संविधान दिवस 2024 : डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारत के संविधान के निर्माता और दलित समाज के उत्थान के लिए प्रेरक पुरुष के रूप में जाना जाता है। 26 नवंबर को संविधान दिवस उनके सम्मान में मनाया जाता है, जो न केवल भारत के लोकतंत्र का उत्सव है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के लिए उनके संघर्ष को भी याद करता है।
संविधान दिवस 2024 और डॉ. भीमराव अंबेडकर का भगवान स्वरूप अवतार: आज के युग में कितना महत्व है?
संविधान दिवस आज के युग में, डॉ. अंबेडकर और उनके विचारों का महत्व कई कारणों से है:
1. सामाजिक न्याय और समानता:
भारतीय समाज में जातिवाद और भेदभाव अभी भी मौजूद हैं। डॉ. अंबेडकर ने हमेशा जाति प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों और अवसरों की वकालत की। उनका मानना था कि एक न्यायसंगत और समतामूलक समाज बनाने के लिए संविधान आवश्यक है।
2. संवैधानिक मूल्य:
भारतीय संविधान डॉ. अंबेडकर की दूरदर्शिता और समझदारी का प्रतीक है। यह मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता, न्याय और कानून के शासन के मूल्यों को स्थापित करता है। ये मूल्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे।
3. दलित अधिकार:
डॉ. अंबेडकर दलित समुदाय के उत्थान के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने छुआछूत जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दलितों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी में समान अवसर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
4. प्रेरणादायी व्यक्तित्व:
डॉ. अंबेडकर एक महान विद्वान, वकील और राजनेता थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। वे उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो सामाजिक न्याय और समानता के लिए लड़ रहे हैं।
दलित विचार:
डॉ. अंबेडकर के विचारों को लेकर दलित समुदाय में विविधता है। कुछ लोग उन्हें भगवान के अवतार के रूप में मानते हैं, जिन्होंने दलितों को मुक्ति दिलाई।
अन्य लोग उन्हें एक सामाजिक सुधारक और राजनीतिक नेता के रूप में देखते हैं जिन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डॉ. अंबेडकर खुद को किसी भी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं मानते थे।
उनका मानना था कि धर्म व्यक्तिगत मामला है और किसी को भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
संविधान दिवस डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।
उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और सामाजिक न्याय, समानता और भारतीय लोकतंत्र के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
संविधान दिवस हमें उनके योगदान को याद करने और उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के परिवार की कहानी: संविधान दिवस 2024
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल एक सेवानिवृत्त सूबेदार थे और उनकी माँ भीमाबाई गृहिणी थीं। डॉ. अंबेडकर 14 बच्चों में सबसे छोटे थे, जिनमें से 9 की छोटी उम्र में ही मृत्यु हो गई थी। उनका परिवार ‘महाराष्ट्र’ के ‘रत्नागिरी’ जिले के ‘आंबेडे’ गांव से ताल्लुक रखता था।
जाति व्यवस्था के कारण मुश्किलें:
जाति व्यवस्था के कारण डॉ. अंबेडकर और उनके परिवार को कई सामाजिक और आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता था और उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जाता था। डॉ. अंबेडकर के पिता ने उन्हें शिक्षा के महत्व को समझा और उन्हें हर संभव शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया।
शिक्षा और करियर:
डॉ. अंबेडकर ने अपनी शिक्षा महाराष्ट्र, गुजरात, न्यूयॉर्क और लंदन में प्राप्त की। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से दर्शनशास्त्र में डी.एससी. की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद, उन्होंने वकील, प्रोफेसर और अर्थशास्त्री के रूप में काम किया।
सामाजिक कार्य:
डॉ. अंबेडकर ने दलितों और अन्य वंचित समुदायों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी और छुआछूत जैसी कुप्रथाओं को खत्म करने का प्रयास किया। उन्होंने शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी में दलितों के लिए समान अवसरों की वकालत की।
संविधान निर्माता:
डॉ. अंबेडकर को भारत के संविधान का निर्माता माना जाता है। उन्होंने संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीतिक करियर:
