DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय में सामान्य विधि प्रवेश परीक्षा (CLAT) 2025 की उत्तर कुंजी में त्रुटियों को लेकर एक विधि छात्र द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हो रही है। यह परीक्षा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (NLU) में प्रवेश का आधार है।
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की अध्यक्षता वाली अदालत ने बुधवार को कहा कि न्यायालयों से ऐसी परीक्षाओं में हस्तक्षेप न करने का दृष्टिकोण अपनाने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन जब उत्तर कुंजी में स्पष्ट त्रुटियाँ हों, तो हस्तक्षेप अभ्यर्थियों के साथ न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो सकता है।
DELHI HC: मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, 17 वर्षीय विधि अभ्यर्थी, ने CLAT 2025 (UG) की उत्तर कुंजी में कई उत्तरों को चुनौती दी है। याचिका के अनुसार, अंतिम उत्तर कुंजी में कुछ उत्तर त्रुटिपूर्ण थे, जिससे उनकी रैंकिंग प्रभावित हुई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि गलत उत्तर के कारण परीक्षा के परिणाम में निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठता है।
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इस विवाद का केंद्र एनएलयू कंसोर्टियम द्वारा जारी अंतिम उत्तर कुंजी है, जिसे तीन विशेषज्ञ समितियों द्वारा पहले ही जाँच और अनुमोदित किया जा चुका है। कंसोर्टियम ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उत्तर कुंजी पर आपत्तियों की समीक्षा विशेषज्ञों द्वारा की गई थी, और इस प्रक्रिया में कोई चूक नहीं हुई।
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि हालांकि न्यायालयों को परीक्षाओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन यदि प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट रूप से गलत हैं, तो यह हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा, “कई निर्णयों में यह माना गया है कि जब उत्तर स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण हों, तो अभ्यर्थियों के साथ अन्याय से बचने के लिए न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए।”
न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि उन्होंने विवादित प्रश्नों का स्वयं अध्ययन किया और पाया कि उनमें से एक प्रश्न का स्पष्ट उत्तर था, जिसे गलत तरीके से “डेटा अपर्याप्त” के रूप में चिह्नित किया गया था। उन्होंने बताया कि प्रश्न के सही उत्तर “सोहन” को विकल्पों में शामिल नहीं किया गया था।
DELHI HC: एनएलयू कंसोर्टियम का पक्ष
एनएलयू कंसोर्टियम के वकील ने तर्क दिया कि न्यायालय को इस मामले में अपने विचार प्रतिस्थापित नहीं करने चाहिए, क्योंकि विशेषज्ञ समितियाँ पहले ही इन आपत्तियों की समीक्षा कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर कुंजी बनाने और उसकी समीक्षा करने की प्रक्रिया में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, और यह प्रक्रिया किसी भी न्यायिक हस्तक्षेप से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
वकील ने यह भी चिंता व्यक्त की कि यदि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप करती है, तो एनएलयू की पूरी प्रवेश प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे प्रश्नों के बीच अंतर करना जरूरी है, जिनका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं होता, और ऐसे प्रश्न जिनमें सभी विकल्प गलत होते हैं। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “यदि सभी उत्तर गलत हैं, तो उम्मीदवार से ‘सबसे नजदीकी’ उत्तर चुनने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसे मामलों में उम्मीदवार को लाभ दिया जाना चाहिए।”
कंसोर्टियम के वकील ने जवाब दिया कि कुछ प्रश्नों में अस्पष्टता हो सकती है और उम्मीदवार से अपेक्षा की जाती है कि वह सबसे उचित उत्तर चुने।
DELHI HC: प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सवाल
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि त्रुटिपूर्ण उत्तर कुंजी से परीक्षा की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठता है। उन्होंने यह भी कहा कि परीक्षा प्रक्रिया में त्रुटियों को नजरअंदाज करना कानून के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
न्यायालय ने माना कि उत्तर कुंजी के विवादों में न्यायिक हस्तक्षेप तभी उचित है जब त्रुटियाँ स्पष्ट और सिद्ध हों। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि वह इस मामले में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेंगी, ताकि उम्मीदवारों के अधिकारों का संरक्षण हो और प्रवेश प्रक्रिया भी प्रभावित न हो।
इस मामले की अगली सुनवाई कल दोपहर 2:30 बजे होगी। न्यायालय ने अभी अंतिम निर्णय नहीं सुनाया है, लेकिन इस विवाद ने परीक्षाओं की प्रक्रिया और उत्तर कुंजी की सटीकता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
DELHI HC: निष्कर्ष
CLAT जैसी प्रतियोगी परीक्षाएँ छात्रों के भविष्य को निर्धारित करती हैं। इसलिए, इनकी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। दिल्ली उच्च न्यायालय का यह मामला न्यायिक हस्तक्षेप और विशेषज्ञता के बीच संतुलन स्थापित करने का एक उदाहरण है। इस फैसले का प्रभाव केवल याचिकाकर्ता पर ही नहीं, बल्कि समग्र परीक्षा प्रक्रिया और अन्य छात्रों पर भी पड़ेगा।