सावन सोमवार पूजा: सावन महीने के दौरान, भगवान शिव का पृथ्वी पर विशेष वास होता है, और इस अवसर पर काशी नगरी को भव्य तरीके से सजाया जाता है। इस पवित्र समय में, विशेष रूप से काशी में, भगवान शिव और विश्वनाथ समेत सभी शिव मंदिरों में विशेष पूजा और अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। सावन के महीने में शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली कांवड़ यात्रा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा और आराधना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सावन सोमवार पूजा: सावन में भगवान शिव की पूजा और कांवड़ यात्रा
सावन का महीना हिंदू कैलेंडर के अनुसार, जुलाई और अगस्त के बीच आता है। इस अवधि के दौरान, विशेष रूप से सोमवार के दिन, शिव भक्त विशेष पूजा और उपवास करते हैं। यह समय भगवान शिव की आराधना और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का होता है। काशी नगरी में, इस महीने के दौरान, हर गली और सड़क को सजाया जाता है, और शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मंदिरों में विशेष आरती, भजन, कीर्तन और हवन का आयोजन होता है, जिससे भक्तों की भक्ति और श्रद्धा को और भी बढ़ाया जा सके।
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कांवड़ यात्रा इस महीने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा नदी से पवित्र जल लेकर, सिर पर कांवड़ रखकर, लंबी दूरी की यात्रा करते हैं और भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भक्तों के धैर्य, समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक भी है। यात्रा के दौरान, भक्त विभिन्न मार्गों से यात्रा करते हैं और अपने पवित्र कांवड़ को गंगा जल से भरते हुए शिव मंदिरों तक पहुंचाते हैं।
सावन के महीने की विशेष पूजा विधियों में नाग स्तोत्र का पाठ भी महत्वपूर्ण है। यह पूजा पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। नाग स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को पितृ दोष से राहत मिलती है और उसकी समस्याएं दूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन में भगवान शिव की पूजा और नाग स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को विशेष पुण्य प्राप्त होता है और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस महीने का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह भक्तों को एक साथ मिलकर पूजा और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करता है। इस प्रकार, सावन का महीना भगवान शिव की आराधना और भक्ति का एक अनमोल समय होता है। यह समय भक्तों को एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करने, अपने पितृ दोष को दूर करने और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
सावन सोमवार पूजा: पितृ दोष से मुक्ति के लिए नाग स्तोत्र का महत्व
सावन के महीने के हर सोमवार को भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा का महत्व अत्यधिक होता है। इस पवित्र अवसर पर, भक्त भगवान शिव का अभिषेक करते हैं, जिससे उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त होता है। शिव पुराण में उल्लेखित है कि भगवान शिव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं, और उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस प्रकार, सावन के हर सोमवार को विधि-विधान से महादेव की पूजा और अभिषेक करना एक प्रमुख धार्मिक परंपरा है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के शरणागत व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। इस विशेष दिन पर, भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए सोमवार का व्रत रखते हैं। इसके साथ ही, पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भी इस दिन विशेष महत्व दिया जाता है।
सावन सोमवार पर पूजा के समय नाग स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। नाग स्तोत्र के पाठ से न केवल पितृ दोष से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है। यह स्तोत्र भगवान शिव के साथ-साथ नाग देवताओं की भी पूजा करता है, जो पितृ दोष को दूर करने में सहायक होता है। पितृ दोष से ग्रस्त व्यक्ति अगर सावन सोमवार को नाग स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करता है, तो उसे इस दोष से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में खुशहाली आती है।
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अतः सावन के हर सोमवार को भगवान शिव की पूजा, अभिषेक और नाग स्तोत्र के पाठ से पितृ दोष की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यह धार्मिक परंपरा न केवल आध्यात्मिक रूप से लाभकारी है, बल्कि भक्तों को मानसिक और शारीरिक रूप से भी सुकून प्रदान करती है। इस प्रकार, सावन सोमवार पर विशेष ध्यान और श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी समस्याओं का समाधान होता है और वे जीवन में सुख और शांति का अनुभव करते हैं।
देवों के देव महादेव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो सावन सोमवार पर गंगाजल से महादेव का अभिषेक करें। आप अपनी सुविधा अनुसार दूध, दही, घी या शहद से भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। पितृ दोष से निजात पाने के लिए गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। इस समय नाग स्तोत्र का पाठ करें।
॥ नाग स्तोत्रम् ॥
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