दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय शास्त्रीय संगीत और कॉपीराइट कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित कोई भी संगीत रचना, भले ही वह समान राग और ताल के आधार पर बनी हो, फिर भी यदि उसे मूल रूप से तैयार किया गया है, तो वह “मौलिक” मानी जाएगी और उसे कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत कानूनी संरक्षण मिलेगा।
यह निर्णय न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद फैयाज वासिफुद्दीन डागर द्वारा दायर एक वाद के संदर्भ में दिया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि मणिरत्नम निर्देशित तमिल फिल्म “पोन्नियिन सेलवन 2” के गीत “वीर राजा वीर” में उनकी मौलिक रचना “शिव स्तुति” का उल्लंघन किया गया है। इस केस में संगीतकार ए.आर. रहमान और अन्य निर्माता पक्षकार थे।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: कोर्ट की अहम टिप्पणियां
न्यायालय ने कहा कि भले ही संगीत की रचना एक पारंपरिक राग और ताल पर आधारित हो, लेकिन संगीतकार के पास अपने रचनात्मक कौशल और मौलिकता के आधार पर अनेक संभावनाएं होती हैं।
न्यायालय ने उदाहरण देते हुए कहा, “जैसे एक ही वर्णमाला और व्याकरण के नियमों के जरिए असंख्य साहित्यिक कृतियां लिखी जाती हैं, वैसे ही केवल आठ स्वरों और निर्धारित राग-ताल प्रणाली पर आधारित होकर भी अनगिनत मौलिक संगीत रचनाएं तैयार की जा सकती हैं।”
इसलिए, यदि कोई संगीत रचना मौजूदा रचना से नकल नहीं है और उसमें संगीतकार ने स्वतंत्र सृजनात्मकता दिखाई है, तो वह कॉपीराइट संरक्षण के योग्य होगी।
कॉपीराइट उल्लंघन के आरोपों की जांच
कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत संगीत रचनाओं का विश्लेषण किया और पाया कि “वीर राजा वीर” गीत केवल “शिव स्तुति” से प्रेरित नहीं है, बल्कि उसमें स्वर (Notes), भावनात्मक प्रस्तुति (Emotion) और श्रवण प्रभाव (Aural Impact) तक मूल रचना के समान हैं।
न्यायालय ने कहा, “प्रतिवादी के गीत में न केवल रचनात्मक तत्व समान हैं, बल्कि यह भी प्रतीत होता है कि मुख्य संगीत अंश हूबहू नकल किया गया है। केवल गीत के बोल बदले गए हैं, जबकि संगीतिक संरचना (Musical Composition) पूरी तरह से मूल रचना के समान है।”
इस आधार पर कोर्ट ने डागर के पक्ष में अंतरिम निषेधाज्ञा (Interim Injunction) पारित करते हुए प्रतिवादियों को इस गीत का इस्तेमाल करने से रोक दिया।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कॉपीराइट का रिश्ता
न्यायालय ने अपने निर्णय में इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत में कॉपीराइट कानून का विकास इस प्रकार हुआ है कि वह पारंपरिक और सांस्कृतिक रचनाओं, जैसे कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित मौलिक कार्यों को भी उचित संरक्षण प्रदान कर सके।
कोर्ट ने कहा, “हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में रचनात्मकता और मौलिकता की विशाल संभावनाएं हैं। प्रत्येक कलाकार अपनी प्रस्तुति में नया भाव, अंदाज और संरचना जोड़ सकता है। इसलिए, किसी भी मौलिक रचना को सिर्फ इस आधार पर संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशिष्ट राग या ताल पर आधारित है।”
नैतिक अधिकारों का महत्व
न्यायालय ने इस मामले में कॉपीराइट अधिनियम के अंतर्गत नैतिक अधिकारों (Moral Rights) की भी चर्चा की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक मौलिक संगीत रचना के सृजनकर्ता को न केवल आर्थिक अधिकार (Economic Rights) प्राप्त होते हैं, बल्कि उसे अपनी कृति के साथ जुड़े नैतिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं। इनमें कृति के श्रेय का अधिकार (Right of Attribution) और उसकी अखंडता बनाए रखने का अधिकार (Right of Integrity) शामिल हैं।
nishikant dubey on supreme court
फैसले का व्यापक महत्व
इस फैसले का भारतीय संगीत उद्योग, विशेष रूप से शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यह निर्णय शास्त्रीय संगीतकारों को अपनी मौलिक कृतियों की रक्षा करने का कानूनी आधार प्रदान करता है और उन्हें आश्वस्त करता है कि उनकी स्वतंत्र रचनात्मक अभिव्यक्तियों को कॉपीराइट सुरक्षा प्राप्त होगी, भले ही वे पारंपरिक रागों पर आधारित हों।
यह मामला भारतीय न्यायपालिका द्वारा पारंपरिक कला रूपों के अधिकारों को पहचानने और सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
हर कलाकार की स्वतंत्र रचना को मिलेगा पूर्ण सम्मान और संरक्षण
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में मौलिकता और कॉपीराइट सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि रचनात्मक स्वतंत्रता और पारंपरिक मूल्यों के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, और हर कलाकार की स्वतंत्र रचना को पूरा सम्मान और संरक्षण मिलना चाहिए।
केस टाइटल: उस्ताद फैयाज वासिफुद्दीन डागर बनाम ए.आर. रहमान व अन्य
जज: न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह
महत्वपूर्ण धाराएं: कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अंतर्गत मौलिकता और नैतिक अधिकार
प्रभाव: भारतीय संगीत उद्योग, खासकर पारंपरिक और शास्त्रीय संगीत की रचनाओं के संरक्षण में नए मानक स्थापित