DELHI HIGH COURT: दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को आदेश दिया है कि वह सेंट स्टीफन कॉलेज में ईसाई अल्पसंख्यक कोटे के तहत दाखिला न मिलने वाले 19 में से 18 छात्रों को तुरंत प्रवेश दे। यह आदेश सेंट स्टीफन कॉलेज द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिका में कॉलेज ने दावा किया था कि ईसाई अल्पसंख्यक कोटे के तहत चयनित छात्रों को उनके स्नातक कार्यक्रमों में दाखिला देने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय ने आवश्यक प्रक्रिया पूरी नहीं की थी।
DELHI HIGH COURT: मामले का संदर्भ और न्यायालय की टिप्पणी
न्यायमूर्ति स्वर्ण कंता शर्मा की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की और निर्णय सुनाते हुए कहा कि 18 ईसाई अल्पसंख्यक छात्रों को प्रवेश का अधिकार है। इनमें से एक छात्र कोटा के तहत निर्धारित 5% सीमा से अधिक होने के कारण प्रवेश से वंचित रह गया। न्यायालय ने कहा कि छात्रों का अल्पसंख्यक या गैर-अल्पसंख्यक होना उनके शैक्षिक भविष्य के संदर्भ में कोई महत्व नहीं रखता है। अदालत के अनुसार, वे सभी छात्र हैं, जो अपने भविष्य के लिए एक शैक्षणिक संस्थान में अवसर खोज रहे हैं।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, “चाहे यह मुकदमा कुछ छात्रों द्वारा किया गया हो या सभी प्रभावित छात्रों द्वारा, कानून की नजर में वे सिर्फ छात्र हैं, जो एक शैक्षिक संस्थान में अपने भविष्य के लिए प्रयास कर रहे हैं। वे अल्पसंख्यक हैं या गैर-अल्पसंख्यक, इसका कोई महत्व नहीं है। अंत में, वे इस गर्वित देश के नागरिक हैं और उस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय और कॉलेज में पढ़ने की आकांक्षा रखते हैं।”
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न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधित करने का अधिकार प्राप्त है। हालांकि, यह अधिकार पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है, विशेषकर तब जब ये संस्थान सरकार से सहायता प्राप्त कर रहे हों। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि ऐसे अल्पसंख्यक संस्थानों को संबद्ध विश्वविद्यालयों द्वारा स्थापित नियमों और शर्तों का पालन करना अनिवार्य है।
DELHI HIGH COURT: अदालत के आदेश की विशेषताएँ और राहत
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 19 में से 18 छात्रों को तुरंत सेंट स्टीफन कॉलेज में प्रवेश मिलेगा। इस संदर्भ में, न्यायालय ने उल्लेख किया कि यह राहत उन छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिन्होंने अपने भविष्य को लेकर इस न्यायालय में याचिका दायर की थी।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला उन छात्रों के लिए एक सकारात्मक परिणाम है, जिन्होंने कई हफ्तों तक दाखिले की अनिश्चितता का सामना किया। न्यायालय ने कहा, “इस न्यायालय को खुशी है कि एक बार फिर, इस मामले में याचिका दायर करने वाले 19 में से 18 छात्रों को इस अदालत से राहत मिल गई है और वे कल से अपने चुने हुए कॉलेज में कक्षाएं अटेंड करेंगे।”
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रोमी चाको ने पेशी की, जबकि प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता मोहिंदर जेएस रुपल ने दलीलें दीं।
DELHI HIGH COURT: सेंट स्टीफन कॉलेज का पक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया
सेंट स्टीफन कॉलेज ने तर्क दिया कि उसने 24 अगस्त तक ईसाई उम्मीदवारों की चयनित सूची दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को सौंप दी थी, लेकिन विश्वविद्यालय ने शुल्क पोर्टल सक्रिय नहीं किया, जिसके कारण छात्रों को प्रवेश प्रक्रिया पूरी करने में परेशानी हुई। इस कारण उनके नामों को विश्वविद्यालय के कॉमन सीट एलोकेशन सिस्टम (CSAS) पोर्टल पर सूचीबद्ध नहीं किया गया। कॉलेज ने बताया कि स्नातक कक्षाएं 29 अगस्त से शुरू हो गई थीं और चल रही देरी से छात्रों को काफी मानसिक और शैक्षिक संकट का सामना करना पड़ा। ईमेल के माध्यम से कई बार विश्वविद्यालय को इस समस्या के समाधान के लिए याद दिलाने के बावजूद, विश्वविद्यालय ने दाखिला प्रक्रिया को सही ढंग से पूरा नहीं किया।
बाद में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अदालत में स्वीकार किया कि फीस जमा करने की अंतिम तिथि 30 सितंबर थी, लेकिन इसे आगे बढ़ा दिया गया था। हालांकि, कॉलेज ने अदालत को बताया कि चयनित उम्मीदवारों के लिए विश्वविद्यालय का शुल्क पोर्टल अभी तक नहीं खोला गया था, जिसके कारण छात्रों का प्रवेश प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई थी।
DELHI HIGH COURT: सेंट स्टीफन कॉलेज का दाखिला प्रक्रिया और अदालत की टिप्पणी
सेंट स्टीफन कॉलेज, जिसे ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है, को पहले दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 85% वेटेज कॉमन अंडरग्रेजुएट एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के अंकों पर और 15% वेटेज साक्षात्कार प्रक्रिया पर आधारित प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी। कॉलेज ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने ईसाई उम्मीदवारों के चयन को मान्यता नहीं दी और प्रवेश की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न किया। अदालत ने कॉलेज के पक्ष में निर्णय दिया और विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह 18 चयनित छात्रों को तुरंत प्रवेश प्रदान करे।
न्यायालय ने कहा, “मामला एक सकारात्मक नोट पर समाप्त होता है कि इस मामले में 19 में से 18 छात्रों को उनके चुने हुए कॉलेज में प्रवेश मिल गया है। जिन छात्रों को सेंट स्टीफन कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला, उनके लिए पूर्व पैराग्राफ में की गई टिप्पणियां लागू होती हैं। इस न्यायालय ने सभी छात्रों के लिए उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं, चाहे उन्हें अपने मनपसंद कॉलेज में प्रवेश मिला हो या दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी अन्य प्रतिष्ठित कॉलेज में।”
DELHI HIGH COURT: मामले का कानूनी प्रभाव और भविष्य के लिए दिशा-निर्देश
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह आदेश न केवल उन 18 छात्रों के लिए राहत लेकर आया, जो कई हफ्तों से अपने दाखिले को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रहे थे, बल्कि यह आदेश देश के अन्य शैक्षिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल साबित होगा।
यह आदेश स्पष्ट करता है कि अल्पसंख्यक संस्थान भी, यदि वे सरकारी सहायता प्राप्त कर रहे हैं, तो उन्हें संबद्ध विश्वविद्यालयों के नियमों का पालन करना होगा। संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार होते हुए भी, यह आवश्यक है कि शैक्षणिक संस्थान विद्यार्थियों के अधिकारों का सम्मान करें और उन्हें समान अवसर प्रदान करें। अदालत का यह निर्णय यह भी इंगित करता है कि शैक्षिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के बीच समन्वय का अभाव छात्रों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय छात्रों के अधिकारों और अल्पसंख्यक संस्थानों के नियमों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आदेश न केवल उन 18 छात्रों के लिए राहत प्रदान करता है, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक दिशा-निर्देश भी स्थापित करता है, जहाँ शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के बीच समन्वय की कमी से छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है।