10 बोनस अंकों पर लगी रोक: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2019 में जारी की गई उस अधिसूचना को असंवैधानिक करार दिया है, जिसमें ग्रुप बी और ग्रुप सी की भर्तियों में “सामाजिक-आर्थिक मानदंड और अनुभव” के आधार पर अतिरिक्त 10 अंक देने की व्यवस्था की गई थी।
हाईकोर्ट ने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध) और 16 (लोक सेवाओं में समान अवसर) का उल्लंघन माना है। यह फैसला न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति मीनाक्षी आई. मेहता की खंडपीठ ने सुनाया।
जनहित के नाम पर संविधान की अनदेखी नहीं
कोर्ट ने कहा कि इस अधिसूचना के चलते भर्ती प्रक्रिया दूषित हो गई थी। यदि सामाजिक-आर्थिक मानदंड के नाम पर दिए गए बोनस अंकों को हटाया जाता, तो कहीं अधिक योग्य उम्मीदवार चयनित हो सकते थे। लेकिन बोनस अंकों की वजह से कुछ उम्मीदवारों को अनुचित लाभ मिला और यह संविधान के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने साफ तौर पर कहा, “ऐसे आवेदकों का कृत्रिम वर्ग बनाना जो 5 अतिरिक्त अंकों के पात्र माने गए, यह अनुच्छेद 16 के तहत तय सिद्धांतों के विपरीत है। संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत निर्धारित आरक्षणों को छोड़कर राज्य कोई और आरक्षण नहीं दे सकता। जनता को खुश करने के लिए बनाई गई ऐसी नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।”
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क्या था अधिसूचना का आधार?
कोर्ट ने बताया कि सरकार द्वारा घोषित सामाजिक-आर्थिक मानदंड और अनुभव के लिए दिए गए 10 अंकों का कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं था। यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए किसी भी नियम पर आधारित नहीं थी। कोर्ट ने कहा, “जो काम सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता, उसे परोक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता।”
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस नीति को लागू करने से पहले कोई ठोस आंकड़े या डेटा इकट्ठा नहीं किया गया था। जब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को पहले से आरक्षण दिया जा चुका है और पिछड़े वर्गों को सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्राप्त है, तब अतिरिक्त लाभ देना इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है।
पहले से नियुक्त अभ्यर्थियों पर क्या होगा असर?
हालांकि कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया को अवैध करार दिया, लेकिन पहले से नियुक्त अभ्यर्थियों की नौकरी पर संकट नहीं आने दिया। कोर्ट ने “कोई गलती नहीं” के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि जो उम्मीदवार पहले ही भर्ती हो चुके हैं और काफी समय से काम कर रहे हैं, उन्हें राहत दी जाएगी। वे भले ही नई मेरिट सूची में न आते हों, लेकिन उन्हें भविष्य की रिक्तियों में समायोजित किया जाएगा।
कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?
हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को निम्नलिखित आदेश दिए हैं:
A. राज्य सरकार को संशोधित मेरिट सूची जारी करनी होगी। इसके आधार पर वे उम्मीदवार जो वास्तव में योग्य हैं, उन्हें 2019 की भर्ती में नियुक्ति का अधिकार दिया जाएगा।
B. वे उम्मीदवार जो पहले ही नियुक्त हो चुके हैं और यदि वे संशोधित मेरिट में भी आते हैं, तो वे अपनी नौकरी पर बने रहेंगे।
C. जो नियुक्त कर्मचारी संशोधित मेरिट के बाहर हो जाते हैं, उन्हें भविष्य की रिक्तियों में समायोजित किया जाएगा। यदि तत्काल रिक्तियां नहीं होंगी, तो वे तदर्थ (ad hoc) आधार पर काम करते रहेंगे और जैसे ही रिक्तियां उपलब्ध होंगी, उन्हें नियमित किया जाएगा।
D. संशोधित मेरिट के अनुसार चयनित नए उम्मीदवार पहले से नियुक्त और मेरिट से बाहर रहे कर्मचारियों की तुलना में वरिष्ठ माने जाएंगे।
E. संशोधित मेरिट के आधार पर चयनित नए उम्मीदवारों को नियुक्ति की वही तारीख दी जाएगी जो पहले नियुक्त समान स्तर के अन्य कर्मचारियों की थी। हालांकि, इस अवधि के दौरान उनका वेतन काल्पनिक (notional) माना जाएगा।
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आरक्षण की संवैधानिक सीमा को पार नहीं कर सकती सरकारें
यह फैसला न केवल हरियाणा सरकार की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि राज्य सरकारें आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों से परे जाकर सामाजिक-आर्थिक आधार पर कृत्रिम लाभ नहीं दे सकतीं। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि योग्य उम्मीदवारों को न्याय मिले, लेकिन जिनकी पहले से नियुक्ति हो चुकी है, उन्हें अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े।
यह फैसला उन सरकारी नीतियों के लिए एक चेतावनी है जो बिना संवैधानिक और कानूनी आधार के सिर्फ लोकप्रियता या वोटबैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं।