सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में दोहराया कि अदालत के निर्णय सामान्य रूप से पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) होते हैं, जब तक कि आदेश में विशेष रूप से यह उल्लेख न किया गया हो कि यह भविष्य (प्रॉस्पेक्टिव) में लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट: अदालत के फैसलों की पूर्वव्यापी प्रकृति
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी विधायी और न्यायिक निर्णयों की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए आई है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा कि:
- विधायिका द्वारा बनाया गया कानून आमतौर पर भविष्यलक्षी (प्रॉस्पेक्टिव) होता है, जब तक कि विधायिका द्वारा बनाए गए कानून में स्पष्ट रूप से इसके पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) संचालन का उल्लेख न किया गया हो।
- न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय स्वाभाविक रूप से पूर्वव्यापी होता है, जब तक कि वह विशेष रूप से भविष्यलक्षी प्रभाव को स्पष्ट न करे।
खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई निर्णय भविष्यलक्षी प्रभाव के साथ लागू किया जाता है, तो इसका उद्देश्य उन व्यक्तियों को किसी भी अनावश्यक बोझ से बचाना होता है, जिन्होंने कानून की अपनी समझ के अनुसार कार्य किया था। यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि पहले से तय किए गए मामलों को अस्थिर न किया जाए, जिससे व्यापक स्तर पर अन्याय हो सकता है।
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प्रियंका श्रीवास्तव मामले का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने इस सैद्धांतिक अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) मामले का उदाहरण दिया। इस मामले में न्यायालय ने निर्देश दिया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत दायर शिकायतों के साथ शिकायतकर्ता को हलफनामा संलग्न करना अनिवार्य होगा।
इस फैसले का मुख्य उद्देश्य पुलिस जांच शुरू करने के लिए दायर तुच्छ और दुर्भावनापूर्ण शिकायतों की प्रवृत्ति को रोकना था।
फैसले का भविष्यलक्षी प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रियंका श्रीवास्तव मामले में दिया गया निर्देश भविष्यलक्षी प्रभाव के साथ लागू होगा। अदालत ने कहा कि:
- यह स्पष्ट रूप से न्यायाधीशों द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा से पता चलता है कि उनका इरादा यह था कि अब से प्रत्येक आवेदन के साथ हलफनामा संलग्न करना आवश्यक होगा।
- फैसले की तारीख से पहले दायर की गई शिकायतों को हलफनामा नहीं होने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
- ऐसे मामलों में, जहां निर्णय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यह भविष्य में लागू होगा, वहां इसे पूर्वव्यापी रूप से लागू करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
न्यायिक और विधायी अंतर
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि कानून बनाने और उसकी व्याख्या करने के बीच एक मूलभूत अंतर है। जहां विधायिका कानून बनाते समय उसे सामान्यतः भविष्यलक्षी बनाती है, वहीं न्यायालय किसी कानूनी प्रश्न पर निर्णय देते समय अतीत में भी उसकी वैधता की पुष्टि करता है।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
- न्यायालय द्वारा पारित निर्णय स्वाभाविक रूप से पूर्वव्यापी प्रभाव रखते हैं, जब तक कि विशेष रूप से इसे भविष्यलक्षी नहीं घोषित किया जाता।
- विधायी कानून आमतौर पर भविष्यलक्षी होते हैं, जब तक कि उसमें पूर्वव्यापी प्रभाव का स्पष्ट उल्लेख न हो।
- प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) मामले में निर्णय केवल भविष्यलक्षी था, क्योंकि इसका उद्देश्य तुच्छ शिकायतों को रोकना था।
- फैसले की भाषा और न्यायालय की मंशा से तय होता है कि वह निर्णय भविष्यलक्षी होगा या नहीं।
फैसलों का प्रभाव और कानूनी व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायिक व्यवस्था में कानूनी व्याख्या और उसके प्रभाव को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह स्पष्ट करता है कि जब तक विशेष रूप से उल्लेख न किया गया हो, अदालत के निर्णय पूर्वव्यापी होते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कानूनी प्रक्रिया में न्याय बना रहे और किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन न हो।
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