Delhi high court: दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायपालिका और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ निराधार शिकायतें दर्ज करने और न्यायाधीशों के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में एक वकील को चार महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला तब प्रकाश में आया जब अदालत ने वकील के अवांछनीय व्यवहार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए उसके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की।
अदालत ने इसे “न्यायालयों को बदनाम करने का प्रयास” कहा और न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा के लिए उसे दोषी मानते हुए सजा सुनाई।
Delhi high court: अवमानना का आधार और अदालत की प्रक्रिया
मामले की शुरुआत मई में हुई जब दिल्ली हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश ने वकील के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही स्वतः संज्ञान लेते हुए दायर की। वकील पर आरोप था कि उसने न्यायाधीशों के खिलाफ व्यक्तिगत और अपमानजनक टिप्पणी की और वर्चुअल सुनवाई के दौरान चैट बॉक्स में अदालत को अपमानित करने वाली टिप्पणियां कीं।
वकील ने ऑनलाइन सुनवाई के दौरान चैट बॉक्स में टिप्पणियां कीं, जिनमें उसने कहा, “उम्मीद है कि अदालत बिना किसी दबाव के मेरिट के आधार पर आदेश पारित करेगी,” और अन्य टिप्पणी जिसमें न्यायालय के फैसलों पर पक्षपात का आरोप लगाया गया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने पाया कि वकील ने 30-40 शिकायतें दर्ज की थीं, जिनमें निचली अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ व्यक्तिगत आरोप लगाए गए थे।
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Delhi high court: अदालत की प्रतिक्रिया: न्यायपालिका की गरिमा की सुरक्षा
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी वकील द्वारा इस तरह का आचरण अस्वीकार्य है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि वकील का यह व्यवहार “न्यायालयों को बदनाम करने और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास है।” उन्होंने टिप्पणी की कि “किसी वकील जैसे योग्य व्यक्ति की ओर से इस तरह का आचरण बिना सजा के नहीं छोड़ा जा सकता है।”
कोर्ट ने कहा कि वकील ने अपने निजी मामलों को सुलझाने के उद्देश्य से न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने कहा, “अभियुक्त ने न्यायालय को व्यर्थ के मामलों में उलझा रखा है, जो न्यायपालिका के कामकाज में बाधा डालता है।” कोर्ट ने पाया कि वकील ने अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को निपटाने के लिए अदालत के समय का दुरुपयोग किया।
Delhi high court: अवमानना की पुष्टि: न्यायपालिका के विरुद्ध अपमानजनक भाषा
कोर्ट ने कहा कि वकील द्वारा न्यायपालिका के प्रति प्रयोग की गई भाषा और उसके द्वारा उठाए गए कदमों से स्पष्ट रूप से अवमानना का संकेत मिलता है। अदालत ने टिप्पणी की, “वकील द्वारा प्रयोग की गई अपमानजनक भाषा और अदालत के प्रति इस प्रकार का दृष्टिकोण अदालत की अवमानना है।” अदालत ने आगे कहा कि वकील ने जानबूझकर अदालत की गरिमा को ठेस पहुँचाने का प्रयास किया है।
अदालत ने वकील को चार महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई और 2000 रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वकील को अदालत परिसर से तुरंत हिरासत में लिया जाए और उसकी सजा पर कोई स्थगन न दिया जाए। न्यायालय ने कहा कि वकील ने माफी मांगने का कोई प्रयास नहीं किया और अपने आचरण पर कोई पछतावा भी नहीं दिखाया।
Delhi high court: सजा के निलंबन का अनुरोध और अदालत का जवाब
सजा सुनाए जाने के समय अभियुक्त ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए सजा निलंबित करने की मांग की, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया। अदालत ने टिप्पणी की, “अभियुक्त ने न्यायालय और विशेष रूप से कई न्यायाधीशों के खिलाफ गलत प्रचार अभियान चलाया है।”
अदालत ने यह भी कहा कि यदि अभियुक्त कानूनी सलाह चाहता है, तो दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति (DHCLSC) उसे एक अधिवक्ता उपलब्ध कराएगी। कोर्ट ने यह सुझाव दिया क्योंकि अभियुक्त ने अपनी ओर से सुनवाई का बचाव किया और बार-बार अवसर देने के बावजूद वह कानूनी सहायता लेने से इनकार करता रहा।
Delhi high court: निष्कर्ष: अदालत की गरिमा की रक्षा में सख्त कदम
अदालत ने वकील के आचरण को निंदनीय माना और उसे दंडित करना आवश्यक समझा। अदालत ने टिप्पणी की कि “कोर्ट की गरिमा और न्यायपालिका की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए ऐसे आचरण को रोकना जरूरी है।” इस मामले में अदालत ने इस बात को सुनिश्चित किया कि कोई भी व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अदालत की छवि को धूमिल न कर सके।
मामला शीर्षक: कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम संजीव कुमार [न्यूट्रल संदर्भ संख्या: 2024: DHC: 8587-DB]