DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता प्राप्त व्यक्तियों के लिए पुनर्वास पैकेज की मांग को लेकर दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में पुनर्वास के तहत आश्रय, स्वास्थ्य सेवाएं, पानी, बिजली और स्वच्छता तक पहुंच जैसी सुविधाएं प्रदान करने की मांग की गई थी। अदालत ने इसे नीतिगत मामला बताते हुए हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।
DELHI HC: याचिका का संदर्भ और मांग
याचिकाकर्ता वैभव सैनी ने याचिका दायर कर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के लिए व्यापक पुनर्वास पैकेज की मांग की थी। इस पैकेज में केवल आश्रय ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने का साफ पानी, बिजली, और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाएं शामिल करने की मांग की गई थी।
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याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पाकिस्तान से आए कई नागरिक बेहद दयनीय परिस्थितियों में रह रहे हैं। उनके पास न तो स्थायी आश्रय है, न ही उनके जीवन यापन के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं। याचिका में यह भी कहा गया कि सरकार को ऐसे व्यक्तियों के लिए समग्र पुनर्वास नीति तैयार करनी चाहिए, ताकि उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिल सके।
दिल्ली उच्च न्यायालय की बेंच, जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला शामिल थे, ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से नीतिगत निर्णयों से संबंधित है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि नीति निर्माण और उसके कार्यान्वयन का अधिकार सरकार के पास है, और अदालत इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा,
“किस सीमा तक पुनर्वास पैकेज की आवश्यकता है, यह मूलतः नीतिगत मामला है। याचिकाकर्ता ने पाकिस्तान से आए लोगों के लिए व्यापक पुनर्वास पैकेज के लिए पहले ही प्राधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत कर दिया है। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस पर निर्णय ले।”
DELHI HC: दयनीय परिस्थितियों का मुद्दा
सुनवाई के दौरान यह तर्क दिया गया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत भारत में बसने वाले कई शरणार्थी असमान और दयनीय परिस्थितियों में रह रहे हैं। उनके पास बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जो कि उनके जीवन स्तर को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने नागरिकता तो प्रदान कर दी है, लेकिन उनके पुनर्वास और जीवन यापन के लिए आवश्यक सुविधाओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उन्होंने अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप कर सरकार को दिशा-निर्देश देने की अपील की।
सरकार की ओर से प्रस्तुत अभ्यावेदन में कहा गया कि इस प्रकार के मामलों का समाधान प्रशासनिक प्रक्रिया और नीति निर्माण के तहत किया जाना चाहिए। अदालत ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि यह मामला अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अदालत ने आगे कहा,
“आप पुनर्वास पैकेज की मांग कर रहे हैं और इसका मूल्यांकन विभिन्न मापदंडों के आधार पर किया जाएगा। अदालत नीति निर्माण में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”
DELHI HC: अदालत के आदेश का प्रभाव
याचिका खारिज होने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि इस मामले में अंतिम निर्णय सरकार के हाथों में है। अदालत ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह अपनी मांगों को लेकर संबंधित सरकारी विभागों के समक्ष अपनी बात रखें।
यह मामला न केवल सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त व्यक्तियों की कठिनाइयों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पुनर्वास और पुनर्निर्माण जैसी समस्याओं को हल करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाना कितना आवश्यक है।
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय सरकार और नागरिकों दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि पुनर्वास जैसे मामलों में न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब नीतिगत प्रक्रिया में गंभीर त्रुटियां पाई जाएं। याचिका खारिज होने के बावजूद, यह मामला नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत आने वाले व्यक्तियों की दुर्दशा को सरकार और समाज के सामने रखता है।
याचिकाकर्ता और सरकार के बीच इस मामले में आगे संवाद और नीति निर्माण की संभावना बनी रहेगी, ताकि इन नागरिकों को बेहतर जीवन जीने का अवसर दिया जा सके।