“EVM MACHINE 2024 : भारतीय चुनाव तंत्र की कहानी”

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By headlineslivenews.com

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EVM MACHINE 2024


“EVM MACHINE 2024 : भारतीय चुनाव तंत्र की कहानी”

EVM MACHINE 2024 सुप्रीम कोर्ट का चुनावी प्रक्रिया में सकारात्मक भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र के संरक्षण के लिए चुनावी प्रक्रिया पर विश्वास रखना महत्वपूर्ण है। उन्होंने उत्तराधिकारियों को चुनाव आयोग के साथ सम्पर्क करके शिकायत करने का मार्ग दिया है, यदि वे ईवीएम में कोई अनियमितता या छेड़छाड़ का पता लगाते हैं।

फैसले के बाद, वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट की यह निर्णय प्रशंसा की और इसे लोकतंत्र के सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना। उन्होंने भी उत्तराधिकारियों को सलाह दी कि चुनावी मानदंडों का निर्धारण करने के लिए ईवीएम और वीवीपैट की जांच की जाए।


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EVM MACHINE 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वीवीपैट के साथ ईवीएम द्वारा डाले गए सभी वोटों का मिलान का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर फैसला रोका। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने इसे सुरक्षित रखा, लेकिन वे कुछ स्पष्टीकरण की मांग की, क्योंकि आयोग द्वारा दिए गए जवाबों में कुछ अस्पष्टताएं थीं।

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“ईवीएम के खिलाफ सवाल: चुनावी प्रक्रिया में विश्वास की चुनौती”

EVM MACHINE 2024 : भारतीय चुनाव तंत्र की कहानी” भारतीय लोकतंत्र में, ईवीएम चुनाव प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। यह अहमियत इस तथ्य से समझी जा सकती है कि इन्हें अंतिम दो दशकों से हर संसदीय और विधानसभा चुनाव में प्रयोग किया जा रहा है। ईवीएम को शंकाओं, आलोचनाओं, और आरोपों का सामना करना पड़ा है,

EVM MACHINE 2024 : लेकिन चुनाव आयोग का मानना है कि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए महत्वपूर्ण है। चुनाव आयोग ने ईवीएम में गड़बड़ी और धांधली से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए कई कोशिशों की है। इस लेख में हम जानेंगे कि ईवीएम क्या है,

यह कैसे काम करती है, इसका इस्तेमाल कब शुरू हुआ, इसे बनाने में कितना खर्च होता है, और ईवीएम के आने के बाद चुनाव प्रक्रिया में कैसे बदलाव आया है।

भारतीय चुनाव प्रक्रिया में डायरेक्ट रिकॉर्डिंग ईवीएम का प्रयोग

EVM MACHINE 2024 : या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, भारतीय चुनाव प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है। यह मशीन बैटरी पर चलती है और मतदान के दौरान वोटों को दर्ज करती है और गिनती भी करती है। इसमें तीन हिस्से होते हैं – कंट्रोल यूनिट (सीयू), बैलेटिंग यूनिट (बीयू), और वीवीपैट। पहले मतदान कंपार्टमेंट में वोटिंग किया जाता था,

EVM MACHINE 2024 : लेकिन ईवीएम के आगमन के साथ मतदान की प्रक्रिया में कई बदलाव हुए। आधुनिक मतदान की यह प्रणाली काग़ज़ और मुहर के बजाय ‘बैलट’ बटन का उपयोग करती है। कंट्रोल यूनिट पर ‘बैलट’ बटन दबाने के बाद, मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के आगे लगाए गए बटन को दबाकर अपना वोट दर्ज करता है।

चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम का प्रयोग: एक यात्रा का संघर्ष और सफलता

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“EVM MACHINE 2024 : या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, मतदान प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है जो आधुनिकीकृत और सुरक्षित मतदान सुनिश्चित करता है। इसमें कंट्रोल यूनिट में मतदान किए गए वोट दर्ज होते हैं, जो करीब 2000 वोट को संग्रहित कर सकती है।

बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं, और अतिरिक्त यूनिट्स के साथ जोड़ा जा सकता है ताकि अधिक उम्मीदवारों के लिए मतदान किया जा सके। इससे मतदान की सटीकता बढ़ती है और गलत वोटिंग की संभावना कम होती है। ईवीएम का उपयोग करने के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती

और यह निरक्षर मतदाताओं के लिए भी सुविधाजनक होती है। इस प्रकार, ईवीएम ने मतदान प्रक्रिया को सुगम और सुरक्षित बनाया है, जिससे लोगों को वोट देने में भी आसानी होती है और चुनाव आयोग को मतगणना में भी सहायता मिलती है।


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चुनावी तकनीक: भारत में स्थानीय डिज़ाइन और निर्माण

EVM MACHINE 2024 : वीवीपीएट, या वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल, एक नई व्यवस्था है जो ईवीएम के शंकाओं को दूर करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा लाया गया है। इस सिस्टम में, जिसे आमतौर पर वीवीपैट भी कहा जाता है, वोटर को यह दिखाता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को पहुंचा या नहीं।

जब वोटर नीले बटन पर दबाता है, तो वीवीपैट मशीन से एक पर्ची निकाली जाती है जिसमें उम्मीदवार का नाम, क्रम, और चुनाव चिह्न होते हैं। यह पर्ची फिर सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है, जिससे मतदाता अपने वोट की सहीता की पुष्टि कर सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक चुनाव: भारतीय मतदान में ईवीएम का प्रयोग

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EVM MACHINE 2024 : वीवीपैट वाली ईवीएम का प्रथम उपयोग 2013 में नगालैंड के नोकसेन विधानसभा क्षेत्र के उपचुनावों में हुआ था। अब, प्रत्येक चुनाव में इसका उपयोग होता है, जिसे ईवीएम का अभिन्न अंग माना जाता है। शंकाओं को दूर करने के लिए, हर चुनाव क्षेत्र में एक मशीन का रैंडम चयन किया जाता है और फिर ईवीएम मशीन के वोटों का मिलान वीवीपैट पर्चियों के वोटों से किया जाता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, अगर किसी स्थान पर मशीन में आ रहे वोटों के आंकड़े वीवीपैट की पर्चियों के आंकड़ों से अलग होते हैं, तो वीवीपैट के आंकड़ों को प्राथमिकता दी जाएगी।

ईवीएम: नए युग में मतदान की अभिव्यक्ति

“EVM MACHINE 2024 और वीवीपैट मशीनों का आयात नहीं किया जाता है, बल्कि इन्हें भारत में ही डिज़ाइन और निर्माण किया जाता है। यहीं पर इनका विकास और निर्माण होता है। चुनाव आयोग के अनुसार, इसके लिए दो सरकारी कंपनियां अधिकृत हैं।

एक है भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), जो रक्षा मंत्रालय के तहत आती है, और दूसरी कंपनी है इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), जो डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के तहत आती है। ये दोनों कंपनियां चुनाव आयोग की ओर से बनाई टेक्निकल एक्सपर्ट्स कमेटी (टीईसी) के मार्गदर्शन में काम करती हैं।


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ईवीएम: न्यायालयों की मान्यता और विवादों का समाधान

EVM MACHINE 2024 : विश्वभर में वोटिंग के लिए अनेक प्रकार की मशीनें प्रयोग की जा रही हैं, लेकिन भारत में इस्तेमाल होने वाली मशीन का स्वरूप अन्य देशों की मशीनों से भिन्न है। भारत में इस्तेमाल होने वाली मशीन को ‘डायरेक्ट रिकॉर्डिंग ईवीएम’ (डीआरई) कहा जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार,

