ALLAHABAD HIGH COURT: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह कहा कि राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन में पारिवारिक पेंशन भी शामिल होनी चाहिए, और यह पेंशन उसी प्रकार की होनी चाहिए जैसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी जाती है। यह फैसला न्यायमूर्ति विनोद चंद्र मिश्रा, पूर्व उच्च न्यायालय न्यायाधीश द्वारा दाखिल की गई एक रिट याचिका के संदर्भ में आया, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के विधि विभाग के प्रधान सचिव के एक आदेश को चुनौती दी थी।
यह मामला इसलिए खास है क्योंकि इसमें राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी जाने वाली पेंशन की समानता का सवाल उठाया गया था। मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि अगर पेंशन की बात होती है, तो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष के बीच कोई अंतर नहीं होना चाहिए।
ALLAHABAD HIGH COURT: कोर्ट की टिप्पणी
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न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि कानून और नियम पारिवारिक पेंशन के भुगतान के लिए किसी विशेष या सीधे प्रावधान का उल्लेख नहीं करते हैं। हालांकि, नियम 4(5) यह साफ तौर पर कहता है कि अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी जाने वाली पेंशन के बराबर होनी चाहिए। इसे न्यायाधीश अधिनियम और न्यायाधीश नियमों के तहत लागू किया जाना चाहिए।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि, “यह स्वीकार्य नहीं हो सकता कि पेंशन की पात्रता के लिए न्यायाधीश अधिनियम और न्यायाधीश नियमों को मान्य किया जाए और पारिवारिक पेंशन की पात्रता के लिए इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए।” इसका मतलब यह है कि पेंशन और पारिवारिक पेंशन दोनों के मामले में न्यायाधीश अधिनियम और न्यायाधीश नियमों का ही पालन होना चाहिए।
ALLAHABAD HIGH COURT: मामले के तथ्य
इस मामले में याचिकाकर्ता न्यायमूर्ति विनोद चंद्र मिश्रा 2008 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। जब वे इस पद पर नियुक्त हुए थे, उस समय अधिनियम और नियम लागू नहीं थे। बाद में, 2010 में उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग अधिनियम और 2011 में उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (अध्यक्ष के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें) नियम लागू किए गए।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने 2012 में राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद उन्होंने अधिनियम और नियमों के तहत पेंशन की पात्रता का दावा किया। हालांकि, राज्य सरकार ने उनके पेंशन दावे को खारिज कर दिया, जिसके बाद यह मामला न्यायालय में गया।
कोर्ट के निर्देशों के आधार पर 2015 में पेंशन मंजूर की गई और बकाया राशि का भुगतान किया गया। हालांकि, इस मामले में एक और मुद्दा पेंशन पर ब्याज का था, जिसे लेकर विवाद बना रहा।
ALLAHABAD HIGH COURT: पारिवारिक पेंशन पर विवाद
जहां तक पारिवारिक पेंशन की बात है, याचिकाकर्ता ने इसे प्राप्त करने का दावा किया था। लेकिन राज्य सरकार ने उनके दावे को अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने इस मामले पर विचार करते हुए पाया कि कानून या नियमों के तहत ‘पेंशन’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
धारा 4(5) के तहत यह साफ तौर पर कहा गया है कि अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन और भत्ते वही होंगे जो निर्धारित किए गए हैं। इसमें यह भी स्पष्ट है कि राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी जाने वाली पेंशन के बराबर होगी।
इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि न्यायाधीश अधिनियम और न्यायाधीश नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन को भी ‘पेंशन’ की पात्रता में शामिल किया गया है। इसका मतलब यह है कि यदि राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष की पत्नी को पारिवारिक पेंशन की आवश्यकता पड़ती है, तो वह भी इस पेंशन का हिस्सा होंगी।
अदालत ने कहा, “इस प्रकार, हमारा विचार है कि राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष को दी जाने वाली पेंशन में पारिवारिक पेंशन भी शामिल है, जो उस स्थिति में अध्यक्ष की पत्नी को मिलनी चाहिए, यदि वह परिस्थिति उत्पन्न होती है।” न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ने कभी दो पेंशन का दावा नहीं किया है, बल्कि केवल उस उच्च पेंशन का अंतर प्राप्त किया है जो उन्हें राज्य से अध्यक्ष के रूप में सेवा करने के कारण मिल रही है।
ALLAHABAD HIGH COURT: अंतिम फैसला
अंततः, उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के आदेश को खारिज कर दिया और तीन महीने के भीतर पारिवारिक पेंशन का भुगतान करने का निर्देश दिया। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष को भी वही पेंशन और पारिवारिक पेंशन मिलनी चाहिए जो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को मिलती है।
न्यायमूर्ति विनोद चंद्र मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य (न्यायालय की संदर्भ संख्या: 2024:AHC:164582-DB)
ALLAHABAD HIGH COURT: प्रतिनिधित्व
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी.के. सिंह, नंद लाल और प्रकाश चंद्र शुक्ला ने पैरवी की, जबकि प्रतिवादियों की ओर से अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता (एडिशनल CSC) कृतिका सिंह ने उनका पक्ष रखा।