Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख (Supreme Court’s Strict)

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By headlineslivenews.com

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Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जारी गाथा में एक नया अध्याय जुड़ गया है। हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा डाटा सार्वजनिक किए जाने के बाद, इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। 15 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को सिर्फ खरीदार और भुनाने वाले के विवरण ही नहीं, बल्कि हर इलेक्टोरल बॉन्ड की विशिष्ट संख्या का भी खुलासा करने का आदेश दिया।

Electoral Bond

यह फैसला फरवरी 2024 में आए उस ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया है, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में इस योजना की पारदर्शिता की कमी को चिंता का विषय बताया था, क्योंकि गुप्त रूप से दान करने की सुविधा राजनीतिक दलों में धन के असमान वितरण और धन शोध को बढ़ावा दे सकती है।

Electoral Bond – Electoral Bond Data :-

न्यायालय का यह ताजा आदेश चुनाव आयोग को मिले आंकड़ों में और अधिक स्पष्टता लाने की उम्मीद जगाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड की विशिष्ट संख्याओं के खुलासे से यह पता लगाया जा सकेगा कि आखिर कौन सी कंपनियों या व्यक्तियों ने किन राजनीतिक दलों को कितना चंदा दिया। यह सूचना चुनाव में धन के स्रोतों पर नज़र रखने और राजनीतिक वित्त पोषण में जवाबदेही लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

Electrol Bond

हालांकि, यह गाथा यहीं खत्म नहीं होती है। इस मामले में अभी और सुनवाई होनी बाकी है। यह देखना होगा कि क्या भविष्य में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा या फिर कोर्ट के निर्देशों के अनुसार इसमें व्यापक सुधार किए जाएंगे ताकि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।

What is Electoral Bond – Electoral Bond List :-

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर दान देने वालों और राशि की पूरी जानकारी चुनाव आयोग ने मार्च 2024 में सार्वजनिक कर दी थी. हालांकि, यह जानकारी देने वाले के नाम से नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों को कितना इलेक्टोरल बॉन्ड मिला, इस आधार पर दी गई है.

कुछ पार्टियों को सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड Electoral Bond मिले, जिनमें ये शामिल हैं:

  • भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
  • तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)
  • शिवसेना
  • राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
  • आम आदमी पार्टी (AAP)
  • जनता दल (सेक्युलर) (जेडी(एस))

आप चुनाव आयोग की वेबसाइट भारतीय निर्वाचन आयोग: eci.gov.in पर ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

पार्टी

कुल बॉन्ड राशि

Electoral Bonds Data – What are Electoral Bonds :-

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में गुप्त रूप से राजनीतिक दान देने की एक व्यवस्था थी, जिसे 2018 में शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाना था, लेकिन इसकी आलोचना भी हुई है क्योंकि इससे कंपनियां और धनी लोग गुप्त रूप से राजनीतिक दलों को चंदा दे सकते हैं. भारत की सर्वोच्च अदालत अभी इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर विचार कर रही है.

मार्च 2024 में, सरकार ने घोषणा की कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री बंद कर देगी.

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका था। यह 2018 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का बांड होता है, जिसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी खरीद सकता है और राजनीतिक दलों को दान कर सकता है। दान करने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कई तरह के विवाद रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार और अस्पष्टता को बढ़ावा देती है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के मुख्य बिंदु:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की शाखाओं से खरीदे जा सकते हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड को केवल राजनीतिक दलों को दान किया जा सकता है।
  • राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड को 15 दिनों के भीतर बैंक में जमा करना होगा।
  • चुनाव आयोग इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी की निगरानी करता है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के पक्ष में तर्क:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से चंदा प्राप्त करने में मदद करते हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को काले धन से मुक्ति मिलती है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त होता है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ तर्क:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार और अस्पष्टता को बढ़ावा देते हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों पर बड़े व्यवसायों और धनवान व्यक्तियों का प्रभाव बढ़ता है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों के बीच असमानता बढ़ती है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड का भविष्य:

मार्च 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। सरकार ने अभी तक इस फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह देखना बाकी है कि सरकार इस फैसले को कैसे लागू करती है और क्या राजनीतिक दलों को चंदा देने का कोई नया तरीका शुरू किया जाता है।

2018 से 2024 के बीच जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की कुल राशि लगभग 16,518 करोड़ रुपये बताई गई है.

सूत्रों के अनुसार, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने चुनाव आयोग को सौंपे गए हलफनामे में यह जानकारी दी है. इस हलफनामे में बताया गया है कि 29 किश्तों में कुल इतनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए.

भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड Electoral Bond खरीदने के लिए निम्नलिखित पात्र हैं:

  • भारतीय नागरिक: कोई भी भारतीय नागरिक KYC (अपने ग्राहक को जानें) नियमों का पालन करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है।
  • भारत में पंजीकृत संस्थाएं: कंपनियां, फर्म, संघ या कोई अन्य कृत्रिम юридиयिक व्यक्ति जो भारत में पंजीकृत हैं, वे KYC का पालन कर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकते हैं। इसमें हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) भी शामिल है।

कुछ महत्वपूर्ण बातें: Electoral Bond :

  • इलेक्टोरल बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की विशिष्ट शाखाओं से ही खरीदे जा सकते हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदते समय दान करने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है।

ध्यान दें: मार्च 2024 में, भारत की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर सवाल उठाया और उन्हें असंवैधानिक घोषित कर दिया। फिलहाल, इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री बंद कर दी गई है।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड अब भारत में इस्तेमाल नहीं होते हैं। मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें असंवैधानिक करार दिया था।

पहले, कोई भी भारतीय नागरिक या भारत में रजिस्टर्ड संस्था इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान दे सकता था। इसमें शामिल थे:

  • व्यक्तिगत नागरिक: KYC (अपने ग्राहक को जानें) नियमों का पालन करने वाले किसी भी भारतीय नागरिक इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकते थे।
  • रजिस्टर्ड संस्थाएं: भारत में रजिस्टर्ड कंपनियां, फर्म, संघ या कोई अन्य कृत्रिम юридиयिक व्यक्ति भी इन्हें खरीद सकते थे।

Electoral Bond : ध्यान देने योग्य बातें:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की चुनिंदा शाखाओं से ही मिलते थे।
  • बॉन्ड खरीदते समय दान करने वाले का नाम गुप्त रहता था।
  • इन बॉन्ड्स को सिर्फ रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को ही दिया जा सकता था, जिन्हें पिछले चुनाव में कम से कम 1% वोट मिले हों।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे:

1. पारदर्शिता में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना था। इससे पहले, राजनीतिक दलों को नकद में चंदा मिलता था, जिसके कारण पारदर्शिता की कमी थी।

2. काले धन का इस्तेमाल कम होना: इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान करने वाले का नाम गुप्त रहता है। इससे काले धन का इस्तेमाल कम होने की उम्मीद थी।

3. राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन: इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त होने की उम्मीद थी।

4. छोटे दलों को फायदा: इलेक्टोरल बॉन्ड से छोटे दलों को भी बड़े दलों के समान स्तर पर चुनाव लड़ने का मौका मिलने की उम्मीद थी।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के नुकसान:

1. भ्रष्टाचार में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों पर बड़े व्यवसायों और धनवान व्यक्तियों का प्रभाव बढ़ने की आशंका थी। इससे भ्रष्टाचार में वृद्धि हो सकती थी।

2. अस्पष्टता: इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को चंदा देने की प्रक्रिया में अस्पष्टता बनी रह सकती थी।

3. असमानता में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड से बड़े दलों को छोटे दलों की तुलना में अधिक फायदा मिलने की आशंका थी। इससे राजनीतिक दलों के बीच असमानता बढ़ सकती थी।

4. दुरुपयोग की संभावना: इलेक्टोरल बॉन्ड का दुरुपयोग होने की संभावना थी।

5. नागरिकों का जानने का अधिकार: इलेक्टोरल बॉन्ड से नागरिकों का यह जानने का अधिकार छिन जाता है कि राजनीतिक दलों को कौन चंदा दे रहा है।

निष्कर्ष:

इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे और नुकसान दोनों हैं। यह कहना मुश्किल है कि कुल मिलाकर इनका प्रभाव सकारात्मक था या नकारात्मक।

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे और नुकसान:

फायदेनुकसान
पारदर्शिता में वृद्धिपारदर्शिता में कमी
दक्षता में वृद्धिभ्रष्टाचार में वृद्धि
नैतिकता में वृद्धिअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा
नियंत्रण में वृद्धि
Electoral Bond :

फायदे: Electoral Bond :

  • पारदर्शिता में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड चंदा देने का एक अधिक पारदर्शी तरीका है। अब चंदा देने वालों को अपना नाम और पता देना होता है, जिससे यह पता लगाना आसान हो जाता है कि पैसा कहां से आ रहा है।
  • दक्षता में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड चंदा देने का एक अधिक आसान तरीका है। अब बैंक के माध्यम से चंदा दिया जा सकता है, जिससे यह प्रक्रिया तेज और सुविधाजनक हो जाती है।
  • नैतिकता में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड से काला धन का राजनीति में इस्तेमाल कम होता है। अब नकदी या bearer instruments नहीं दिए जा सकते, सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड ही दिए जा सकते हैं।
  • नियंत्रण में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वजह से चुनावी खर्च पर बेहतर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है। खरीदने की एक निश्चित समय-सीमा होती है, जिससे राजनीतिक दलों को अपने खर्च की योजना बनाना आसान हो जाता है।

नुकसान: Electoral Bond :

  • पारदर्शिता में कमी: इलेक्टोरल बॉन्ड कभी-कभी गोपला रखने में मदद करते हैं, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि पैसा कौन दे रहा है। यह बड़ा पैसा को अधिक प्रभाव देने का मौका दे सकता है।
  • भ्रष्टाचार में वृद्धि: इलेक्टोरल बॉन्ड का गलत इस्तेमाल हो सकता है, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, कोई राजनीतिक दल किसी व्यवसाय को चुनावी में मदद करने के लिए अनुचित लाभ दे सकती है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा: सरकार अपने आलोचकों को निशाना बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल कर सकती है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा हो सकता है। उदाहरण के लिए, सरकार उन व्यापारियों पर दबाव डाल सकती है जो उनकी आलोचना करते हैं।

निष्कर्ष: Electoral Bond :

Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे और नुकसान दोनों हैं। यह चुनाव में अधिक पारदर्शिता लाने में मदद करते हैं, लेकिन यह भ्रष्टाचार का खतरा भी बढ़ा सकते हैं.

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