बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: मुंबई- बॉम्बे हाईकोर्ट ने मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर की गई कथित व्यंग्यात्मक टिप्पणी को लेकर दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारी से राहत दी है।
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह साफ किया कि एक कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है और उसे मनमाने तरीके से दबाया नहीं जा सकता।
बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: कोर्ट का आदेश गिरफ्तारी नहीं विवेक से हो जांच
बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: जस्टिस सरंग कोतवाल और जस्टिस श्रीराम मोडक की खंडपीठ ने स्पष्ट निर्देश दिया कि पुलिस जब तक चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तब तक कामरा को गिरफ्तार न किया जाए। साथ ही कोर्ट ने पुलिस को सलाह दी कि यदि उन्हें कामरा का बयान लेना है, तो चेन्नई के विलुपुरम में, जहां वह निवास करते हैं, वहां जाकर स्थानीय पुलिस की मदद लें।
खंडपीठ ने चेतावनी दी कि यदि याचिका पर सुनवाई लंबित रहते हुए पुलिस चार्जशीट दायर करती है, तो संबंधित अदालत को उसके संज्ञान में नहीं लेना चाहिए।
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बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल
कामरा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नवरोज़ सीरवई ने कोर्ट को बताया कि जिस कॉमेडी वीडियो को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हिस्सा है और इसके लिए कोई आपराधिक मामला नहीं बनता।
उन्होंने तर्क दिया कि यह वीडियो भारत की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और नेताओं के आचरण पर एक आलोचनात्मक व्यंग्य था, जिसे किसी प्रकार की सार्वजनिक शांति भंग करने या भय फैलाने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था।
सीरवई ने यह भी कहा कि इस एफआईआर का मकसद एक कलाकार को सबक सिखाना और उसे चुप कराना है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य (2025 LiveLaw (SC) 362) का हवाला देते हुए बताया कि कोर्ट ने ऐसे मामलों में कलाकारों और वक्ताओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कही है।
“एक कॉमेडियन को डराया जा रहा है”: कामरा के वकील
कामरा के वकील ने कहा कि कॉमेडियन को धमकाया, प्रताड़ित और डराया जा रहा है ताकि बाकी कलाकारों को भी डराया जा सके कि यदि सत्ता के खिलाफ बोले तो उनके साथ भी यही होगा।
उन्होंने कोर्ट को बताया कि शिवसेना के कार्यकर्ताओं द्वारा कामरा को जान से मारने की धमकियां मिली हैं और उनके शो के आयोजन स्थल – मुंबई के हैबिटैट स्टूडियो – में तोड़फोड़ की गई। इस हिंसा में 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिन्हें बाद में जमानत दे दी गई।
“गद्दार” शब्द का विवाद
एफआईआर के अनुसार, कामरा ने अपने वीडियो में शिवसेना में हुई फूट पर टिप्पणी करते हुए ‘गद्दार’ शब्द का प्रयोग किया, जिसे शिवसेना कार्यकर्ताओं ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए अपमानजनक माना। हालाँकि, वकील ने यह स्पष्ट किया कि कामरा ने अपने वीडियो में शिंदे का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया था।
विवाद तब और बढ़ गया जब शिवसेना विधायक मुराजी पटेल की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 353(1)(b), 353(2) [सार्वजनिक उपद्रव] और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356(2) [मानहानि] के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसे बाद में खार पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित कर दिया गया।
राज्य सरकार का पक्ष: “यह व्यंग्य नहीं टारगेटेड अटैक है”
सरकारी पक्ष रखते हुए मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि यह वीडियो केवल व्यंग्यात्मक आलोचना नहीं है, बल्कि जानबूझकर एक व्यक्ति को निशाना बनाने की कोशिश है।
उन्होंने कहा कि जब बार-बार एक ही व्यक्ति को लक्षित किया जाता है, तो यह हास्य या पैरोडी नहीं रह जाता, बल्कि एक दुर्भावनापूर्ण हमला बन जाता है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 21, जो किसी भी व्यक्ति की गरिमा और सम्मान की रक्षा करता है, केवल वक्ता की नहीं बल्कि उस व्यक्ति की भी सुरक्षा करता है जिसके खिलाफ टिप्पणी की गई हो।
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“राजनीतिक नेताओं को मिली छूट कलाकार को सजा क्यों?”
कामरा की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि कई बड़े राजनीतिक नेता – जैसे अजीत पवार और उद्धव ठाकरे – सार्वजनिक मंचों पर शिंदे को ‘गद्दार’ कह चुके हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इससे यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ कलाकारों को ही निशाना बनाया जा रहा है? क्या राजनीतिक आलोचना केवल राजनेताओं के लिए ही सुरक्षित है?
‘नया भारत’ शो और संवैधानिक अधिकार
कामरा का शो ‘नया भारत’ भारतीय राजनीति, पितृसत्ता, अरबपतियों की भव्यता, और सामाजिक असमानताओं पर आधारित है। यह एक स्टैंड-अप कॉमेडी है जो व्यंग्य के जरिए समकालीन सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करती है।
वकील सीरवई ने कोर्ट को बताया कि कामरा का शो किसी व्यक्ति विशेष को अपमानित करने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था, बल्कि यह एक सामाजिक टिप्पणी है, जो तथ्यात्मक आधार पर की गई थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक असहिष्णुता
यह पूरा मामला उस बड़ी बहस का हिस्सा है जिसमें कलाकारों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को यह चिंता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भी यदि सत्ताधारी दलों की आलोचना की जाती है, तो उन्हें कानूनी रूप से या हिंसा के माध्यम से निशाना बनाया जाता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि कानून का इस्तेमाल राजनीतिक बदले की भावना से नहीं होना चाहिए और कलाकारों को डराने या चुप कराने के लिए नहीं होना चाहिए।
कुणाल कामरा को मिली यह राहत सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि देश में संवैधानिक मूल्यों और कलात्मक स्वतंत्रता की जीत है।