डॉ. अंबेडकर ने भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा में भी सदस्यता ग्रहण की।
मृत्यु:
डॉ. अंबेडकर का 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में निधन हो गया। उनकी मृत्यु भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।
डॉ. अंबेडकर के परिवार:
डॉ. अंबेडकर ने 1928 में रमाबाई अंबेडकर से शादी की। उनके पांच बच्चे थे – भवानीदास, रमेश, शंकरराव, मीना और राजरत्न। डॉ. अंबेडकर के परिवार ने उनके कार्यों और विरासत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और सामाजिक न्याय, समानता और भारतीय लोकतंत्र के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
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समानता का दीप: डॉ. अंबेडकर जयंती पर विशेष श्रद्धांजलि
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन 14 अप्रैल को मनाया जाता है। उनका परिवार और उनके बेटों के बारे में बात करते हुए, उनका परिवार बहुत ही सामान्य था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था, जो एक अग्रोड समुदाय से थे। उनकी मां का नाम भीमाबाई था। अंबेडकर के बच्चों के बारे में, उन्होंने एक बेटी को अपने जीवन में संजीवनी देई, जिनका नाम यशवंती राव था। वे भीवराव आम्बेडकर की प्रेरणादायक कथा “अच्छाई के पथ” में व्यक्तिगत घटनाओं का वर्णन करती हैं।
तीसरी पीढ़ी के बारे में, उसकी विवरण मुझे नहीं पता है। अम्बेडकर के परिवार के सदस्यों का जीवन परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न दिशाओं में विकसित होता हो सकता है। राजनीति में, अंबेडकर का योगदान और प्रभाव भारतीय समाज और राजनीति पर अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनके विचारों और आंदोलनों ने अनेक लोगों को सशक्त किया और समाज में समानता और न्याय की ओर अग्रसर किया।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की चौथी पीढ़ी
आज भारतीय राजनीति में गहरा प्रभाव डाल रही है। उनमें कुछ एक्टिविस्ट हैं जो समाज में समानता और न्याय के लिए लड़ रहे हैं, तो कुछ दलित आंदोलन को मजबूत करने में जुटे हैं। अंबेडकर का नाम भारतीय समाज में गांधी और नेहरू के साथ ही महत्वपूर्ण माना जाता है। डॉ. अंबेडकर का परिवार बहुत बड़ा था। उनके पिता रामजी अंबेडकर के बाद, उनके पास छह भाइयों और एक बहन थी।
उनके बाद, इस परिवार के सदस्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपना संरचनात्मक योगदान दिया। कुछ उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में अपना समर्थन दिया, जबकि कुछ न्यायिक और सामाजिक क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान की। अंबेडकर परिवार के लोग उनके विचारों और आदर्शों को आगे बढ़ाने में सक्रिय रहे हैं, जिससे समाज में समानता और न्याय की बुनियाद मजबूत हो।
इस चित्र में डॉ. अंबेडकर अपनी पहली पत्नी रमाबाई और बड़े बेटे यशवंत (सबसे बाएं) के साथ हैं। जबकि सबसे दाएं हैं उनके बड़े भाई आनंद की पत्नी। डॉ. अंबेडकर की पांच संतानें हुईं, लेकिन यशवंत को छोड़कर अन्य चार का निधन बचपन में ही हो गया। उनकी शादी रमाबाई के साथ तब हुई थी जबकि उनकी उम्र 15 साल थी। तब रमा 9 साल की थीं। 37 साल की उम्र में रमा का निधन हो गया, हालांकि वह लंबे समय तक बीमार रहीं। डॉ. अंबेडकर का योगदान और समर्पण उनकी तरक्की और उच्च शिक्षा में बहुत महत्वपूर्ण था।
भीमराव आंबेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का जन्म सात फरवरी 1898 को गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम भीखू धोत्रे और मां का नाम रुक्मिणी था. परिवार की आर्थिक तंगी झेलते हुए रमाबाई बचपन को पूरी तरह से जी भी नहीं पाई थीं कि माता-पिता दोनों का ही निधन हो गया था. डॉ. अंबेडकर ने अपनी पहली पत्नी रमाबाई को समर्पित एक किताब “थाट्स आन पाकिस्तान” के जरिए अपने बलिदान और परिवार के प्रति समर्पण का आभार व्यक्त किया। यह किताब 1941 में प्रकाशित हुई थी। जब 1935 में रमाबाई का निधन हो गया, जो एक लंबी बीमारी के बाद हुआ, तो अंबेडकर ने तय किया कि उन्हें अब कभी भी शादी नहीं करनी चाहिए।
डॉ. अंबेडकर की दूसरी पत्नी सविता थीं। 1940 के दशक में अंबेडकर की तबीयत खासी खराब हो गई थी और उनका डायबिटीज बहुत बढ़ गया था, जिसके कारण उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा था। उन्होंने मुंबई में एक ब्राह्मण परिवार से डॉक्टर की मदद ली, जिन्होंने उन्हें ठीक कर दिया। इसके बाद, अंबेडकर ने सविता से दूसरी शादी की, जो 1948 में हुई। हालांकि, इस शादी को अंबेडकर के परिवार में विरोध भी मिला।
