DELHI HC: असंगत मूल्यांकन पर RO का आंकलन बरकरार नहीं

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By headlineslivenews.com

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DELHI HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि जब अधिकारियों ने रिव्यूइंग ऑफिसर (RO) द्वारा किए गए बॉक्स ग्रेडिंग आकलन को “विषम” और “असंगत” पाया, तो वे केवल बॉक्स ग्रेडिंग को समाप्त करके RO द्वारा किए गए अंकात्मक आकलन को नहीं रख सकते। यह टिप्पणी अदालत ने एक सेना के अधिकारी द्वारा दायर की गई रिट याचिका पर की, जो वर्तमान में ब्रिगेडियर के पद पर हैं और कॉलेज ऑफ मैटेरियल मैनेजमेंट में उच्च युद्ध सामग्री प्रबंधन के प्रमुख के रूप में तैनात हैं।

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इस याचिका में उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनकी OA को खारिज कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति नविन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “जब उत्तरदाताओं ने RO द्वारा किए गए आकलन को ‘विषम’ और ‘असंगत’ माना, तो उन्होंने केवल बॉक्स ग्रेडिंग को समाप्त नहीं किया, जबकि RO द्वारा किए गए अंकात्मक आकलन को बरकरार रखा।”

DELHI HC: मामले की पृष्ठभूमि

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याचिकाकर्ता भारतीय सेना के एक अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने करियर में उच्च प्रदर्शन रेटिंग प्राप्त की है। हालांकि, उन्हें अप्रैल से अगस्त 2009 और जुलाई 2018 से जून 2019 के बीच गोपनीय रिपोर्टों (CRs) में डाउनग्रेड का सामना करना पड़ा। ये CRs उनके राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (NDC) में चयन और पदोन्नति के लिए अवसरों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं, जिसके कारण उन्हें चयन से वंचित होना पड़ा। एक आंशिक सुधार के बाद, जिसमें एक डाउनग्रेड को समाप्त किया गया, याचिकाकर्ता को फिर से चयन से वंचित कर दिया गया।

अदालत ने कहा, “उत्तरदाताओं ने RO द्वारा दिए गए बॉक्स ग्रेडिंग को समाप्त नहीं कर सकते थे, जबकि याचिकाकर्ता की क्षमता के बारे में दी गई रिपोर्ट को बनाए रखा।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तरदाताओं को RO द्वारा किए गए सभी आकलनों को समाप्त करना चाहिए था, क्योंकि इनमें से कुछ हिस्से ‘विषम’ होने के कारण याचिकाकर्ता के करियर प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

DELHI HC: कोर्ट का निर्णय

अदालत ने यह भी कहा कि यदि आकलन “संतुलित” और “संगत” नहीं है, तो इसे याचिकाकर्ता की पदोन्नति के लिए आधार के रूप में भरोसा नहीं किया जा सकता। अदालत ने पाया कि आकलन में परिवर्तन को देखते समय, उत्तरदाताओं ने केवल CR के औसत परिवर्तन की तुलना को ध्यान में रखा, जबकि अन्य महत्वपूर्ण मानकों पर विचार नहीं किया गया। अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि आकलन का एक हिस्सा “विषम” है, तो यह याचिकाकर्ता के कैरियर के विकास को प्रभावित कर सकता है।

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अंततः, अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए निर्णय सुनाया कि RO के आकलन को केवल आंशिक रूप से बरकरार नहीं रखा जा सकता। इससे यह स्पष्ट होता है कि अधिकारियों को किसी भी रिपोर्ट का समग्र आकलन करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्णय निष्पक्ष और संतुलित हैं।

मामला शीर्षक: गोपाल मोहन आत्रि बनाम भारत संघ (2024:DHC:8250-DB)

प्रतिनिधित्व:

  • अपीलकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद कुमार निगम, अधिवक्ता मनीष सांगवान और अश्वनी तेहलान
  • प्रतिवादी की ओर से: CGSC हरिश वैद्यनाथन शंकर, अधिवक्ता श्रीश कुमार मिश्रा और अलेक्जेंडर माथाई पैकडाय

DELHI HC: निष्कर्ष

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इस मामले ने यह संकेत दिया है कि किसी भी सरकारी सेवा में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एकत्रित की गई सभी रिपोर्टों और आकलनों का सही तरीके से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। यह निर्णय न केवल याचिकाकर्ता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अन्य अधिकारियों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि उनकी सेवा रिकॉर्ड का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि विषमता और असंगतता के मामलों में एकतरफा निर्णय लेना उचित नहीं है और सभी पक्षों के लिए निष्पक्ष आकलन अनिवार्य है।

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