BOMBAY HIGH COURT: पति की भतीजी के खिलाफ एफआईआर खारिज की

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By headlineslivenews.com

BOMBAY HIGH COURT: पति की भतीजी के खिलाफ एफआईआर खारिज की

BOMBAY HIGH COURT: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि पति की भतीजी के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

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BOMBAY HIGH COURT: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि पति की भतीजी के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। यह फैसला एक घरेलू विवाद से संबंधित मामले में सुनाया गया, जिसमें पति की भतीजी पर अपने चाचा के साथ मिलकर अदालत द्वारा दिए गए आदेश का उल्लंघन करने का आरोप था। यह आदेश पति को उसकी पत्नी और बेटे के भरण-पोषण के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए दिया गया था।

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इस मामले में, याचिकाकर्ता ने अपनी चाचा की पत्नी द्वारा उसके खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी (एफआईआर) को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। प्राथमिकी में आरोप था कि पति ने बड़ी धनराशि अपनी भतीजी के बैंक खाते में ट्रांसफर की थी, जिससे उसने अदालत के आदेश का उल्लंघन किया। मजिस्ट्रेट की अदालत ने पति को यह निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को प्रति माह ₹30,000 और बेटे के लिए ₹7,500 तब तक दे, जब तक वह वयस्क नहीं हो जाता।

BOMBAY HIGH COURT: कोर्ट की कार्यवाही और कानूनी दृष्टिकोण

इस मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे की खंडपीठ ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के विभिन्न प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित किया। खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 31 के अंतर्गत प्रतिवादी पर तभी मुकदमा चलाया जा सकता है, जब वह कोई वयस्क पुरुष हो जो पीड़ित व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में है या था। अधिनियम की धारा 2(q) में यह परिभाषा दी गई है कि ‘प्रतिवादी’ कौन हो सकता है, और इस परिभाषा में केवल वयस्क पुरुष शामिल हैं, जो पीड़िता के साथ घरेलू संबंध में रहते हैं या रह चुके हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता (भतीजी) एक महिला है, इसलिए वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रतिवादी नहीं हो सकती। भतीजी का इस विवाद से सीधा कोई संबंध नहीं था और न ही उसने इस मामले में कोई ऐसा काम किया था, जो अधिनियम के तहत उसे जिम्मेदार ठहराए जाने योग्य हो।

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याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में अधिवक्ता तपन थत्ते ने पैरवी की, जबकि प्रतिवादी की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक जे.पी. याग्निक ने बहस की। पत्नी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उसका पति 2014 से लेकर अगस्त 2024 तक की अवधि में ₹50,40,000 की भरण-पोषण राशि देने में विफल रहा। इस मामले में, 18 सितंबर 2024 को दर्ज एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया कि पति ने बड़ी रकम—19 अप्रैल 2024 को ₹94,00,000 और 20 अप्रैल 2024 को ₹97,00,000—अपनी भतीजी के बैंक खाते में स्थानांतरित की, जो अदालत के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन था।

BOMBAY HIGH COURT: अदालत की टिप्पणी

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2(q) के तहत प्रतिवादी की परिभाषा केवल वयस्क पुरुषों तक ही सीमित है, जो पीड़ित व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में होते हैं। चूंकि याचिकाकर्ता एक महिला है और इस मामले में प्रतिवादी के रूप में शामिल नहीं हो सकती, इसलिए उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को बरकरार नहीं रखा जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का इस विवाद में कोई सीधा संबंध नहीं है और वह इस मामले में प्रतिवादी नहीं मानी जा सकती।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा, “घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि इस अधिनियम के तहत केवल वयस्क पुरुषों को प्रतिवादी माना जा सकता है। इसलिए, एक महिला रिश्तेदार जो इस विवाद से सीधे तौर पर जुड़ी नहीं है, उसे इस अधिनियम के अंतर्गत प्रतिवादी नहीं ठहराया जा सकता।”

अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) का भी आरोप लगाया गया है, लेकिन कोर्ट को यह समझ नहीं आया कि कैसे यह साबित किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता को कोई धन या कीमती वस्तु सौंपी गई थी, जिसका इस विवाद से कोई संबंध हो। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि पति-पत्नी के बीच चल रहा विवाद घरेलू हिंसा कोर्ट में लंबित है, और इस विवाद में याचिकाकर्ता का कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।

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BOMBAY HIGH COURT: फैसला और परिणाम

इस सबूत और तर्कों के आधार पर, बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि पति की भतीजी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रतिवादी नहीं हो सकती।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाने का कोई आधार नहीं है, और कोई भी सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि उसने किसी प्रकार का आपराधिक विश्वासघात किया हो। इसलिए, अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही को रोकते हुए मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को निर्धारित की।

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इस फैसले से यह साफ हो गया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा चलाने के लिए प्रतिवादी की परिभाषा महत्वपूर्ण है, और इसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

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