DELHI HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के राजनीतिक पार्टी के रूप में पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत चुनाव आयोग (ECI) के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, और इस प्रकार उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सुनवाई करने का कोई आधार नहीं बनता।
न्यायमूर्ति प्रतीक जलान की एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा, “हालांकि याचिकाकर्ता के वकील श्री होडा ने यह तर्क दिया कि AIMIM के उद्देश्य और लक्ष्यों को गलत तरीके से समझा गया है और यह केवल एक धार्मिक समुदाय के लाभ के लिए काम करता है, मैं इस मुद्दे पर विचार करना आवश्यक नहीं मानता, क्योंकि यह मामला चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”
यह मामला शिवसेना के सदस्य तिरुपति नरसिंह मुरारी द्वारा दायर किया गया था। मुरारी ने AIMIM के पंजीकरण को चुनौती देते हुए आरोप लगाया था कि पार्टी का संविधान भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है और यह केवल एक धार्मिक समुदाय, विशेषकर मुसलमानों के हितों की सेवा करता है।
CULCUTTA HC: धारा 494 दूसरी शादी पर सिर्फ पति दोषी, पत्नी नहीं
KERALA HC: यौन इरादे से शारीरिक संपर्क भी POCSO के तहत यौन शोषण
उनका तर्क था कि इस तरह का पंजीकरण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत नहीं हो सकता, क्योंकि इस धारा के तहत पंजीकरण से जुड़े कुछ विशेष नियम और शर्तें हैं, जिन्हें AIMIM ने पूरा नहीं किया है।
DELHI HC: AIMIM का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
AIMIM की स्थापना 1958 में हुई थी और पार्टी ने 1959 में हैदराबाद नगरपालिका चुनावों में भाग लिया। इसके बाद से पार्टी ने आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनावों सहित अन्य विभिन्न चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज की। 1984 में AIMIM ने हैदराबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद चुनाव आयोग से अपनी पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू की। 1989 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के बाद, AIMIM ने अपने संविधान को धारा 29A के अनुरूप परिवर्तित किया और 1992 में उसे चुनाव आयोग से पंजीकरण मिला।
DELHI HC: कोर्ट की टिप्पणियां और आदेश
कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए बुनियादी सवालों पर गहरी टिप्पणियां कीं। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य को अपने राजनीतिक विचारों को व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है, और याचिकाकर्ता का आरोप इस अधिकार में हस्तक्षेप करने जैसा है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार का हस्तक्षेप संविधान की भावना के खिलाफ है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने याचिकाकर्ता के धारा 123 के आधार पर दिए गए तर्क को भी अस्वीकार कर दिया। धारा 123 का उद्देश्य चुनावों के दौरान भ्रष्ट आचरण और चुनावी प्रक्रिया में किसी प्रकार की धोखाधड़ी की पहचान करना है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी के पंजीकरण के संदर्भ में इसका उपयोग किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस धारा का उपयोग केवल चुनावी प्रक्रिया और उम्मीदवारों की अयोग्यता से संबंधित मामलों में किया जा सकता है, और इसका पंजीकरण प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।
DELHI HC: पार्टी के पंजीकरण पर कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने अंततः AIMIM के पंजीकरण को वैध ठहराया और याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों के गठन और पंजीकरण को लेकर चुनाव आयोग की प्रक्रिया और निर्णय के खिलाफ किसी प्रकार की दखलअंदाजी को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
मामला तिरुपति नरसिंह मुरारी बनाम भारत संघ और अन्य (Neutral Citation: [2024:DHC:8952])
यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में दर्ज किया गया था, जहां याचिकाकर्ता ने AIMIM के पंजीकरण को चुनौती दी थी।
प्रतिनिधित्व:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, हरि शंकर जैन, मनी मुंजल और पार्थ यादव
- उत्तरदाता: सीजीएससी हरिश वैद्यनाथन शंकर, अधिवक्ता सुरुचि सुरी, ओमार होड़ा, श्रीश कुमार मिश्रा, अलेक्जेंडर मैथाई पैकडे, मुहम्मद अली खान, ईशा बख्शी, कमरान खान, गुरबानी भाटिया और अर्जुन शर्मा
DELHI HC: निर्णय का महत्व
यह फैसला भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहां राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके संचालन की प्रक्रिया पर बार-बार सवाल उठाए जाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि चुनाव आयोग का पंजीकरण प्रक्रिया पर पूर्ण अधिकार है, और अदालत इसमें किसी प्रकार की हस्तक्षेप करने के खिलाफ है, जब तक कि यह संविधान और कानून से संबंधित न हो।