MADHYA PRADESH HC: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि जब बहू को यह एहसास हो जाए कि ससुराल पक्ष ने सुलह की किसी भी संभावना को समाप्त कर दिया है, तो उसके बाद दर्ज की गई एफआईआर को तलाक याचिका का प्रतिशोध नहीं माना जा सकता।
हाईकोर्ट ने यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें पति और ससुराल वालों ने एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
MADHYA PRADESH HC: एफआईआर को रद्द करने की याचिका
यह याचिका आईपीसी की धारा 498ए, 323, 294, 506, 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज एफआईआर को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप सामान्य, अस्पष्ट और बिना किसी ठोस आधार के हैं। उनका कहना था कि यह एफआईआर केवल तलाक याचिका का प्रतिशोध है, जिसे पति ने पहले दायर किया था।
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न्यायमूर्ति जी. एस. अहलूवालिया की एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, “यदि पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के उद्देश्य से धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है, तो इसे उसकी कमजोरी नहीं माना जा सकता।
इसके विपरीत, यह उसके वैवाहिक जीवन के प्रति उसकी गंभीरता और ईमानदारी को दर्शाता है।” न्यायालय ने यह भी कहा कि एफआईआर में दर्ज आरोप पर्याप्त रूप से स्पष्ट और सटीक हैं, जो अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करते हैं।
MADHYA PRADESH HC: एफआईआर का आधार और आरोप
एफआईआर में पत्नी ने आरोप लगाया कि:
- दहेज की मांग: 2015 में शादी के समय उसके पिता ने 11 लाख रुपये नकद और घरेलू सामान दिया था। लेकिन शादी के बाद से ही ससुराल पक्ष दहेज से असंतुष्ट था।
- अतिरिक्त दहेज की मांग: एक बच्ची के जन्म के बाद, ससुराल पक्ष ने 5 लाख रुपये नकद और एक हौंडा कार की मांग की।
- मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना: पत्नी को लगातार दहेज लाने के लिए ताने दिए गए और प्रताड़ित किया गया। जब उसने अपने माता-पिता और पुलिस से मदद मांगी, तब भी प्रताड़ना जारी रही।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह एफआईआर केवल उन्हें परेशान करने के लिए दायर की गई थी। उन्होंने कहा कि पति द्वारा तलाक याचिका दायर करने के बाद ही यह शिकायत दर्ज की गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह शिकायत बदले की भावना से की गई है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप स्पष्ट हैं और इनका उद्देश्य केवल प्रतिशोध लेना नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ससुराल पक्ष की महिलाएं, जो परिवार के मामलों में हस्तक्षेप कर रही थीं, पर भी एफआईआर में स्पष्ट आरोप लगाए गए हैं।
MADHYA PRADESH HC: ससुराल पक्ष की जिम्मेदारी
न्यायालय ने कहा, “यदि बहू को यह एहसास हो जाए कि ससुराल पक्ष सुलह की किसी भी संभावना को समाप्त कर चुका है और वह उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करती है, तो इसे प्रतिशोध के रूप में नहीं देखा जा सकता।” यह भी कहा गया कि दहेज उत्पीड़न के मामले में लगाए गए आरोपों की जांच करना और उनका सत्यापन करना पुलिस और न्यायालय का काम है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप केवल सामान्य हैं और बिना किसी सबूत के लगाए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ससुराल पक्ष के करीबी रिश्तेदारों को फंसाने की कोशिश की गई है। लेकिन न्यायालय ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि आरोप पर्याप्त रूप से सटीक और स्पष्ट हैं, जो अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में एफआईआर को रद्द करने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत न्यायालय केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, जहां आरोप स्पष्ट रूप से गलत हों और कोई अपराध बनता ही न हो।
MADHYA PRADESH HC: मामले का विवरण
मामला: डिकी राम तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
न्यायालय: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
न्यायाधीश: न्यायमूर्ति जी. एस. अहलूवालिया
तिथि: 2024
याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट राज कुमार श्रीवास्तव
प्रत्युत्तर: लोक अभियोजक अंजलि ज्ञानानी और एडवोकेट बी.के. शर्मा
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि जब बहू यह महसूस करती है कि ससुराल पक्ष ने सुलह की संभावना समाप्त कर दी है, तो उसके द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को प्रतिशोध मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि दहेज उत्पीड़न और क्रूरता के आरोप गंभीर हैं और इनकी जांच करना आवश्यक है।