BJP का बड़ा दांव: दिल्ली की सत्ता से 25 वर्षों से दूर रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस बार के विधानसभा चुनाव में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।
बीजेपी ने पुरानी और नई रणनीतियों को मिलाकर मैदान में उतरने की तैयारी की है। लेकिन मौजूदा विधायकों के टिकट वितरण के फैसले ने पार्टी के भीतर और बाहर हलचल मचा दी है। पार्टी ने अपने सात मौजूदा विधायकों में से चार को टिकट दिया है, एक विधायक का टिकट काट दिया गया है, और दो के टिकटों पर अभी भी सस्पेंस बरकरार है। यह निर्णय आगामी चुनावी समीकरणों को दिलचस्प बना रहा है।
BJP का बड़ा दांव: टिकट वितरण में बदलाव पुराने नामों की विदाई और नए चेहरों की एंट्री
BJP का बड़ा दांव: बीजेपी ने पहली सूची में 2020 में जीते आठ विधायकों में से चार के नाम का ऐलान कर दिया है। इनमें रोहिणी से विजेंद्र गुप्ता, विश्वास नगर से ओमप्रकाश शर्मा, घोंडा से अजय महावर और रोहताश नगर से जितेंद्र महाजन शामिल हैं। वहीं, गांधी नगर से विधायक अनिल वाजपेयी का टिकट काटकर कांग्रेस के पूर्व नेता अरविंदर सिंह लवली को मैदान में उतारा गया है। लवली, जो शीला दीक्षित सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं, गांधी नगर से 1998 से 2013 तक चार बार विधायक रह चुके हैं। यह बदलाव बीजेपी के लिए एक साहसिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि वाजपेयी 2020 में यह सीट आप से जीतने में कामयाब हुए थे।
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BJP का बड़ा दांव: टिकट होल्ड करावल नगर और लक्ष्मी नगर सीटों पर अनिश्चितता
करावल नगर से मौजूदा विधायक मोहन सिंह बिष्ट और लक्ष्मी नगर से विधायक अभय वर्मा के नामों का ऐलान अब तक नहीं किया गया है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी इन दोनों सीटों के लिए अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है।करावल नगर से पांच बार के विधायक मोहन सिंह बिष्ट की सीट पर सस्पेंस बना हुआ है।
पार्टी ने उन्हें दूसरी सीट से लड़ने का विकल्प दिया है, लेकिन बिष्ट करावल नगर से ही अपनी दावेदारी पर अड़े हुए हैं। इस सीट पर कपिल मिश्रा जैसे बड़े चेहरे की एंट्री की संभावना जताई जा रही है। कपिल मिश्रा 2015 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर यहां से विधायक रह चुके हैं और 2020 के नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगों के बाद से लगातार चर्चा में बने हुए हैं।
लक्ष्मी नगर वर्मा के खिलाफ अंदरूनी विरोध
लक्ष्मी नगर से 2020 में आप के विधायक नितिन त्यागी को हराने वाले अभय वर्मा का टिकट भी होल्ड पर है। त्यागी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जिससे इस सीट पर मुकाबला और दिलचस्प हो गया है। सूत्र बताते हैं कि वर्मा के खिलाफ पार्टी के लोकल नेताओं और पार्षदों का विरोध पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। पार्टी का एक अंदरूनी सर्वे भी वर्मा के खिलाफ गया है। इसलिए लता गुप्ता जैसी मजबूत स्थानीय दावेदारों के नामों पर विचार किया जा रहा है। लता गुप्ता दो बार पार्षद रह चुकी हैं और मौजूदा प्रदेश उपाध्यक्ष हैं।
नई रणनीति सांसदों को मैदान में उतारने की योजना
बीजेपी ने इस बार अपने दो लोकसभा और एक राज्यसभा के सांसदों को भी विधानसभा चुनाव में उतारा है। इससे पार्टी की रणनीति यह संकेत देती है कि वह हर सीट पर मजबूत और प्रभावशाली चेहरों को उतारकर सत्ता में वापसी करना चाहती है। पार्टी के इस कदम को दिल्ली की राजनीति में बड़ा दांव माना जा रहा है।
गांधी नगर सीट लवली बनाम वाजपेयी
गांधी नगर सीट पर अरविंदर सिंह लवली को उतारकर बीजेपी ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को चुनौती दी है। लवली का लंबे समय तक कांग्रेस के साथ जुड़ाव रहा है और वह इस सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं। 2020 में आप के सत्तारूढ़ होने के बाद, लवली का बीजेपी में शामिल होना और अब टिकट पाना पार्टी के लिए एक मजबूत रणनीतिक कदम है।
टिकट कटने से असंतोष की संभावना
टिकट कटने से पार्टी के भीतर असंतोष की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अनिल वाजपेयी जैसे नेताओं का टिकट काटे जाने से पार्टी के कुछ वर्गों में नाराजगी देखने को मिल सकती है। वहीं, करावल नगर और लक्ष्मी नगर के टिकट होल्ड होने से अन्य दावेदार सक्रिय हो गए हैं, जिससे पार्टी को उम्मीदवार चुनने में मुश्किलें हो सकती हैं।
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बीजेपी की रणनीति सत्ता में वापसी के प्रयास
25 वर्षों से सत्ता से बाहर रहने के बावजूद बीजेपी ने दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है। पार्टी की पहली सूची में टिकट वितरण का यह पैटर्न दर्शाता है कि बीजेपी इस बार नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है। पार्टी ने पुराने चेहरों को बरकरार रखते हुए नए और प्रभावशाली चेहरों को भी मौका दिया है।
करावल नगर और लक्ष्मी नगर सीट पर सस्पेंस
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी की टिकट वितरण रणनीति ने चुनावी माहौल को और अधिक रोचक बना दिया है। पार्टी का लक्ष्य सत्ता में वापसी करना है, जिसके लिए वह पुराने और नए चेहरों को मिलाकर संतुलित टीम तैयार कर रही है। हालांकि, करावल नगर और लक्ष्मी नगर सीटों पर सस्पेंस और टिकट कटने से उपजे असंतोष पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। अब देखना होगा कि बीजेपी की यह रणनीति आगामी चुनाव में कितनी कारगर साबित होती है और क्या वह 25 साल का वनवास खत्म कर पाती है।