BOMBAY HC: बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे सिविल जज द्वारा दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति, मनुभाई हरगोविंदास पटेल ने न्यायाधीश के खिलाफ अवैध gratification की मांग के आरोप लगाए थे। कोर्ट ने इसे व्यक्तिगत टिप्पणी करार देते हुए कहा कि यह न्यायालय अवमानना अधिनियम की धारा 15(2) के तहत नहीं आता।
BOMBAY HC: मामला और याचिका का संदर्भ
यह मामला 7वें जॉइंट सिविल जज सीनियर डिवीजन और अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, ठाणे द्वारा न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15(2) के तहत प्रस्तुत किया गया था। याचिकाकर्ता ने अदालत में यह आरोप लगाया था कि मनुभाई हरगोविंदास पटेल ने न्यायाधीश पर अवैध रिश्वत लेने का आरोप लगाया था।
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न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे और न्यायमूर्ति भारती दांगरे की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, “हालांकि न्यायिक अधिकारी का फैसला सही हो सकता है, लेकिन वादी को मुकदमे की देरी से परेशानी हुई, जिसके कारण उसने न्यायाधीश के खिलाफ व्यक्तिगत आरोप लगाए।”
BOMBAY HC: कोर्ट ने क्यों खारिज की अवमानना याचिका
न्यायालय ने पाया कि वादी के आरोपों का कोई वैधानिक आधार नहीं था, क्योंकि यह एक व्यक्तिगत टिप्पणी थी और इस प्रकार की टिप्पणी अवमानना की श्रेणी में नहीं आती। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन टिप्पणियों से न्यायालय की कार्यवाही में कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ और न ही इससे अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा।
कोर्ट ने इस मामले में कोई अवमानना का मामला नहीं पाया और अंततः अवमानना याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि इस प्रकार की व्यक्तिगत टिप्पणियाँ न्यायालय के निर्णयों पर असर नहीं डालतीं और यह अवमानना के अधीन नहीं आतीं।
मामला: श्री. एस. बी. पाटिल बनाम श्री. मनुभाई हरगोविंदास पटेल
संदर्भ: 2024: BHC-AS: 41565-DB
अधिवक्ता: याचिकाकर्ता/राज्य: ए. पी. पी. एम. एम. देशमुख
BOMBAY HC: न्यायालय के आदेश और इसके प्रभाव
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय में की गई व्यक्तिगत टिप्पणियाँ यदि न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करती हैं तो उन्हें अवमानना के तहत नहीं माना जाएगा।
इस फैसले का व्यापक प्रभाव हो सकता है क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कोर्ट की कार्यवाही के दौरान की गई व्यक्तिगत टिप्पणी को स्वतः अवमानना नहीं माना जाएगा, जब तक वह न्यायालय की प्रतिष्ठा या कार्यवाही में हस्तक्षेप न करे।
इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह सिद्ध कर दिया कि न्यायालय में की गई व्यक्तिगत टिप्पणियाँ अगर न्यायालय की कार्यवाही में कोई असंवैधानिक असर नहीं डालतीं, तो उन्हें अवमानना का मामला नहीं माना जा सकता। यह न्यायिक प्रणाली में विश्वास और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi