दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था: उपराज्यपाल और स्वास्थ्य मंत्री अपने अधिकार क्षेत्र की लड़ाई को छोड़, दिल्ली की जनता के हितों की सोच कर निर्णय करें।- देवेन्द्र यादव

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By headlineslivenews.com

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दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था: दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने बुधवार को दिल्ली में बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था और बढ़ते डेंगू एवं एमपॉक्स के मामलों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, और इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रही प्रशासनिक अधिकारों की लड़ाई है। इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान दिल्ली की जनता को हो रहा है, जो दो पाटों के बीच पिस रही है।

दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था

दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था: स्वास्थ्य मंत्री की नाकामी और दिल्ली की चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था

देवेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में बढ़ती भीड़ और बिगड़ती स्थिति के बावजूद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज प्रेस वार्ताओं के जरिए अपनी लाचार हालत और असमर्थता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार के मंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने में नाकाम साबित हो रहे हैं और इसका ठीकरा उपराज्यपाल पर फोड़ रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि उपराज्यपाल ने भी दिल्ली सरकार के मंत्रियों पर अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन न करने का आरोप लगाया है।

यादव ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, विशेषज्ञों और मेडिकल एवं प्रशासनिक स्टाफ के 38,000 पद खाली पड़े हैं, जिसमें से 30 प्रतिशत पद डॉक्टरों के हैं। इस भारी कमी के कारण अस्पतालों, डिस्पेंसरियों और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जनता को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है और स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से अव्यवस्थित हो चुकी हैं।

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दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था: अस्पतालों की दुर्दशा और मंत्री की निष्क्रियता

यादव ने कहा कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज सिर्फ बयानबाजी में व्यस्त रहते हैं और जमीनी हकीकत से अनजान हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्री ने अब तक अस्पतालों का दौरा करके वहां की वास्तविक स्थिति का जायजा नहीं लिया है। मंत्री के पास विभिन्न विभागों की जिम्मेदारियां हैं, लेकिन वे किसी भी एक दायित्व को सही तरह से निभाने में विफल हो रहे हैं। चाहे वह जलभराव से होने वाली समस्याओं पर हो या अस्पतालों में रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया की शुरुआत पर, मंत्री हर मोर्चे पर असफल साबित हो रहे हैं।

यादव ने आगे कहा कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में बढ़ते डेंगू और एमपॉक्स के मामलों को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी चिंता जताई है, लेकिन दिल्ली सरकार इस पर भी लापरवाह बनी हुई है। सरकार का ध्यान मौहल्ला क्लीनिक के दुरुस्त होने पर है, लेकिन वास्तविकता यह है कि आपातकालीन स्थिति में ये क्लीनिक्स भी नाकाम साबित हो रहे हैं।

दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था: उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार की लड़ाई में जनता की बलि

देवेन्द्र यादव ने सवाल उठाया कि आखिर दिल्ली की जनता को कब तक इस प्रशासनिक खींचतान का खामियाजा भुगतना पड़ेगा? पिछले 10 वर्षों से भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान ने दिल्ली को कहीं का नहीं छोड़ा है। दोनों पार्टियां अपनी राजनीतिक स्वार्थ साधने में लगी हुई हैं, लेकिन जनता के हितों की चिंता किसी को नहीं है। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार को अपने अधिकारों की लड़ाई को छोड़कर दिल्ली की जनता के हित में काम करना चाहिए और प्रशासनिक निर्णयों को समय पर अंजाम देना चाहिए।

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दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पर कांग्रेस का आक्रोश

यादव ने कहा कि दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और इसके लिए जिम्मेदार केवल भाजपा और आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता का स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा उनके लिए प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल अपनी लड़ाई में उलझे हुए हैं।

यादव ने कहा कि अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल इस मामले को गंभीरता से नहीं लेंगे और आपसी मतभेदों को सुलझाकर जनता के हित में काम नहीं करेंगे, तो कांग्रेस पार्टी इसे जनता के सामने उजागर करने के लिए मजबूर होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि जनता के धैर्य का और अधिक इम्तिहान न लिया जाए, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम होंगे।

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देवेन्द्र यादव के इस बयान ने दिल्ली की मौजूदा राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिति को उजागर किया है, जहां जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है। बढ़ते डेंगू और एमपॉक्स के मामलों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर स्थिति ने दिल्लीवासियों के लिए एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। जरूरत है कि इस संकट का समाधान खोजा जाए और प्रशासनिक अधिकारों की लड़ाई को दरकिनार करके जनता के हित में काम किया जाए।

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