पर पछता रहा होगा।
चुनाव से पहले कई नेताओं ने अपनी पार्टियां बदलीं, कुछ को इसका सीधा फायदा हुआ तो कुछ को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
दल-बदल का असर: कहां सफल रहा दल-बदल?
- अरविंदर सिंह लवली (कांग्रेस से बीजेपी)
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके अरविंदर सिंह लवली ने 2024 में बीजेपी का दामन थामा और गांधी नगर सीट से चुनाव लड़ा। यह फैसला उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि उन्होंने आम आदमी पार्टी (AAP) को हराकर यह सीट अपने नाम कर ली।
- राजकुमार चौहान (कांग्रेस से बीजेपी)
मंगोलपुरी सीट से कांग्रेस के पूर्व नेता राजकुमार चौहान ने बीजेपी में शामिल होकर चुनाव लड़ा और सफलता हासिल की। यह सीट बीजेपी के लिए अहम थी, जिसे जीतने में चौहान सफल रहे।
- कैलाश गहलोत (AAP से बीजेपी)
दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा। उनके इस फैसले ने उन्हें बिजवासन सीट पर जीत दिलाई।
- अनिल झा (बीजेपी से AAP)
किराड़ी सीट पर अनिल झा का बीजेपी से AAP में जाना उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ। उन्होंने बीजेपी के बजरंग शुक्ला को 21 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर अपनी सीट जीत ली।
- वीर सिंह धींगान (कांग्रेस से AAP)
वीर सिंह धींगान ने कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी जॉइन की और द्वारका विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। उनका यह फैसला सही साबित हुआ क्योंकि उन्होंने बीजेपी की कुमारी रिंकू को 10,368 वोटों के अंतर से हराया।
- प्रवेश रत्न (बीजेपी से AAP)
बीजेपी से AAP में शामिल हुए प्रवेश रत्न ने पटेल नगर सीट पर जीत हासिल की। उन्होंने दिल्ली सरकार के मंत्री रहे राजकुमार आनंद को हराया, जो AAP छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। यह दिलचस्प था कि 2020 में भी इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें आनंद विजयी हुए थे, लेकिन इस बार पासा पलट गया।
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दल-बदल का असर: कहां हुआ दल-बदल फेल?
- जितेंद्र सिंह शंटी (बीजेपी से AAP)
शाहदरा सीट से जितेंद्र सिंह शंटी ने बीजेपी से अलग होकर AAP जॉइन की, लेकिन यह फैसला उनके लिए गलत साबित हुआ। उन्हें बीजेपी के संजय गोयल से 5,178 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
- सुरेंद्र पाल बिट्टू (कांग्रेस से AAP)
कांग्रेस से AAP में शामिल हुए सुरेंद्र पाल बिट्टू भी अपने नए राजनीतिक ठिकाने में कामयाब नहीं हो पाए। उन्हें बीजेपी के सूर्य प्रकाश खत्री ने 1,168 वोटों के अंतर से हरा दिया।
- सोमेश शौकीन (कांग्रेस से AAP)
कांग्रेस के पूर्व विधायक सोमेश शौकीन ने पिछले साल नवंबर में AAP जॉइन की, लेकिन यह निर्णय उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। उन्हें बीजेपी के संदीप सेहरावत के खिलाफ 28,000 से ज्यादा वोटों से करारी शिकस्त मिली।
- बीबी त्यागी (बीजेपी से AAP)
बीबी त्यागी ने बीजेपी से अलग होकर आम आदमी पार्टी में जाने का फैसला किया था, लेकिन यह फैसला उनके हक में नहीं गया। वह 11,542 वोटों से चुनाव हार गए।
- ब्रह्म सिंह तंवर (बीजेपी से AAP) बनाम करतार सिंह तंवर (AAP से बीजेपी)
छतरपुर सीट पर दल-बदल का दिलचस्प खेल देखने को मिला। ब्रह्म सिंह तंवर ने बीजेपी छोड़कर AAP का दामन थामा, लेकिन चुनाव हार गए। वहीं, करतार सिंह तंवर ने AAP छोड़कर बीजेपी जॉइन की और इसी सीट पर जीत हासिल कर ली। यह बीजेपी के लिए दोहरी जीत साबित हुई।
2025 DELHI Election | MUSTAFABAD VIDHANSABHA | Bolega India
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KIRARI VIDHANSABHA | ANIL JHA | RAJESH GUPTA | BAJRANG SHUKLA | Bolega IndiaBJP की प्रचंड जीत: AAP के लिए बड़ा झटका 2025 !
AAP का नया दांव पड़ा भारी पुराने नेताओं की कमी खली?
इस चुनाव में देखा गया कि दल-बदल करने वाले नेताओं के लिए किस्मत के दरवाजे कहीं खुले, तो कहीं बंद हो गए। कुछ नेताओं ने सही पार्टी का चुनाव करके सीटें जीतीं, जबकि कुछ ने गलत फैसला लेकर अपनी राजनीतिक स्थिति कमजोर कर ली।
बीजेपी में जाने वाले कई नेताओं को फायदा हुआ क्योंकि पार्टी की लहर इस बार बेहद मजबूत थी, लेकिन जो नेता बीजेपी छोड़कर गए, उनमें से अधिकांश को हार का सामना करना पड़ा।
AAP के लिए यह चुनाव किसी झटके से कम नहीं था, क्योंकि उसने अपने कई पुराने नेताओं को खो दिया और नए चेहरों पर दांव खेला, जो ज्यादा सफल नहीं हो सके। वहीं, कांग्रेस इस बार भी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में असफल रही।
राजनीतिक सफर का नया मोड़ या फिर होगी वापसी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दल-बदल का खेल कई नेताओं के लिए फायदेमंद साबित हुआ, जबकि कुछ को करारा झटका लगा। बीजेपी में शामिल होने वाले कई नेता सफल रहे, जबकि AAP की ओर जाने वाले नेताओं में से ज्यादातर को निराशा हाथ लगी। इस चुनाव ने यह भी दिखाया कि केवल पार्टी बदलने से जीत की गारंटी नहीं होती, बल्कि जनता के बीच स्वीकार्यता ही सबसे अहम होती है।
आने वाले वर्षों में देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये दल-बदलू नेता अपनी नई पार्टियों में टिके रहते हैं या फिर एक बार फिर राजनीतिक सफर में नया मोड़ लेते हैं।