DELHI HC: गिरफ्तारी के लिए नमूना हस्ताक्षर देना जरूरी नहीं

Photo of author

By headlineslivenews.com

DELHI HC: गिरफ्तारी के लिए नमूना हस्ताक्षर देना जरूरी नहीं

DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 311ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए

DELHI HC

DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 311ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इस प्रावधान के तहत मजिस्ट्रेट को जांच के उद्देश्य से व्यक्तियों को नमूना हस्ताक्षर देने का निर्देश देने का अधिकार प्राप्त है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान अनिवार्य नहीं, बल्कि निर्देशात्मक प्रकृति का है।

DELHI HC

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने एक मजिस्ट्रेट द्वारा दायर संदर्भ पर निर्णय देते हुए पारित किया। इसमें कहा गया कि नमूना हस्ताक्षर देने के लिए गिरफ्तारी को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता नहीं है।

DELHI HC: सीआरपीसी की धारा 311ए का प्रावधान

सीआरपीसी की धारा 311ए मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्रदान करती है कि वे जांच अधिकारी के अनुरोध पर किसी व्यक्ति को नमूना हस्ताक्षर देने का आदेश जारी कर सकते हैं। हालांकि, इस प्रावधान के तहत यह शर्त लगाई गई है कि ऐसा आदेश तब तक पारित नहीं किया जा सकता जब तक संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार न किया गया हो।

मुफ्त बस यात्रा योजना: दिल्ली में आतिशी की गिरफ्तारी के दावों पर विवाद परिवहन आयुक्त ने किया खुलासा 2024 !

शिक्षा सुधार कार्यक्रम: मनीष सिसोदिया का जंगपुरा के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों को मिलेगा नया रूप 2024 !

इस संदर्भ में, अदालत ने कहा कि धारा 311ए का उद्देश्य जांच प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना है, लेकिन यह किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रावधान अनिवार्य नहीं है, और मजिस्ट्रेट उचित कारणों को दर्ज करने के बाद, गिरफ्तारी के बिना भी नमूना हस्ताक्षर देने का आदेश दे सकते हैं।

अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अदालत या मजिस्ट्रेट के समक्ष नमूना हस्ताक्षर देने के लिए उपस्थित होता है, तो उसकी गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है। अदालत ने इस प्रावधान को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 349 से भी जोड़ा, जो स्पष्ट करती है कि नमूना हस्ताक्षर देने के लिए गिरफ्तारी को अनिवार्य नहीं माना जा सकता।

DELHI HC: संदर्भ पर अदालत का निर्णय

यह मामला तब सामने आया जब एक मजिस्ट्रेट ने उच्च न्यायालय से यह सवाल पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 311ए के तहत नमूना हस्ताक्षर देने के लिए व्यक्ति को पहले ही गिरफ्तार किया जाना चाहिए। मजिस्ट्रेट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह प्रावधान मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि धारा 311ए का उद्देश्य जांच प्रक्रिया को सुदृढ़ करना है, न कि मौलिक अधिकारों पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाना। अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी को अनिवार्य बनाए बिना भी जांच प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से चलाया जा सकता है।

अदालत ने धारा 311ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इसे जांच प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण उपकरण बताया। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को संतुलित करते हुए जांच प्रक्रिया को सुचारू बनाने का प्रयास करता है।

DELHI HC: आदेश की मुख्य बातें

  • मजिस्ट्रेट नमूना हस्ताक्षर देने के आदेश जारी कर सकते हैं, भले ही व्यक्ति को गिरफ्तार न किया गया हो।
  • गिरफ्तारी केवल तभी आवश्यक है जब अन्य परिस्थितियां इसे अनिवार्य बनाएं।
  • व्यक्ति यदि स्वेच्छा से नमूना हस्ताक्षर देने के लिए तैयार है, तो उसकी गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं है।

वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत मित्तल, जो इस मामले में एमिकस क्यूरी के रूप में कार्यरत थे, ने अदालत को बताया कि नमूना हस्ताक्षर देने के लिए गिरफ्तारी को अनिवार्य बनाने से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसे अनावश्यक रूप से कठोर नहीं बनाया जाना चाहिए।

Headlines Live News

राज्य की ओर से सहायक स्थायी वकील नंदिता राव ने इस प्रावधान का समर्थन किया और कहा कि यह जांच प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में मदद करता है। उन्होंने दलील दी कि यह प्रावधान व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करते हुए जांच अधिकारियों को आवश्यक साधन प्रदान करता है।

इस आदेश का न्यायिक प्रक्रिया पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। यह स्पष्ट करता है कि नमूना हस्ताक्षर देने के लिए व्यक्ति को गिरफ्तार करना आवश्यक नहीं है। यह आदेश जांच प्रक्रिया को अधिक लचीला और प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।

अदालत ने इस आदेश के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि जांच प्रक्रिया व्यक्तियों के अधिकारों के साथ संतुलन बनाए रखे। इस आदेश से न केवल जांच अधिकारियों को सुविधा होगी, बल्कि नागरिकों के अधिकारों की भी रक्षा होगी।

Headlines Live News

DELHI HC: भविष्य के लिए संकेत

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह आदेश एक मिसाल के रूप में कार्य करेगा। यह स्पष्ट करता है कि जांच प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए अनावश्यक कठोरता की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही, यह आदेश न्यायिक अधिकारियों और जांच एजेंसियों को यह मार्गदर्शन देता है कि कैसे जांच प्रक्रिया को नागरिक अधिकारों का सम्मान करते हुए संचालित किया जा सकता है।

DELHI HC