धारा 9 के तहत-दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में SMAS ऑटो लीजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को अंतरिम राहत प्रदान की है।
यह मामला जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनी ब्लू-स्मार्ट फ्लीट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा लीज भुगतान में चूक के कारण उत्पन्न हुआ है। न्यायालय ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 के तहत SMAS द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार दिया है। यह मामला उन कानूनी और वित्तीय जटिलताओं का परिचायक है, जो भारत के उभरते ई-मोबिलिटी क्षेत्र में सामने आ रही हैं।
धारा 9 के तहत- ब्लू-स्मार्ट और जेनसोल ने मिलकर लीज शर्तों का किया उल्लंघन
SMAS ऑटो लीजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने दो मास्टर लीज समझौतों के तहत जेनसोल और ब्लू-स्मार्ट को इलेक्ट्रिक वाहन लीज पर दिए थे। पहला समझौता 26 मई, 2021 को हुआ था, जिसके तहत जेनसोल ने 164 ईवी SMAS से लीज पर लिए। दूसरा समझौता 23 सितंबर, 2022 को ब्लू-स्मार्ट के साथ हुआ, जिसमें 46 ईवी SMAS से लीज पर लिए गए। इन वाहनों के किराए का भुगतान समय पर नहीं किया गया, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ।
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याचिका का आधार
याचिकाकर्ता SMAS ने यह दलील दी कि लीज भुगतान में चूक और प्रतिवादियों की वित्तीय स्थिति को देखते हुए, लीज पर दिए गए ईवी की सुरक्षा खतरे में है। साथ ही, मध्यस्थता की प्रक्रिया अभी लंबित है और इस दौरान परिसंपत्तियों के नष्ट होने या उन्हें अलग करने की आशंका भी जताई गई।
याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि वह:
- जेनसोल और ब्लू-स्मार्ट को इन ईवी को हस्तांतरित करने या उनके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने से रोके।
- ईवी की वर्तमान स्थिति और स्थान की जानकारी साझा करने का निर्देश दे।
- ईवी को चार्ज करने, सुरक्षित रखने और कार्यशील बनाए रखने के लिए एक रिसीवर नियुक्त करे।
SEBI का हस्तक्षेप
15 अप्रैल, 2025 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने जेनसोल, अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी के खिलाफ एक अंतरिम आदेश पारित किया था। इस आदेश के तहत उन्हें प्रमुख प्रबंधकीय पदों पर बने रहने और प्रतिभूति बाजार में भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया। SEBI ने आरोप लगाया कि इन संस्थाओं और व्यक्तियों ने निवेशकों के धन का दुरुपयोग किया और वित्तीय अनियमितताओं में शामिल रहे।
nishikant dubey on supreme court
हाईकोर्ट का फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की एकल पीठ ने SMAS की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है और SMAS को अंतरिम राहत दी जानी चाहिए। न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिए:
- प्रतिवादियों को रोक: जेनसोल और ब्लू-स्मार्ट को लीज पर लिए गए ईवी को किसी अन्य पक्ष को हस्तांतरित करने, उनके साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ करने या उनके स्वामित्व में कोई बदलाव करने से रोक दिया गया है।
- रिसीवर की नियुक्ति: अदालत ने एक स्वतंत्र रिसीवर की नियुक्ति की है, जो SMAS की लीज पर दी गई संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। रिसीवर को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे ईवी को चार्ज करने, उनकी स्थिति बनाए रखने और उन्हें अच्छे कार्यशील अवस्था में रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
- संपत्ति की स्थिति का खुलासा: न्यायालय ने प्रतिवादियों को आदेश दिया है कि वे ईवी की वर्तमान स्थिति और स्थान का विवरण प्रस्तुत करें। साथ ही, जहां-जहां ये वाहन संग्रहीत हैं, उन स्थानों की पहचान करने में रिसीवर को पूरा सहयोग दें।
कानूनी महत्व
यह निर्णय भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की लीजिंग और फाइनेंसिंग से संबंधित बढ़ते विवादों के संदर्भ में एक मिसाल प्रस्तुत करता है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक मध्यस्थता प्रक्रिया चल रही है, तब तक याचिकाकर्ता की परिसंपत्तियों को संरक्षित किया जाना आवश्यक है।
ई-मोबिलिटी सेक्टर पर प्रभाव
ब्लू-स्मार्ट जैसी कंपनियां जो भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही हैं, उनके लिए यह घटनाक्रम एक चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है। निवेशकों और फाइनेंसरों को अब अधिक सतर्क रहना होगा और कानूनी सुरक्षा उपायों को पहले से सुनिश्चित करना पड़ेगा।
ईवी लीजिंग विवाद में हाईकोर्ट ने दिखाया सख्त रुख
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला SMAS ऑटो लीजिंग को एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान करता है और इस बात को रेखांकित करता है कि न्यायालय वित्तीय अनुशासन और कानूनी प्रक्रियाओं के उल्लंघन पर सख्त रुख अपनाने को तैयार है। साथ ही, यह फैसला उन कंपनियों के लिए भी चेतावनी है जो लीजिंग अनुबंधों की शर्तों का पालन नहीं करतीं। यह मामला दर्शाता है कि भारत के तेजी से विकसित होते ईवी सेक्टर में अनुशासन, पारदर्शिता और कानून का पालन कितना आवश्यक है।