CHHATTISGARH HC: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी आपराधिक अपील में सजा के तौर पर जेल और जुर्माना दोनों शामिल हैं, तो अपीलकर्ता की मृत्यु के बावजूद वह अपील समाप्त नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने यह फैसला एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 394 (अपील का समाप्त होना) और धारा 482 (हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां) के तहत दायर की गई थी।
यह याचिका मृत अपीलकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अपीलकर्ता की मृत्यु के कारण आपराधिक अपील को समाप्त मान लिया गया था। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अपील को फिर से बहाल कर दिया और मामले में कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की।
CHHATTISGARH HC: न्यायालय में उठे मुख्य प्रश्न
इस मामले में मुख्य सवाल यह था कि क्या आपराधिक अपील, जिसमें सजा के तौर पर जेल और जुर्माना दोनों शामिल हों, अपीलकर्ता की मृत्यु के बाद समाप्त मानी जा सकती है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 394 (2) के अनुसार, यदि अपील सजा में जुर्माना शामिल होने के आधार पर की गई है, तो अपील समाप्त नहीं मानी जा सकती। यह प्रावधान अपीलकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों को अपील जारी रखने की अनुमति देता है।
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जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकल पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि:
“यदि अपील सजा में जुर्माना शामिल होने के आधार पर की गई है, तो इसे समाप्त नहीं किया जा सकता, चाहे वह सजा केवल जुर्माना हो या जेल के साथ जुर्माना हो।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 1975 के हरनाम सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले का हवाला दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जुर्माने से संबंधित अपील को समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि जुर्माना मृतक की संपत्ति पर एक दायित्व बनाता है।
CHHATTISGARH HC: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
हरनाम सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि:
“जुर्माने की सजा से संबंधित अपील समाप्त नहीं हो सकती क्योंकि जुर्माना मृतक की संपत्ति पर दायित्व बनाता है, और इसके कानूनी उत्तराधिकारी इसे चुनौती देने का अधिकार रखते हैं।”
यह सिद्धांत वर्तमान मामले में भी लागू किया गया। हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि जेल और जुर्माने की सजा के मामले में अपील को मृतक अपीलकर्ता की मृत्यु के आधार पर समाप्त नहीं माना जा सकता।
इस मामले में मृतक अपीलकर्ता चंद्रमणि नायक को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था। उन्हें 7 साल के कठोर कारावास और ₹5,000 के जुर्माने की सजा दी गई थी। अपीलकर्ता ने इस फैसले को चुनौती देते हुए एक आपराधिक अपील दायर की थी।
हालांकि, अपील की सुनवाई के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनके वकील ने अदालत में मृत्यु प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जिसके बाद अदालत ने अपील को समाप्त मान लिया। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि यह आदेश केवल अपीलकर्ता की मृत्यु की सूचना के आधार पर दिया गया था और इसमें कोई न्यायिक निर्णय शामिल नहीं था।
CHHATTISGARH HC: हाईकोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने पहले दिए गए आदेश को रद्द कर दिया और अपील को बहाल कर दिया। साथ ही, अदालत ने मृतक अपीलकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारी को अपील में शामिल होने की अनुमति दी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
“यदि सजा में जुर्माना शामिल है, तो अपील समाप्त नहीं मानी जा सकती। यह प्रावधान अपीलकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों को न्याय प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।”
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करता है। यह स्पष्ट करता है कि जुर्माने और जेल की सजा के मामलों में अपील मृतक अपीलकर्ता की मृत्यु के कारण समाप्त नहीं हो सकती।
यह निर्णय न केवल मृतक अपीलकर्ताओं के कानूनी उत्तराधिकारियों को न्याय पाने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की व्याख्या को और अधिक स्पष्ट करता है।
मामला: चंद्रमणि नायक (मृत) के कानूनी उत्तराधिकारी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य [2024:CGHC:49346]