CULCUTTA HC: कलकत्ता हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी द्वारा दायर डीएनए टेस्ट की याचिका को मंजूरी देते हुए स्पष्ट किया कि यदि कोई आरोपी “संबंध तक पहुंच” (non-access) का दावा करता है, तो उसे इस दावे को साक्ष्यों के माध्यम से साबित करने का पूरा अधिकार है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह परीक्षण न्याय के हित में और आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका से संबंधित था।
CULCUTTA HC: मामला और पृष्ठभूमि
इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी (पीड़िता) और आरोपी के बीच प्रेम संबंध था। आरोपी अपने मामा के घर में रहता था और उस समय पीड़िता की उम्र 17 या 18 साल थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपी ने शादी का वादा किया और इस भरोसे पर पीड़िता ने शारीरिक संबंध बनाए, जिसके कारण वह गर्भवती हो गई।
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शिकायतकर्ता ने प्रशासन से आरोपी को उनकी बेटी से शादी करने के लिए मजबूर करने की मांग की। मामले की जांच के बाद पुलिस ने IPC की धारा 376 और 420 के तहत चार्जशीट दायर की।
मुकदमे के दौरान, पीड़िता ने खुद को और अपने बेटे का डीएनए टेस्ट करवाने की सहमति दी, ताकि यह प्रमाणित किया जा सके कि बच्चा आरोपी का है। इस बीच, आरोपी ने भी डीएनए परीक्षण की याचिका दायर की, लेकिन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इसे खारिज कर दिया। निचली अदालत ने कहा कि डीएनए परीक्षण अदालत का समय बर्बाद करेगा।
हाईकोर्ट की एकल पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति शम्पा दत्त (पॉल) शामिल थीं, ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा कि:
- “संबंध तक पहुंच” (non-access) का दावा करने वाले आरोपी को इसे साक्ष्यों के माध्यम से साबित करने का अधिकार है।
- इस मामले में, चूंकि दोनों पक्षों के बीच कोई विवाह नहीं हुआ था और पीड़िता ने बच्चे को आरोपी का बताया था, इसलिए आरोपी को डीएनए टेस्ट के जरिए अपनी बात साबित करने का मौका मिलना चाहिए।
- बच्चे का पितृत्व यदि ‘सकारात्मक’ साबित होता है, तो यह यह प्रमाणित करेगा कि आरोपी और पीड़िता के बीच शारीरिक संबंध थे।
पीठ ने यह भी कहा कि बलात्कार और अन्य आरोपों को साबित करने के लिए अन्य प्रासंगिक साक्ष्यों की आवश्यकता होगी।
CULCUTTA HC: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा
हाईकोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले दिपन्विता रॉय बनाम रोनोब्रतो रॉय (2015) 1 SCC 365 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डीएनए परीक्षण न्याय के हित में है और इससे सच्चाई सामने लाने में मदद मिलती है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका स्वीकार की और डीएनए परीक्षण का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही, आरोपी को ट्रायल कोर्ट में ₹1 लाख जमा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि डीएनए टेस्ट ‘सकारात्मक’ पाया जाता है, तो यह राशि पीड़िता और उसके बच्चे को दी जाएगी।
यह फैसला न्याय प्रक्रिया में डीएनए परीक्षण की प्रासंगिकता और आरोपियों के अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी को यह साबित करने का पूरा अधिकार है कि वह पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध में नहीं था, और डीएनए परीक्षण इसका सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है।
CULCUTTA HC: प्रकरण का विवरण
मामला: X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य [CRR 3189 OF 2023]
पक्षकार:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता दीपांकर आदित्य और टीना बिस्वास
- प्रतिवादी: अधिवक्ता बिबस्वान भट्टाचार्य
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi