culcutta hc: यातना का आरोप न होने पर क्रूरता का मामला खारिज

Photo of author

By headlineslivenews.com

Spread the love

culcutta hc: कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महिला के ससुर और सास के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत दर्ज किए गए क्रूरता के मामले को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने यह निर्णय ऐसे समय में लिया जब याचिकाकर्ता ससुर ने इसे रद्द करवाने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी।

Calcutta hc

उन्होंने कहा कि इन आरोपों में कोई ठोस आधार या गवाहों के बयान से स्पष्ट यातना का प्रमाण नहीं है। न्यायमूर्ति सुगतो मजूमदार की एकल-पीठ ने सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि आपराधिक अभियोजन एक परिवार के लिए कलंक और बदनामी का कारण बन सकता है और ऐसे मामलों में पर्याप्त प्रमाण होने चाहिए।

culcutta hc: मामला और कोर्ट की कार्यवाही

यह मामला तब आया जब पीड़िता के ससुर, राजेंद्र प्रसाद सितानी, ने कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपनी और अपनी पत्नी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने दलील दी कि उनके खिलाफ लगे आरोपों में ठोस प्रमाणों का अभाव है, और यह मुकदमा उन पर लगाए गए झूठे आरोपों के आधार पर खड़ा किया गया है।

अडानी ग्रुप की नई योजना: अमेरिका में 10 अरब डॉलर का निवेश, 15,000 नौकरियां पैदा होंगी !

गीजर का चयन: बेहतर गुणवत्ता और टिकाऊपन का चुनाव कैसे करें? 2024

इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वकील देबाशीष सिन्हा, अविजीत चौधरी, ऋषभ राय और सोनाली गुप्ता ने कोर्ट में पक्ष रखा, जबकि राज्य का प्रतिनिधित्व वकील ए.एस. चक्रवर्ती और कलोल आचार्य ने किया।

culcutta hc: याचिकाकर्ता का तर्क

याचिकाकर्ता का कहना था कि सभी आरोपित घटनाएं सिंगापुर में घटित हुई थीं, जबकि याचिकाकर्ता, यानी पीड़िता के ससुर और सास, चेन्नई में रहते थे। उन्होंने कहा कि भले ही पति और पत्नी के बीच तनाव रहा हो, परंतु सास-ससुर का उसमें कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी जिसमें उन पर आरोपित यातना का सही प्रमाण हो।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आपराधिक मुकदमों का एक परिवार पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह परिवार के सम्मान पर दाग लगाता है। ऐसे में आवश्यक है कि मुकदमों के आधार में पर्याप्त सबूत और गवाहों के ठोस बयान होने चाहिए। न्यायमूर्ति सुगतो मजूमदार ने कहा, “सामान्य आरोप और गवाहों के बयान जिनमें यातना का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, को आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि पर्याप्त सामग्री, जिसमें पीड़िता का बयान शामिल है, का अभाव देखा गया है। हालांकि, शिकायत में पति के खिलाफ आरोप लगाए गए थे, जिसमें शारीरिक यातना का उल्लेख किया गया था। इस मामले में, पीड़िता के पति ने केस खारिज करने की याचिका में भाग नहीं लिया था, जिससे यह संकेत मिलता है कि विवाद मुख्य रूप से पति-पत्नी के बीच था। इस वजह से, अदालत ने सास-ससुर के खिलाफ दर्ज केस और चार्जशीट को खारिज करने का निर्णय लिया।

culcutta hc: न्यायालय का फैसला और निर्देश

Headlines Live News

अंततः, कोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज मामले को खारिज कर दिया। इस मामले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आरोपों में ठोस आधार और गवाहों के ठोस बयान के अभाव में ऐसे मुकदमे एक परिवार पर अत्यधिक दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए बयान और प्रस्तुत किए गए सबूत इस मुकदमे को न्यायोचित ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

मामला शीर्षक: राजेंद्र प्रसाद सितानी और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य
मामला संख्या: CRR/97/2024
प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता के वकील: देबाशीष सिन्हा, अविजीत चौधरी, ऋषभ राय और सोनाली गुप्ता।
राज्य के वकील: ए.एस. चक्रवर्ती और कलोल आचार्य

Sharing This Post:

Leave a Comment

Optimized by Optimole
DELHI HC: भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज को सत्येंद्र जैन के मानहानि केस में नोटिस जारी किया BOMBAY HC: पतंजलि पर जुर्माने पर रोक लगाई अतुल सुभाष आत्महत्या: बेंगलुरु कोर्ट ने पत्नी और परिवार को न्यायिक हिरासत में भेजा SUPREME COURT: भाजपा नेता गिर्राज सिंह मलिंगा को मारपीट मामले में जमानत दी” SUPREME COURT: मामूली अपराधों में जमानत में देरी पर जताई चिंता