EVM MACHINE 2024 : भारत में वोटिंग के लिए मशीन इस्तेमाल करने का विचार सबसे पहले साल 1977 में उठाया गया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एस.एल. शकधर ने इन्हें इस्तेमाल करने की बात की थी। उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड को हैदराबाद में ईवीएम डिज़ाइन और विकसित करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।

1979 में ईवीएम का एक शुरुआती मॉडल विकसित किया गया, जिसे 6 अगस्त 1980 में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने प्रदर्शित किया गया। बाद में बेंगलुरु की भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को भी ईवीएम विकसित करने के लिए चुना गया।


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ईवीएम: चुनावी प्रक्रिया में बदलाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा

EVM MACHINE 2024 : भारत में चुनावों में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल साल 1982 में हुआ था, जब केरल विधानसभा की पारूर सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान बैलटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट वाली ईवीएम का प्रयोग किया गया। लेकिन इस मशीन के इस्तेमाल को लेकर कोई क़ानून न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनाव को ख़ारिज कर दिया था।

इसके बाद, साल 1989 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम , 1951 में संशोधन किया और चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान किया। उसके बाद, 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों में हुए चुनाव में इसका इस्तेमाल हुआ, और 1999 में 45 सीटों पर भी ईवीएम का प्रयोग किया गया।

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EVM MACHINE 2024 : फ़रवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 45 सीटों पर भी ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। मई 2001 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, और पुद्दुचेरी में हुए विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर मतदान दर्ज करने के लिए ईवीएम इस्तेमाल हुई। उसके बाद से हर विधानसभा चुनाव में ईवीएम का प्रयोग होता आ रहा है। 2004 के आम चुनावों में सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में मतदान के लिए 10 लाख से ज़्यादा ईवीएम इस्तेमाल की गई थीं।

ईवीएम के ज़रिये मतदान में धांधली के आरोप शुरू से ही लगते रहे हैं, और इस तरह के मामले अदातों में भी पहुंचे हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि विभिन्न हाई कोर्ट ने ईवीएम को भरोसेमंद माना है। साथ ही, ईवीएम के पक्ष में हाई कोर्टों द्वारा दिए गए कुछ फ़ैसलों को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने उन अपीलों को खारिज कर दिया। “EVM MACHINE 2024 : भारतीय चुनाव तंत्र की कहानी”

ईवीएम की लागत और लाभ : चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम का महत्व

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जैसा कि अब तक हम जान गए हैं, वोटिंग मशीन के तीन मुख्य हिस्से होते हैं – कंट्रोल यूनिट (सीयू), बैलेटिंग यूनिट (बीयू) और वीवीपैट. भारत सरकार की प्राइस नैगोसिएशन कमेटी ने इन हिस्सों के दाम तय करती है। चुनाव आयोग के मुताबिक़, बीयू की कीमत है 7991 रुपये, सीयू की 9812 रुपये और सबसे महंगा हिस्सा है – वीवीपैट, जिसका दाम है 16,132 रुपये।

एक ईवीएम कम से कम 15 साल तक चलती है। इससे चुनाव प्रक्रिया सस्ती होने का भी दावा किया जाता है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि चुनावों के बाद ईवीएम को स्टोर करके इनकी लगातार हाईटेक निगरानी करने में भारी भरकम खर्च आता है। मगर चुनाव आयोग का कहना है कि भले ही शुरुआती निवेश कुछ ज़्यादा लगता है,

EVM MACHINE 2024 : लेकिन हर चुनाव के लिए लाखों की संख्या में मतपत्र छापने, उन्हें ढोने, स्टोर करने में होने वाले खर्च से बचत होती है। इसके अलावा चुनाव आयोग के मुताबिक़, मतगणना के लिए ज़्यादा स्टाफ़ की ज़रूरत नहीं पड़ती और उन्हें दिए जाने वाले पारिश्रमिक में कमी आने से निवेश की तुलना में कहीं ज़्यादा भरपाई हो जाती है।

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