DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को दिल्ली दंगों की साजिश से संबंधित मामले में आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पुलिस को निर्देश दिया कि वह अपनी दलीलें संक्षिप्त और सटीक रखें। अदालत ने कहा कि जमानत आवेदन और अंतिम सुनवाई के बीच के अंतर को ध्यान में रखते हुए साक्ष्य का एक संक्षिप्त चार्ट तैयार किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद को यह निर्देश देते हुए कहा कि अदालत सुनवाई का मंच नहीं है।
DELHI HC: अदालत की स्पष्ट टिप्पणी
अदालत ने एसपीपी प्रसाद को बीच में ही रोकते हुए कहा, “आप कितना समय लेंगे? इस तरह यह हमारे लिए मददगार नहीं होगा। एक चार्ट दीजिए। हमें आपके सबूतों को समझने में आसानी होनी चाहिए, न कि हर बिंदु पर विस्तार से चर्चा हो।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना आवश्यक है। न्यायमूर्ति चावला ने कहा, “आरोपियों के खिलाफ आपके पास जो भी साक्ष्य हैं, उसे हमें संक्षेप में बताएं। हम जमानत आवेदन में हजारों पृष्ठों का सामना नहीं करना चाहते।”
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अदालत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन, जो एक आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, ने कहा कि इस मामले में साक्ष्य का आपसी जुड़ाव इतना कमजोर है कि उनका उत्तर देना भी कठिन हो रहा है।
जस्टिस चावला ने कहा, “हम बीच में ही भटक गए हैं।” इस पर प्रसाद ने जवाब दिया, “षड्यंत्र बड़ा है, इसमें समय लगेगा।”
रेबेका जॉन ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी लगभग पांच वर्षों से हिरासत में हैं और अभी तक उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया में देरी नहीं होनी चाहिए।”
DELHI HC: सुप्रीम कोर्ट ने मांगा संक्षिप्त नोट
न्यायालय ने मामले की सुनवाई को 21 जनवरी तक स्थगित कर दिया और एसपीपी प्रसाद को निर्देश दिया कि वह अपनी दलीलों पर एक संक्षिप्त नोट तैयार करें। अदालत ने कहा कि मामले के प्रभावी निपटारे के लिए साक्ष्य का संक्षिप्त और संगठित प्रस्तुतीकरण जरूरी है।
विशेष लोक अभियोजक प्रसाद ने अदालत के समक्ष गवाहों के बयान पढ़े और आरोपियों द्वारा दिए गए भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि इनका उद्देश्य नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ लोगों में डर फैलाना था।
प्रसाद ने कहा कि उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपियों ने सुनियोजित तरीके से दिल्ली दंगों की साजिश रची। उन्होंने कहा कि खालिद ने जानबूझकर खुद को संबंधित समय पर दिल्ली से बाहर दिखाया ताकि वह मामले में सीधे तौर पर फंसे नहीं।
DELHI HC: जमानत के लिए आरोपियों की दलीलें
जमानत के लिए दायर याचिकाओं में आरोपियों ने मुख्य रूप से ट्रायल में देरी का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि ट्रायल कोर्ट ने अभी तक उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए हैं और बिना किसी स्पष्ट आधार के उन्हें वर्षों तक जेल में रखा गया है।
पिछली सुनवाई में अदालत ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि क्या सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थल स्थापित करना किसी व्यक्ति के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लगाने के लिए पर्याप्त आधार हो सकता है।
यह मामला 2020 में हुए दिल्ली दंगों से संबंधित है, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई और संपत्तियों को नुकसान पहुंचा। पुलिस ने आरोप लगाया कि दंगों की साजिश सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की आड़ में रची गई थी।
इस मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और अन्य कई आरोपियों पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह कदम न केवल मामले की प्रक्रिया को तेज करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि न्यायिक समय और संसाधनों का उचित उपयोग हो। अदालत का निर्देश यह संकेत देता है कि न्यायालय प्रक्रियात्मक जटिलताओं के बजाय साक्ष्य की प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है। आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर अंतिम निर्णय आने वाले समय में न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।