ALLAHABAD HC: 17वीं सदी के हम्माम की सुरक्षा का निर्देश

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By headlineslivenews.com

ALLAHABAD HC: 17वीं सदी के हम्माम की सुरक्षा का निर्देश

ALLAHABAD HC: यह मामला चंद्रपाल सिंह राणा द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर आधारित है, जिसमें आगरा स्थित 17वीं सदी के हम्माम (सार्वजनिक

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ALLAHABAD HC: यह मामला चंद्रपाल सिंह राणा द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर आधारित है, जिसमें आगरा स्थित 17वीं सदी के हम्माम (सार्वजनिक स्नानघर) को निजी व्यक्तियों द्वारा ध्वस्त किए जाने की धमकी के खिलाफ सुरक्षा की मांग की गई थी।

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याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह हेरिटेज भवन राष्ट्रीय महत्व का है और इसे राज्य अधिकारियों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सुरक्षा दी जानी चाहिए, क्योंकि यह प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षण योग्य है।

ALLAHABAD HC: न्यायालय का आदेश और आदेश की विस्तृत व्याख्या

न्यायमूर्ति सलिल राय और न्यायमूर्ति समित गोपाल की पीठ ने याचिका पर विचार करते हुए एएसआई और अन्य राज्य प्राधिकरणों को आदेश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे। विशेष रूप से, न्यायालय ने आगरा के पुलिस आयुक्त को भी आदेश दिया कि वह स्मारक को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात करें।

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न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि स्मारक की सुरक्षा के लिए एएसआई और पुलिस को एक साथ काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्मारक को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।

चंद्रपाल सिंह राणा ने अपनी याचिका में बताया कि आगरा का हम्माम 1620 ई. में निर्मित हुआ था और यह भारतीय धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एएसआई द्वारा एक साल पहले इस हेरिटेज भवन का सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की पुष्टि की गई थी।

हालांकि, यह स्मारक अभी तक एक प्राचीन स्मारक के रूप में घोषित नहीं किया गया है, जिससे इसे विशेष कानूनी सुरक्षा का लाभ नहीं मिल सका है। इसके बावजूद, न्यायालय ने मामले में अंतरिम संरक्षण प्रदान किया और स्मारक को ध्वस्त किए जाने से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता जताई।

ALLAHABAD HC: न्यायालय का तर्क और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कर्तव्य

न्यायालय ने यह माना कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और राज्य प्राधिकरणों का यह कर्तव्य है कि वे इस स्मारक की सुरक्षा सुनिश्चित करें, क्योंकि यह पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत 400 साल पुराना स्मारक होने के नाते इस पर विशेष सुरक्षा नियम लागू होते हैं। इस आदेश का उद्देश्य यह था कि स्मारक को किसी भी प्रकार का नुकसान या विध्वंस से बचाया जा सके।

न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2025 को निर्धारित की है। इस तारीख को उचित पीठ द्वारा मामले पर नए सिरे से विचार किया जाएगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई नहीं होगी और इसे अगली तारीख को नई पीठ के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। यह निर्णय मामले की जटिलता और महत्व को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

ALLAHABAD HC: प्रतिनिधित्व और उपस्थित अधिवक्ता

चंद्रपाल सिंह राणा की ओर से अधिवक्ता विक्रांत डबास, शाद खान और चंद्र प्रकाश सिंह उपस्थित हुए, जबकि उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग और आगरा पुलिस का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता मनु घिल्डियाल ने किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह ने किया। इन वकीलों ने अपने-अपने पक्षों का समर्थन किया और न्यायालय को आवश्यक जानकारी प्रदान की।

यह मामला केवल एक स्मारक की सुरक्षा का नहीं, बल्कि भारतीय धरोहर की रक्षा का भी है। अदालत का यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है जो यह स्पष्ट करता है कि भारत में प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा के लिए कानून और न्यायपालिका दोनों सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।

न्यायालय ने राज्य और एएसआई को यह जिम्मेदारी दी है कि वे सुनिश्चित करें कि इस महत्वपूर्ण स्मारक का संरक्षण किया जाए और इसे किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाया जाए।

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ALLAHABAD HC: भविष्य में एएसआई की भूमिका और राज्य की जिम्मेदारी

अगली सुनवाई में न्यायालय यह निर्णय ले सकता है कि एएसआई और राज्य प्राधिकरणों द्वारा इस स्मारक की सुरक्षा के लिए क्या स्थायी कदम उठाए जाएंगे। इस मामले में, एएसआई की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जिम्मेदारी उन्हें दी गई है कि वे इस स्मारक की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करें।

इसके अलावा, राज्य सरकार को भी इस मामले में अपनी भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी ताकि इस स्मारक की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें।

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इस आदेश का न केवल आगरा के हम्माम पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि यह पूरे देश के प्राचीन स्मारकों और धरोहर स्थलों की सुरक्षा के लिए एक मिसाल भी पेश करेगा। यदि यह मामला सकारात्मक रूप से हल होता है, तो भविष्य में अन्य धरोहरों की रक्षा के लिए ऐसे ही कदम उठाए जा सकते हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चंद्रपाल सिंह राणा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 17वीं सदी के आगरा के हम्माम को अंतरिम सुरक्षा प्रदान की और एएसआई तथा राज्य प्राधिकरणों को स्मारक की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। इस आदेश से भारतीय पुरातत्व के संरक्षण और धरोहर स्थलों की सुरक्षा के प्रति न्यायालय की सक्रिय भूमिका की पुष्टि होती है।

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