IMF ने जताई चिंता: ट्रंप के टैरिफ का ग्लोबल इकोनॉमी पर असर 2025 !

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By headlineslivenews.com

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IMF ने जताई चिंता: दुनिया की अर्थव्यवस्था में एक बार फिर उथल-पुथल के आसार हैं।

IMF ने जताई चिंता: ट्रंप के टैरिफ का ग्लोबल इकोनॉमी पर असर 2025 !
IMF ने जताई चिंता: ट्रंप के टैरिफ का ग्लोबल इकोनॉमी पर असर 2025 !

इस बार वजह बनी है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ यानी अतिरिक्त आयात शुल्क। भले ही ट्रंप अब अमेरिका की सत्ता में नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान जो वैश्विक ट्रेड पॉलिसी बदली गई थी, उसका असर धीरे-धीरे दुनिया की इकोनॉमी पर साफ दिखने लगा है।

भारत भी इस चक्रवात से अछूता नहीं रहेगा। जानकारों का कहना है कि आने वाले महीनों में भारत समेत कई देशों में महंगाई बढ़ सकती है, औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ेगा और वैश्विक विकास दर धीमी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी इस बारे में चिंता जताई है।

तो आखिर ट्रंप के टैरिफ ने कैसे पूरी दुनिया की इकॉनमी को हिलाना शुरू किया है? भारत पर इसका कितना असर पड़ेगा? और आगे क्या हो सकता है? चलिए इसे विस्तार से समझते हैं।

IMF ने जताई चिंता: क्या है ट्रंप टैरिफ और कब से लागू हुए?

डोनाल्ड ट्रंप जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसी को बढ़ावा देने के लिए विदेशी सामानों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने शुरू कर दिए। उनका तर्क था कि इससे घरेलू उद्योगों को फायदा मिलेगा और अमेरिका में नौकरियां बढ़ेंगी।

ट्रंप प्रशासन ने सबसे पहले 2018 में चीन से आने वाले 34 अरब डॉलर के सामानों पर 25% टैरिफ लगाया। बाद में यह दायरा यूरोप, कनाडा, मैक्सिको, भारत और बाकी एशियाई देशों तक बढ़ गया। स्टील और एल्युमिनियम से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, और रोजमर्रा के सामानों तक पर शुल्क लगाया गया।

हालांकि तब अमेरिका के इस कदम का दुनिया के कई देशों ने विरोध किया था, और व्यापार युद्ध (Trade War) जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। धीरे-धीरे वैश्विक ट्रेड स्लो हो गया, मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर असर पड़ा और कई देशों की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी।

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अब क्यों चर्चा में है ट्रंप टैरिफ?

हाल ही में IMF की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा कि अब ट्रंप टैरिफ का असली असर दुनिया की इकोनॉमी पर दिखने वाला है। IMF जल्द ही अपने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में वैश्विक विकास दर का अनुमान घटाने वाला है।

उनके मुताबिक, ट्रेड पॉलिसी की अनिश्चितता के कारण अब वैश्विक बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी। कई देशों में कीमतें बढ़ेंगी, कुछ जगह बेरोजगारी बढ़ेगी और कई छोटे-बड़े कारोबार मंदी के दबाव में आ सकते हैं।

इसी के साथ, जापान, यूरोप और अमेरिका में परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) के जो ताज़ा आंकड़े आने वाले हैं, वे भी बता देंगे कि मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर पर इन टैरिफ का क्या असर पड़ा है।

IMF ने जताई चिंता: ट्रंप के टैरिफ का ग्लोबल इकोनॉमी पर असर 2025 !

