Allahabad High Court: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण साक्ष्यों के आधार पर तथ्यात्मक मामलों पर निर्णय ले सकता है

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By headlineslivenews.com

Allahabad High Court: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण साक्ष्यों के आधार पर तथ्यात्मक मामलों पर निर्णय ले सकता है

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में यह स्पष्ट किया है कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) को सेवा विवादों

ATUL SUBHASH CASE

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में यह स्पष्ट किया है कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) को सेवा विवादों का निपटारा करते समय तथ्यात्मक प्रश्नों पर विचार करने और साक्ष्यों के आधार पर निर्णय करने का अधिकार है। यह अधिकार सिविल कोर्ट के समान है, भले ही CAT सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के प्रावधानों से बंधा नहीं है।

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यह आदेश एक रिट याचिका के निपटारे के दौरान दिया गया, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, लखनऊ द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। उस आदेश में याचिकाकर्ता द्वारा दायर स्थानांतरण आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

Allahabad High Court: मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में याचिकाकर्ता अरुण कुमार गुप्ता ने CAT के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी स्थानांतरण याचिका को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता उत्सव मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने पक्ष रखा, जबकि केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASGI) अनुराग श्रीवास्तव और अधिवक्ता राज कुमार सिंह ने पक्ष रखा।

याचिकाकर्ता का दावा था कि उनकी स्थानांतरण याचिका पर CAT ने गलत आधारों पर विचार नहीं किया और मामले की गहराई से जांच किए बिना इसे खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि CAT को आदेश दिया जाए कि वह याचिका पर पुनः विचार करे और इस बार तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर उचित निर्णय ले।

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Allahabad High Court: कोर्ट का फैसला

न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पास तथ्यों के सवालों पर विचार करने और साक्ष्यों के आधार पर निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CAT सिविल कोर्ट के समान है और यह सेवा विवादों के मामलों में प्रथम उदाहरण की अदालत के रूप में कार्य करता है।

कोर्ट ने कहा: “अधिकरण सेवा विवादों का निपटारा करते समय तथ्यों के सवालों पर विचार करने और साक्ष्यों के आधार पर निर्णय लेने का अधिकार रखता है, जैसा सिविल कोर्ट करता है। भले ही अधिकरण पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के प्रावधानों का बंधन न हो, पर यह वास्तव में सिविल कोर्ट का एक विकल्प है।”

Allahabad High Court: अधिकरणों की शक्तियों का विस्तार

कोर्ट ने यह भी कहा कि 1985 के प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम की धारा 22 के तहत अधिकरणों को कई शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। इनमें शामिल हैं:

  1. प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति: अधिकरण अपनी प्रक्रियाओं को निर्धारित कर सकता है और उसे दंड प्रक्रिया संहिता या सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
  2. दस्तावेजों की खोज और प्रस्तुत करने की शक्ति: अधिकरण दस्तावेजों को प्रस्तुत करने और उनकी खोज की प्रक्रिया में शामिल हो सकता है।
  3. हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति: अधिकरण हलफनामों के माध्यम से साक्ष्य ले सकता है और साक्ष्यों के आधार पर निर्णय ले सकता है।
  4. अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति: अधिकरण को यह भी अधिकार है कि वह अपने पूर्व में दिए गए निर्णयों की समीक्षा कर सके।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इन प्रक्रियाओं के बावजूद, अधिकरणों को साक्ष्यों का मूल्यांकन करने और तथ्यात्मक निष्कर्ष निकालने की आवश्यकता होती है। CAT को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर ही निर्णय ले, न कि केवल उच्च न्यायालय की तरह संक्षिप्त कार्यवाही में।

Allahabad High Court: उच्च न्यायालय की सीमाएँ

कोर्ट ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों के पास तथ्यात्मक निष्कर्षों का पुनर्मूल्यांकन करने की शक्ति नहीं है। उच्च न्यायालय के कार्यवाहीयाँ सामान्य रूप से संक्षिप्त होती हैं, जबकि अधिकरणों की कार्यवाही अधिक विस्तृत हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें तथ्यों और साक्ष्यों पर गहराई से विचार करना होता है।

कोर्ट ने पाया कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण ने स्थानांतरण याचिका पर विचार करते समय गलतफहमी के तहत तथ्यों पर विचार करने से इनकार कर दिया था। अधिकरण इस गलतफहमी में था कि उसे केवल उच्च न्यायालय की तरह संक्षिप्त कार्यवाही करनी है, जबकि वास्तव में उसे तथ्यात्मक सवालों पर निर्णय करने का पूरा अधिकार है।

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Allahabad High Court: अधिकरण सिविल कोर्ट का विकल्प है

कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकरण वास्तव में सिविल कोर्ट का एक विकल्प है। 1985 के प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम के लागू होने से पहले सभी प्रशासनिक मामलों का निपटारा सिविल कोर्ट में किया जाता था। लेकिन अधिनियम के लागू होने के बाद, यह जिम्मेदारी अधिकरणों को दी गई कि वे प्रशासनिक मामलों का प्रथम उदाहरण की अदालत के रूप में निपटारा करें।

सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट ने एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ (1997) के मामले में कहा था कि अधिकरण ‘उन कानूनों के क्षेत्रों के लिए प्रथम उदाहरण की अदालतें होती हैं, जिनके लिए उनका गठन किया गया है।’ अधिकरणों का यह कार्यभार सुनिश्चित करता है कि वे तथ्यात्मक सवालों पर भी विचार कर सकें और निर्णय कर सकें, जैसे सिविल कोर्ट करती है।

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Allahabad High Court: मामले का निष्कर्ष

हाई कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, लखनऊ के आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की स्थानांतरण याचिका पर नए सिरे से सुनवाई की जाए। कोर्ट ने कहा कि इस बार अधिकरण तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर उचित निर्णय ले।

मामला शीर्षक: अरुण कुमार गुप्ता बनाम भारत संघ
न्यूट्रल सिटेशन नंबर: 2024:AHC-LKO:68607-DB

Allahabad High Court: प्रतिनिधित्व

  • याचिकाकर्ता की ओर से: अधिवक्ता उत्सव मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा
  • प्रतिवादी की ओर से: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASGI) अनुराग श्रीवास्तव और अधिवक्ता राज कुमार सिंह
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