नंदमुरी तारक रामाराव: भारतीय सिनेमा और राजनीति में ऐसे कई किरदार हुए हैं, जिनकी ज़िन्दगी खुद किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती।
मगर जब बात नंदमुरी तारक रामाराव यानी एनटीआर की आती है, तो उनका नाम न सिर्फ़ तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में बल्कि आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। उन्होंने जो जीवन जिया, उसमें स्टारडम, भक्तों की पूजा, पारिवारिक त्रासदियां और सियासी उठा-पटक सबकुछ शामिल रहा। आइए, उनके जीवन के उन पहलुओं को जानें, जिनके बारे में कम ही लोग विस्तार से जानते हैं।
नंदमुरी तारक रामाराव: गांव से गॉडफिगर बनने तक का सफर
एनटीआर का जन्म 28 मई 1923 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के निम्मकारू गांव में हुआ था। एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे एनटीआर ने कभी नहीं सोचा था कि उनका नाम एक दिन साउथ फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा नाम बनेगा। पढ़ाई में सामान्य लेकिन कला में रुचि रखने वाले एनटीआर ने कॉलेज के दिनों से ही नाटकों में हिस्सा लेना शुरू किया।
फिर उन्होंने फिल्मों का रुख किया और 1949 में फिल्म ‘मना देशम‘ से तेलुगू सिनेमा में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एनटीआर की सबसे खास बात ये थी कि वो भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और शिव के किरदार इतने भावपूर्ण तरीके से निभाते थे कि दर्शक उन्हें असली भगवान मानने लगे थे।
उन्होंने करीब 17 फिल्मों में भगवान कृष्ण का किरदार निभाया और यही वजह थी कि लोग उन्हें सच्चे दिल से पूजने लगे। उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि गांव-गांव में उनके पोस्टर पर अगरबत्तियां जलाई जाती थीं।
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मामा की बेटी से की शादी समाज में मचा तहलका
एनटीआर की निजी जिंदगी भी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं थी। साल 1942 में मात्र 20 साल की उम्र में और 12वीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने मामा की बेटी बसवतारकम से शादी कर ली थी। उस दौर में यह रिश्ता सामाजिक तौर पर भले प्रचलित रहा हो, लेकिन जब एनटीआर जैसे चर्चित चेहरे ने ऐसा किया तो लोगों में इसकी खासी चर्चा हुई।
शादी के बाद एनटीआर और बसवतारकम के 12 बच्चे हुए, जिनमें 8 बेटे और 4 बेटियां थीं। उनका परिवार दक्षिण भारत का सबसे बड़ा और रसूखदार परिवार बन गया।
करियर में स्टारडम और निजी जिंदगी में त्रासदियां
जहां एनटीआर के फिल्मी करियर ने बुलंदियां छुईं, वहीं उनकी निजी जिंदगी हमेशा कठिन दौर से गुजरती रही। साल 1962 में उनके सबसे बड़े बेटे रामकृष्णा की मौत हो गई। इसके बाद 1985 में पत्नी बसवतारकम का निधन कैंसर से हो गया।
पत्नी की मौत ने एनटीआर को अंदर से तोड़ दिया। इस गम से उबरने के लिए उन्होंने उसी साल 1986 में हैदराबाद में एक कैंसर अस्पताल बनवाया, जो आज भी उनके नाम से संचालित होता है।
लेकिन त्रासदियों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। उनके तीसरे बेटे नंदमुरी साईकृष्णा का 2004 में निधन हुआ और 2018 में उनके बेटे नंदमुरी हरिकृष्णा की सड़क हादसे में मौत हो गई। खास बात ये थी कि हरिकृष्णा, तेलुगू सुपरस्टार जूनियर एनटीआर के पिता थे।
बेटी ने भी कर लिया सुसाइड
इन सबके बाद भी किस्मत ने एनटीआर का पीछा नहीं छोड़ा। उनके निधन के वर्षों बाद, साल 2022 में उनकी बेटी उमा माहेश्वरी ने सुसाइड कर लिया। उनकी लाश हैदराबाद स्थित घर में फंदे से लटकी मिली थी।
एनटीआर की दूसरी बेटी पुत्रुला लक्ष्मी नेता बनीं, वहीं तीसरी बेटी भुवनेश्वरी ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू से शादी की। यानी नंदमुरी परिवार का राजनीति में भी अच्छा-खासा दखल रहा।
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70 साल की उम्र में दूसरी शादी परिवार से बगावत
पत्नी के निधन के बाद एनटीआर की जिंदगी में लक्ष्मी पार्वती नाम की लेखिका आईं। वो उस वक्त एक प्रसिद्ध राइटर थीं और एक किताब लिखने के सिलसिले में एनटीआर से मिलने आई थीं। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और साल 1993 में 70 साल की उम्र में एनटीआर ने लक्ष्मी पार्वती से शादी कर ली।
इस शादी के पीछे भी विवाद रहा क्योंकि लक्ष्मी पार्वती पहले से शादीशुदा थीं। उनके पति ने तलाक की अर्जी देकर इस रिश्ते का रास्ता साफ किया। परिवार ने इस शादी का जमकर विरोध किया।
लक्ष्मी पार्वती से एनटीआर की कोई संतान नहीं थी। हालांकि वो उनके साथ आखिरी सांस तक रहीं।
सियासत में एंट्री और बेमिसाल करियर
एनटीआर ने साल 1982 में राजनीति में कदम रखा और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) की स्थापना की। उनकी छवि इतनी मजबूत थी कि सिर्फ 9 महीने बाद ही वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।
हालांकि, राजनीति में भी उन्हें विरोधियों की साजिशों का सामना करना पड़ा। साल 1984 में उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने उनके खिलाफ बगावत कर दी और तख्तापलट करते हुए मुख्यमंत्री पद हथिया लिया।
लेकिन एनटीआर ने हार नहीं मानी और फिर से सत्ता में लौटे।
साल 1996 में हुआ निधन
18 जनवरी 1996 को एनटीआर का निधन दिल का दौरा पड़ने से हो गया। उनके निधन के बाद न सिर्फ आंध्र प्रदेश बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए और उनके अंतिम दर्शन करने पहुंचे।
आज भी पूजे जाते हैं एनटीआर
आज भी आंध्र प्रदेश और तेलुगू सिनेमा में एनटीआर की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग रोज़ पूजा करते हैं। उनके नाम पर कैंसर अस्पताल, एनटीआर स्टेडियम और कई सार्वजनिक संस्थाएं संचालित होती हैं।
उनकी फिल्मों के डायलॉग और किरदार आज भी लोगों की जुबां पर जिंदा हैं।
सिनेमा के भगवान से राजनीति के बादशाह तक
एनटी रामा राव की जिंदगी अगर कोई फिल्मकार पर्दे पर लाए, तो यकीनन वो ब्लॉकबस्टर होगी। उनकी शख्सियत में स्टारडम, भक्ति, पारिवारिक मोह, त्रासदियां, सत्ता की लड़ाई और अनगिनत जज्बात थे। वो न सिर्फ सिनेमा के भगवान कहलाए, बल्कि राजनीति के भी महारथी रहे।
उनकी विरासत आज भी जूनियर एनटीआर और चंद्रबाबू नायडू जैसे नामों के ज़रिए ज़िंदा है।