Bombay High Court: हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में एक पति पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया, जिसने अपनी अलग रह रही पत्नी की तलाक के मामले को वसई कोर्ट से मुंबई के बांद्रा कोर्ट में स्थानांतरित करने की याचिका का विरोध किया। यह फैसला न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की बेंच द्वारा सुनाया गया, जिसमें मां की स्थिति को विशेष रूप से ध्यान में रखा गया, जिसे अपनी 15 महीने की बच्ची की देखभाल करनी पड़ रही है। कोर्ट ने माना कि यह स्थिति मां के लिए अदालत में पेश होना काफी कठिन बना रही है, खासकर जब बच्ची को निरंतर चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो।
Bombay High Court: पति के खिलाफ जुर्माना और कोर्ट का दृष्टिकोण
न्यायालय ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि पत्नी के लिए वसई से बांद्रा का सफर अत्यधिक कठिन है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि पश्चिमी रेलवे के भीड़भाड़ वाले मार्ग पर यात्रा करना स्वयं एक कठिन कार्य है, और एक छोटे बच्चे के साथ यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, “यदि पत्नी को अपनी शिशु/नाबालिग बेटी के साथ यात्रा करनी पड़ेगी, तो उसके लिए यात्रा करना और भी कठिन हो जाएगा।”
कोर्ट ने इस बात का भी उल्लेख किया कि वसई रोड बस स्टेशन तक पहुंचने के बाद भी, महिला के पास भीड़भाड़ वाली MSRTC बसों या महंगी ऑटो-रिक्शा का सहारा लेना पड़ता है। यह स्पष्ट किया गया कि यात्रा की यह कठिनाई उसकी समस्याओं को और बढ़ा देती है, जिससे उसका न्याय प्राप्त करना और भी मुश्किल हो जाता है।
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Bombay High Court: पति की ओर से तर्क और कोर्ट का निर्णय
पति के वकील, अधिवक्ता आर.एस. त्रिपाठी ने दावा किया कि पति यात्रा खर्च वहन करने के लिए तैयार है। हालांकि, कोर्ट ने इस प्रस्ताव को असंवेदनशील करार दिया, क्योंकि यह पत्नी की व्यावहारिक समस्याओं को नजरअंदाज करता है। कोर्ट ने कहा, “आर्थिक रूप से, प्रतिवादी – पति की स्थिति ठीक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि वह पत्नी को यात्रा खर्च देकर उसे वसई कोर्ट में पेश होने के लिए मजबूर कर सकते हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि वकील त्रिपाठी ने पत्नी की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया कि वह अपनी 15 महीने की बच्ची की देखभाल करती है, और वसई कोर्ट में पेश होने के दौरान उसकी अनुपस्थिति में बच्ची की देखभाल कौन करेगा, यह प्रश्न अनुत्तरित रहता है। कोर्ट ने इस बात पर गंभीरता से विचार किया कि जब एक महिला को अपनी शिशु की देखभाल करनी पड़ती है, तो उसे बार-बार लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए बाध्य करना अत्यंत अनुचित है।
Bombay High Court: कोर्ट का कठोर रुख और अनुकरणीय जुर्माना
कोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी पितृत्व जिम्मेदारियों को नजरअंदाज किया है, और इसका सीधा प्रभाव पत्नी की स्थिति पर पड़ा है। कोर्ट ने कहा, “मैं इस मामले में पति पर ₹1,00,000/- का अनुकरणीय जुर्माना लगाने के पक्ष में हूं, जिसे आवेदक – पत्नी को भुगतान किया जाना चाहिए।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह जुर्माना पत्नी की पिछले 21 महीनों से चली आ रही कठिनाइयों और परेशानियों को ध्यान में रखते हुए लगाया जा रहा है।
Bombay High Court: तलाक याचिका की पृष्ठभूमि
यह मामला तब शुरू हुआ जब पति ने सिविल जज सीनियर डिवीजन, वसई कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i) और/या धारा 13(1)(ia) के तहत तलाक की याचिका दायर की। इसके बाद पत्नी ने बांद्रा कोर्ट में स्थानांतरित करने की याचिका दायर की, जिसका पति ने विरोध किया। कोर्ट ने पाया कि पत्नी को अनावश्यक रूप से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और यह उसे न्याय प्राप्त करने से रोकने जैसा है।
Bombay High Court: न्यायालय की संवेदनशीलता और न्याय की दिशा
कोर्ट ने यह भी देखा कि पत्नी के पास कोई और सहारा नहीं है और उसने काफी समय से अपने बच्चे की देखभाल के साथ-साथ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। इस कारण से कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पत्नी को यह लागत दी जानी चाहिए, ताकि उसकी कठिनाई और संकट को कम किया जा सके।
इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने केवल कानूनी पक्ष पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखा। कोर्ट ने यह मानते हुए फैसला सुनाया कि एक मां की जिम्मेदारियों को समझना आवश्यक है, और उसे न्याय तक पहुंचने में कोई अवरोध नहीं होना चाहिए।
मामला शीर्षक: X बनाम Y, [2024:BHC-AS:39183]
पक्षकारों की उपस्थिति:
प्रतिवादी: अधिवक्ता आर.एस. त्रिपाठी और मोहम्मद शाहिद