90 दिन का ट्रेड सीजफायर: भारतीय शेयर बाजार में पिछले कुछ महीनों से सकारात्मक माहौल बना हुआ था। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FII) ने अप्रैल से अब तक भारतीय बाजार में करीब 2 अरब डॉलर का निवेश किया है।
इस निवेश की प्रमुख वजह अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा ट्रेड वार था। लेकिन अब दोनों देशों के बीच टैरिफ को लेकर हुए ताजा समझौते ने भारत की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अमेरिका और चीन ने हाल में एक-दूसरे पर लगाए गए भारी टैरिफ में कटौती करने का निर्णय लिया है, जो अब से लागू हो गया है और आगामी 90 दिनों तक प्रभावी रहेगा। इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार और निवेश माहौल पर पड़ सकता है।
90 दिन का ट्रेड सीजफायर: निवेशकों के लिए भारत क्यों बना था सुरक्षित ठिकाना?
ट्रेड वॉर के दौरान अमेरिकी और चीनी बाजारों में अनिश्चितता बढ़ गई थी। इसके चलते वैश्विक निवेशकों को वैकल्पिक सुरक्षित और स्थिर बाजारों की तलाश थी। भारत इस समय पर एक आकर्षक विकल्प बनकर उभरा। मजबूत करेंसी, स्थिर राजनीति, तकनीकी और फार्मा क्षेत्रों की मजबूती, और मजबूत उपभोक्ता मांग के कारण भारत में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी। अप्रैल से अब तक FII ने भारत में करीब 2 बिलियन डॉलर की खरीदारी की है।
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अमेरिका-चीन ‘सीजफायर’ का असर
अब जबकि अमेरिका और चीन ने टैरिफ में कटौती का निर्णय लिया है और एक अस्थायी समझौता किया है, तो इससे निवेशकों का झुकाव एक बार फिर चीन की ओर हो सकता है। CLSA के विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका-चीन के बीच इस समझौते से भारत की चमक थोड़ी कम हो सकती है। मार्च 2025 तक भारत का बाजार एशिया में दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला रहा है, लेकिन अब यह स्थिति बदल सकती है।
क्या चीन निवेशकों के लिए फिर से आकर्षक होगा?
हालांकि, इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। ओम्नीसाइंस कैपिटल के सीईओ डॉ. विकास गुप्ता का कहना है कि निवेशकों को चीन की अर्थव्यवस्था पर अब भरोसा नहीं है। उन्होंने बताया कि MSCI चीन ETF (MCHI) पिछले 13 वर्षों से लगभग स्थिर है, जबकि चीन की GDP तेजी से बढ़ी है। इसका अर्थ यह हुआ कि कंपनियों की वैल्यू बढ़ाने में चीन की अर्थव्यवस्था सफल नहीं रही है। उन्होंने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था में कई गहरी समस्याएं हैं जैसे अत्यधिक कर्ज, कामकाजी आबादी में गिरावट और कमजोर बैंकिंग सिस्टम।
डॉ. गुप्ता का मानना है कि कुछ समय के लिए भले ही निवेशक चीन में पैसा लगाएं, लेकिन दीर्घकाल में यह जोखिम भरा रहेगा।
चीन की संभावनाओं को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण
दूसरी ओर वाटरफील्ड एडवाइजर्स के विवेक राजारामन का कहना है कि चीन अब भी निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। उनका मानना है कि चीन में आर्थिक सुधार हो रहे हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे क्षेत्रों में उन्होंने उल्लेखनीय प्रगति की है। इसका असर यह होगा कि अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर के दौरान जो निवेश भारत में आया था, उसका एक हिस्सा अब फिर से चीन की ओर जा सकता है।
राजारामन ने यह भी कहा कि भारत को इस स्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि भारत की ग्रोथ स्टोरी अब भी मजबूत बनी हुई है। भारत की करेंसी स्थिर है और घरेलू बाजार में स्थिरता व मांग मौजूद है।
असली चुनौती मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में मुकाबला
विवेक राजारामन का कहना है कि भारत और चीन के बीच असली मुकाबला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में होगा। चीन से आने वाला इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल और फार्मास्युटिकल API अब फिर से सस्ता हो सकता है। इससे भारत की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को चुनौती मिल सकती है। चीन से भारत में उत्पादन शिफ्ट करने की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी, वह अमेरिका-चीन के समझौते से धीमी हो सकती है। इससे भारत की मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ को झटका लग सकता है।
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भारतीय मैन्युफैक्चरिंग को चाहिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा की धार
हालांकि भारत को इससे डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि इस चुनौती को अवसर में बदलने की आवश्यकता है। भारत को अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा। इसके लिए सरकार को लॉजिस्टिक्स लागत, प्रोडक्शन लागत और सप्लाई चेन को दुरुस्त करना होगा। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में कुछ सफलता मिली है, लेकिन अब उसे और व्यापक स्तर पर फैलाना जरूरी हो गया है।
भारत अब भी चाइना-प्लस-वन रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके तहत कंपनियां चीन के बाहर वैकल्पिक देशों में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करना चाहती हैं।
अगर भारत सरकार लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाती है, टेक्नोलॉजी पर निवेश बढ़ाती है और व्यापार की लागत को कम करती है, तो भारत का आकर्षण न केवल बना रहेगा बल्कि और बढ़ेगा। भारत और यूके के बीच होने वाले संभावित व्यापार समझौते से भी निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
चीन की कमजोरियां बन सकती हैं भारत की ताकत
अमेरिका और चीन के बीच हुए ट्रेड सीजफायर ने भारत के सामने एक नई चुनौती खड़ी की है। हालांकि चीन की अर्थव्यवस्था में मौजूदा समस्याएं और भारत की आंतरिक मजबूती यह संकेत देती है कि भारत पूरी तरह कमजोर नहीं पड़ेगा। लेकिन यह जरूरी है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग, निर्यात, लॉजिस्टिक्स और निवेश माहौल में तेजी से सुधार करे ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित करता रहे।
इस सीजफायर से भारत को जो सबक मिला है, वह यही है कि वैश्विक व्यापार राजनीति में स्थायित्व नहीं होता, और भारत को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना होगा।