ALLAHABAD HC: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह निर्देश दिया कि असहाय महिलाओं के भरण-पोषण मामलों को प्राथमिकता से निपटाया जाए, जो अपने माता-पिता, ससुराल या पतियों से समर्थन प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। इस आदेश में न्यायालय ने परिवार न्यायालयों के न्यायधीशों से अपेक्षा की है कि वे इन मामलों को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ सुनवाई करें।
इसके साथ ही, न्यायिक अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण सत्रों में इस प्रकार के मामलों में न्यायिक अनुशासन और गरिमा बनाए रखने के लिए संवेदनशील बनाने का आदेश दिया।
ALLAHABAD HC: मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के संदर्भ में था, जिसमें पुनरीक्षणकर्ता पत्नी ने भरण-पोषण की प्रक्रिया शुरू की थी। रिवीजनकर्ता पत्नी ने 2012 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार प्रतिवादी पति से विवाह किया था, और इस विवाह पर लगभग दस लाख रुपये खर्च किए गए थे।
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विवाह के बाद, रिवीजनकर्ता पत्नी ने सभी वैवाहिक जिम्मेदारियां पूरी की और 2015 में एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन इसके बावजूद, ससुराल वालों ने दहेज की मांग करना शुरू कर दिया और मानसिक व शारीरिक क्रूरता करना जारी रखा।
रिवीजनकर्ता पत्नी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी पति के छोटे भाई ने कई बार उसकी इज्जत पर हमला करने की कोशिश की, और जब उसने इस बारे में अपने पति से शिकायत की तो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। 2017 में, छोटे भाई ने रिवीजनकर्ता पत्नी से बलात्कार का प्रयास किया था, और मेडिकल परीक्षा भी कराई गई थी। इसके बाद से, रिवीजनकर्ता पत्नी अलग रहने लगी थी और उसके पास कोई आय का स्रोत नहीं था, जिससे वह एक असहाय जीवन जी रही थी।
ALLAHABAD HC: परिवार न्यायालय का आदेश
रिवीजनकर्ता पत्नी ने परिवार न्यायालय में भरण-पोषण के लिए आवेदन किया, लेकिन न्यायालय ने महीने के 5000 रुपये पत्नी और 3000 रुपये मासिक भरण-पोषण के रूप में बेटी को देने का आदेश दिया था।
हालांकि, प्रतिवादी पति ने कोई भी भुगतान नहीं किया। इसके बाद, प्रतिवादी पति ने सीआरपीसी की धारा 126(2) के तहत आवेदन दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया। इससे पीड़ित महिला ने उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
न्यायालय ने इस मामले में पाया कि रिवीजनकर्ता पत्नी के पास कोई आय का स्रोत नहीं था और वह पूरी तरह से असहाय थी। न्यायालय ने यह भी देखा कि रिवीजनकर्ता पत्नी ने अदालत में नियमित रूप से उपस्थिति दर्ज कराई थी, लेकिन मामला लगभग छह साल से लटका हुआ था। न्यायालय ने महसूस किया कि परिवार न्यायालयों के न्यायधीशों को ऐसे मामलों में अधिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ कार्य करना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि परिवार न्यायालय को इस मामले को फिर से देखे जाने का आदेश दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इसका निपटान किया जाए।
ALLAHABAD HC: संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की आवश्यकता
न्यायालय ने इस मामले में उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के पालन की आवश्यकता को बल दिया और परिवार न्यायालयों के न्यायधीशों से अपेक्षाएँ रखी कि वे संवेदनशीलता के साथ कार्य करें और समाज में महिलाओं के अधिकारों और गरिमा को बनाए रखें। न्यायालय ने यह भी कहा कि न्यायाधीशों को इस मामले में अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उचित और शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।
न्यायालय ने न्यायिक अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण सत्रों में इस प्रकार के मामलों की संवेदनशीलता के बारे में अवगत कराने का आदेश दिया। उच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक को निर्देश दिया कि न्यायधीशों को न्यायिक अनुशासन और गरिमा बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए।
ALLAHABAD HC: न्यायपालिका की जिम्मेदारी
इस मामले को समाप्त करते हुए, उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि असहाय महिलाओं के भरण-पोषण के मामलों को शीघ्र निपटाना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। न्यायालय ने कहा कि परिवार न्यायालयों के न्यायधीशों को इस जिम्मेदारी को समझते हुए, उचित संवेदनशीलता के साथ और समय पर निर्णय लेने चाहिए।
मामला: X बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (न्युट्रल संदर्भ: 2024: AHC: 192598)
वकील: रिवीजनकर्ता: ब्रज मोहन सिंह, प्रतिवादी: सरकारी वकील सुधीर मेहरोत्रा