डॉ. आंबेडकर के जीवन में सविता का योगदान:
डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के जीवन में सविता आंबेडकर का विशेष स्थान था। सविता जी न केवल उनकी पत्नी थीं, बल्कि एक सहयोगी, मित्र और प्रेरणा भी थीं।
डॉ. आंबेडकर ने एक किताब की भूमिका में लिखा था कि सविता जी के इलाज से उनका जीवन 8-10 साल बढ़ गया। यह दर्शाता है कि सविता जी ने डॉ. आंबेडकर की स्वास्थ्य और देखभाल में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
2003 में मुंबई में सविता जी का निधन हो गया। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे डॉ. आंबेडकर द्वारा स्थापित रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया में सक्रिय रहीं।
सविता जी ने सामाजिक न्याय और समानता के लिए डॉ. आंबेडकर के संघर्ष में उनका साथ दिया। वे एक प्रेरणादायक महिला थीं जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
यशवंत आंबेडकर: विरासत के वाहक
डॉ. भीमराव आंबेडकर के पुत्र और परिवार के एकमात्र जीवित सदस्य यशवंत आंबेडकर ने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए सामाजिक न्याय और समानता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। बचपन में ही अपने भाई-बहनों को खोने के बाद भी यशवंत ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अंबेडकरवादी बौद्ध आंदोलन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1977 में उनके निधन पर 10 लाख लोगों ने शवयात्रा में भाग लिया, जो उनके प्रभाव का प्रमाण है।
चार बच्चों – तीन बेटे और एक बेटी – के साथ यशवंत ने आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत छोड़ा।
यशवंत आंबेडकर का जीवन संघर्ष, त्याग और सफलता की प्रेरणादायक कहानी है।
उनकी विरासत आज भी सामाजिक न्याय और समानता के लिए लड़ने वालों** को प्रेरित करती है।
इस परिवार में प्रकाश अंबेडकर बाबासाहेब के बाद तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं और यशवंत के सबसे बड़े बेटे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, वे दलितों के आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं और उनके प्रति लोगों की पसंद है। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उन्हें माना जाता है। उन्होंने भारतीय बहुजन महासंघ की स्थापना की और 2018 में वंचित बहुजन आघाड़ी की स्थापना की। वे दो बार लोकसभा में चुने गए हैं और एक बार राज्यसभा में भी रहे हैं। प्रकाश ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें वे अपने विचारों को साझा करते हैं।
आनंदराज अंबेडकर डॉ. अंबेडकर के दूसरे पोते हैं,
जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं, लेकिन वे राजनीति में भी सक्रिय हैं। उन्होंने रिपब्लिकन सेना की स्थापना की और वह उसके नेता हैं। आनंदराज के दो बेटे साहिल और अमन हैं। भीमराव के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। एकमात्र पोती डॉ. बीआर अंबेडकर और यशवंत राव की बेटी रमा आनंद की शादी आनंद तेलतुंबडे से संपन्न हुई थी।
आनंद गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और उनकी लेखनी भी कई अखबारों में प्रकाशित होती है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद, उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से मैनेजमेंट का कोर्स किया और फिर भारत पेट्रोलियम में विभिन्न पदों पर काम किया। उन्होंने बाद में एकेडमिक क्षेत्र में प्रवेश किया और वे देश की जाति व्यवस्था पर अपने विचारों को शामिल करते रहे। उनकी बेटियां प्राची और रश्मि भी दलितों और वंचितों के मुद्दों पर लेखन करती हैं और सामाजिक परिवर्तन में अपना सक्रिय योगदान देती हैं।
सुजात आंबेडकर
डॉ. अंबेडकर की चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व सुजत के साथ उनके कई कार्यक्रमों को वह करते हैं। 26 साल के सुजत अब ट्विटर पर बहुत सक्रिय हैं और वे जनसभाएं भी आयोजित करते हैं, जहां भीड़ जमा होती है। उनके कर्ली बाल उन्हें एक अलग लुक देते हैं। तीन साल पहले, दलितों और वंचितों के लिए, उन्होंने एक वेबसाइट शुरू की है, जहां वे उन्हें ताकत देने का काम करते हैं। प्रकाश अंबेडकर के बेटे सुजत राजनीति में पिता का साथ दे रहे हैं, जिसके अलावा वे फर्गुसन कॉलेज से पत्रकारिता की डिग्री रखते हैं और कॉलेज में एक रॉक बैंड के सदस्य भी थे।
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