DELHI HC: दिल्ली उच्च न्यायालय ने लोक नायक अस्पताल को HIV-पॉजिटिव ट्रांसवुमन का परीक्षण करने और बिना पहचान पत्र के बावजूद उसे आवश्यक इलाज प्रदान करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता, जो एक ट्रांसजेंडर महिला के रूप में अपनी पहचान करती हैं, ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति संजीव नारुला की एकल पीठ ने इस मामले में आदेश देते हुए कहा, “लोक नायक अस्पताल, दिल्ली को याचिकाकर्ता का परीक्षण करने और यदि उसे किसी इलाज की आवश्यकता हो तो उसे तत्काल प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है, भले ही याचिकाकर्ता के पास पहचान पत्र न हो।”
DELHI HC: मामले की पृष्ठभूमि और याचिकाकर्ता का दावा
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह एक ट्रांसजेंडर महिला हैं, जिन्होंने बचपन में कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का सामना किया। याचिकाकर्ता के अनुसार, जब वह 4-5 साल की थीं, तो उन्हें एक ट्रांसजेंडर द्वारा अपहरण कर लिया गया था, जो मानव तस्करी गिरोह का हिस्सा था। इसके बाद उन्हें एक बंद कमरे में बंद कर दिया गया और उनका यौन उत्पीड़न किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान, याचिकाकर्ता HIV पॉजिटिव पाई गईं और उनका उपचार आवश्यक था।
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याचिकाकर्ता ने आगे बताया कि जब उन्होंने लोक नायक अस्पताल के डॉक्टरों से परामर्श लिया, तो डॉक्टरों ने यह सलाह दी कि उन्हें HIV उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती किया जाए। हालांकि, पहचान पत्र की अनुपस्थिति के कारण अस्पताल ने उन्हें इलाज देने से मना कर दिया। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने भी उन्हें शेल्टर देने से मना कर दिया क्योंकि उनके पास कोई सरकारी पहचान पत्र नहीं था।
इस कारण, याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया और उनकी वकील संजीव क्र. बलियान ने याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मांग की कि उन्हें इलाज और शेल्टर देने के लिए अदालत के निर्देशों की आवश्यकता है।
DELHI HC: उच्च न्यायालय का निर्णय
मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति संजीव नारुला की खंडपीठ ने लोक नायक अस्पताल को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता का परीक्षण करे और अगर उन्हें इलाज की आवश्यकता हो तो उसे तत्काल प्रदान किया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि पहचान पत्र के अभाव में अस्पताल को इलाज देने से मना नहीं करना चाहिए।
इसके साथ ही, अदालत ने दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसल समीर वशिष्ठ से यह सुनिश्चित करने को कहा कि अस्पताल इस आदेश का पालन करे और याचिकाकर्ता को चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए।
इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य और दिल्ली के मौजूदा मौसम को ध्यान में रखते हुए उसे उपयुक्त शेल्टर प्रदान करने की व्यवस्था करे। यह कदम याचिकाकर्ता की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था, विशेष रूप से उसकी चिकित्सा स्थिति और मौसम के मद्देनजर।
DELHI HC: मुकदमे का विवरण
मुकदमा शीर्षक: एबीसी बनाम भारत संघ एवं अन्य (मामला संख्या: W.P.(C) 18011/2024)
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व:
- अधिवक्ता संजीव क्र. बलियान
- अधिवक्ता निर्भय शर्मा
- अधिवक्ता ज्योति गर्ग
- अधिवक्ता यश यादव
प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व:
- स्टैंडिंग काउंसल समीर वशिष्ठ
- अधिवक्ता हार्शिता नथरानी
- एसपीसी संदीप त्यागी
- अधिवक्ता आक्षिता त्यागी
- अधिवक्ता संजय कनोझिया
DELHI HC: कोर्ट की टिप्पणी और निर्देश
अदालत ने इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को चिकित्सा सेवा से वंचित नहीं किया जा सकता, भले ही उसके पास पहचान पत्र न हो, खासकर जब उसका जीवन संकट में हो। उच्च न्यायालय ने यह संदेश भी दिया कि स्वास्थ्य और मानवाधिकार सर्वोपरि हैं और इन मामलों में सरकारी संस्थानों को पहचान पत्र की कमी के कारण किसी को इलाज से इनकार नहीं करना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का जीवन पहले ही अत्यधिक कठिन परिस्थितियों से गुजरा है और अब उसे सही चिकित्सा सहायता और सुरक्षित आवास की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य सरकार और अस्पतालों को इस मामले में मानवता के दृष्टिकोण से काम करना चाहिए।
इस फैसले ने ट्रांसजेंडर समुदाय और उनके अधिकारों के प्रति न्यायालय की संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया है, साथ ही यह भी सिद्ध किया है कि समाज के हाशिये पर खड़े व्यक्तियों को, चाहे उनके पास कोई पहचान पत्र हो या न हो, आवश्यक चिकित्सा सेवाएं और सहायता मिलनी चाहिए।