CULCUTTA HC: कलकत्ता हाईकोर्ट ने ‘ऑनलाइन लीगल इंडिया’ वेबसाइट संचालित करने वाली फास्ट इंफो लीगल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका कंपनी पर धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग को लेकर थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जांच के शुरुआती चरण में कार्यवाही को रद्द करना न्यायसंगत नहीं होगा और इस प्रकार की याचिकाएं बिना ठोस कारण के स्वीकार नहीं की जा सकतीं।
CULCUTTA HC: मामले का विवरण
यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता कंपनी ने इस मामले को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत आवेदन दायर किया था। यह मामला एडिशनल चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने कहा कि जांच अभी अपने शुरुआती चरण में है, और जांच पूरी होने से पहले आरोपों की सत्यता का निर्धारण करना उचित नहीं होगा।
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शिकायतकर्ता, जो एक महिला है, ने साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई थी। उन्होंने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उन्हें एक अज्ञात फोन नंबर से कॉल आया था, जिसमें कॉलर ने दावा किया कि उनके कोटक महिंद्रा बैंक क्रेडिट कार्ड पर ₹4,000 का गिफ्ट वाउचर जारी किया गया है। कॉलर के निर्देशों का पालन करने के बाद उनके क्रेडिट कार्ड से ₹12,000 डेबिट हो गए।
महिला ने जब ठगी का एहसास किया, तो उन्होंने ‘ऑनलाइन लीगल इंडिया’ के प्रतिनिधि से संपर्क किया। प्रतिनिधि ने दावा किया कि उनकी कंपनी के पास एक साइबर सेल है, जो एफआईआर दर्ज करेगी। इसके लिए महिला से ₹1,179 की मांग की गई, जो उन्होंने अपने एसबीआई बैंक अकाउंट से भुगतान कर दी।
शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि ‘ऑनलाइन लीगल इंडिया’ के बैनर तले कंपनी ने इसी प्रकार कई अन्य व्यक्तियों को ठगा है। शिकायत में कहा गया कि वेबसाइट और उसके प्रतिनिधियों ने भरोसे का दुरुपयोग कर लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
CULCUTTA HC: कंपनी का पक्ष
याचिकाकर्ता कंपनी ने अपनी याचिका में कहा कि वह एक कानूनी सेवा प्रदाता है, जो ग्राहकों को फीस के बदले कानूनी सलाह और सहायता प्रदान करती है। कंपनी ने दावा किया कि जब उन्हें शिकायतकर्ता द्वारा जानकारी दी गई, तो उन्होंने तुरंत बिधाननगर पुलिस कमिश्नरेट के साइबर क्राइम पोर्टल पर शिकायत दर्ज की और एक्नॉलेजमेंट नंबर भी प्राप्त किया।
कंपनी ने यह भी आरोप लगाया कि जांच एजेंसी ने उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उनके कार्यालय को सील कर दिया। इस कार्रवाई के कारण कंपनी के 358 कर्मचारी बेरोजगार हो गए।
कंपनी ने तर्क दिया कि जांच एजेंसी ने बिना ठोस सबूत के उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की है, और उनके खिलाफ दर्ज मामला रद्द किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कि जांच अभी शुरुआती चरण में है, और इस स्तर पर कार्यवाही को रद्द करना अनुचित होगा। न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि शिकायतकर्ता के आरोपों की जांच के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
कोर्ट ने कहा, “जांच अधिकारी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत गवाहों के बयान दर्ज किए हैं। बड़ी संख्या में प्रासंगिक दस्तावेज और उपकरण जब्त किए गए हैं। इन तथ्यों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता के साथ घटना घटी है।”
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले ‘नीहरिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य’ (2021) का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि जांच के शुरुआती चरण में अदालत को एफआईआर या कार्यवाही रद्द करने में अत्यंत सतर्कता बरतनी चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों की सत्यता का निर्धारण जांच पूरी होने के बाद ही किया जा सकता है। वर्तमान मामले में जांच पूरी होने से पहले कार्यवाही को रद्द करने का कोई ठोस आधार नहीं है।
CULCUTTA HC: प्रमुख टिप्पणियां
- कोर्ट ने कहा कि यह उचित नहीं होगा कि वह एफआईआर या शिकायत में लगाए गए आरोपों की सत्यता या विश्वसनीयता की जांच करे।
- कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए कहा कि जांच एजेंसी के पास कंपनी के खिलाफ मामले को लेकर पर्याप्त सबूत हैं।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आपराधिक रिविजनल आवेदन को खारिज कर दिया और कहा कि जांच एजेंसी को अपनी जांच पूरी करने दी जाए।
CULCUTTA HC: मामला विवरण
राजेश केवत बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य
[केस नंबर: सी.आर.आर. 1175/2023]
प्रतिनिधित्व:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता हिंदोल नंदी, सतरूपा सरकार, स्वर्णवा मुखर्जी
- राज्य: अधिवक्ता रुद्रदीप्त नंदी, संजना साहा