न्यायिक व्यवस्था पर सवाल: दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से नकदी गायब होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं।
इस प्रकरण ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
न्यायिक व्यवस्था पर सवाल: आग की घटना और नकदी की बरामदगी
14 मार्च 2025 को होली की रात, दिल्ली के तुगलक क्रेसेंट स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी मध्य प्रदेश की यात्रा पर थे, जबकि उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर मौजूद थीं। आग बुझाने के दौरान अग्निशमन कर्मियों ने स्टोर रूम में जलते हुए नकदी के बंडल देखे, जिनकी तस्वीरें और वीडियो बाद में सार्वजनिक हुए ।
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सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च को तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया, और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं। समिति ने 42 दिनों तक गहन जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें नकदी की बरामदगी की पुष्टि की गई ।
स्टाफ पर संदेह और नकदी का गायब होना
जांच रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि आग लगने के बाद स्टोर रूम से कुछ नकदी रहस्यमय ढंग से गायब हो गई। समिति ने जस्टिस वर्मा के निजी सचिव और स्टाफ पर संदेह जताया, हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि गवाहों को समन करने और बयान दर्ज करने के लिए औपचारिक जांच की आवश्यकता है ।
जस्टिस वर्मा का पक्ष और प्रतिक्रिया
जस्टिस वर्मा ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने या उनके परिवार के किसी सदस्य ने स्टोर रूम में कभी नकदी नहीं रखी। उन्होंने दावा किया कि यह उन्हें बदनाम करने और फंसाने की साजिश है ।
सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई और संभावित महाभियोग
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा से जवाब मांगा और उन्हें इस्तीफा देने का विकल्प दिया। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की गई है ।
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वीडियो और तस्वीरें सार्वजनिक
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से संबंधित वीडियो और तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक की हैं, जिसमें जले हुए नकदी के बंडल स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं ।
जांच समिति की रिपोर्ट ने खोले कई राज़
यह मामला भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट की त्वरित कार्रवाई और जांच समिति की रिपोर्ट ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया है। अब सभी की निगाहें आगे की कानूनी प्रक्रिया और संभावित महाभियोग पर टिकी हैं।