IMF और एक्सपर्ट्स की राय

IMF का कहना है कि भले ही मंदी नहीं आएगी, लेकिन वैश्विक आर्थिक विकास दर ज़रूर घटेगी। वहीं, ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स का तर्क है कि IMF अपने अनुमान में अक्सर वास्तविकता से थोड़ा कम खतरा दिखाता है।

ब्लूमबर्ग ने बताया कि जिन चार बड़े वैश्विक आर्थिक संकटों का अध्ययन किया गया, उनमें IMF का शुरुआती अनुमान असली नुकसान से औसतन 0.5% कम था। यानी असल असर इससे ज़्यादा गहरा हो सकता है।

फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने भी संकेत दिया कि अमेरिका की सेंट्रल बैंक पॉलिसी में बदलाव करने से पहले वे हालात का पूरा जायजा लेना चाहेंगे। वहीं, यूरोपियन सेंट्रल बैंक की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने कहा कि अभी यह कहना मुश्किल है कि स्थिति कितनी गंभीर है और कब तक रहेगी।

भारत पर कितना असर?

भारत भी इस वैश्विक परिस्थितियों से अछूता नहीं है। भारत का बड़ा हिस्सा आयात-निर्यात पर निर्भर है। अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे बड़े व्यापारिक साझेदार अगर मंदी की चपेट में आते हैं या ट्रेड वॉर की स्थिति बनती है, तो भारतीय बाजार में भी निवेश घटेगा और निर्यात पर असर पड़ेगा।

भारत की आईटी, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, फार्मा और मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पहले ही वैश्विक मांग में कमी से जूझ रही हैं। अब अगर अमेरिका और यूरोप की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ती है, तो इन क्षेत्रों में नौकरियां घटेंगी, महंगाई बढ़ेगी और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आ सकती है।

इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट का भी खतरा है। अगर विदेशी निवेशक अपना पैसा भारत से निकालते हैं तो शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।

कौन-से सेक्टर होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित?

ट्रंप के टैरिफ और इसके बाद वैश्विक मंदी के संकेत उन सेक्टरों पर सबसे ज्यादा असर डाल सकते हैं जो विदेशी बाजार पर निर्भर हैं:

  • आईटी और सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट: अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है।
  • फार्मास्यूटिकल्स: भारत दुनिया को जेनेरिक दवाएं सप्लाई करता है।
  • ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स: यूरोप, अमेरिका और साउथ-ईस्ट एशिया में भारतीय सप्लाई पर असर।
  • स्टील और एल्युमिनियम: सबसे पहले ट्रंप के टैरिफ से प्रभावित होने वाला सेक्टर।
  • टेक्सटाइल और गारमेंट्स: सस्ते दाम की वजह से भारत का बड़ा निर्यात मार्केट है।

क्या भारत सरकार तैयार है?

सरकार ने हाल ही में संकेत दिया है कि अगर वैश्विक मंदी आती है, तो देश की आंतरिक मांग और निवेश को बढ़ाकर इसे संतुलित किया जाएगा।

फाइनेंस मिनिस्ट्री और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने भी कहा है कि वे लगातार वैश्विक हालात पर नज़र बनाए हुए हैं और ज़रूरत पड़ने पर पॉलिसी इंटरवेंशन किया जाएगा।

सरकार घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और MSME सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए PLI (Production Linked Incentive) स्कीम को तेज़ी से लागू कर रही है, ताकि आयात पर निर्भरता घटाई जा सके।

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नतीजा क्या निकल सकता है?

दुनिया की अर्थव्यवस्था ग्लोबलाइज़ेशन से गहराई से जुड़ी है। अगर अमेरिका, यूरोप और जापान में आर्थिक सुस्ती आती है, तो भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता।

हालांकि भारत के पास एक फायदा यह है कि देश में घरेलू मांग और कंज्यूमर बेस काफी बड़ा है। इसके ज़रिए भारत आंतरिक तौर पर खुद को संभाल सकता है।

लेकिन एक्सपोर्ट आधारित इंडस्ट्री, डॉलर-रुपया रेट और विदेशी निवेश पर इसका असर पड़ना तय है।

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2018 से व्यापार असंतुलन का कारण बना ट्रंप टैरिफ

ट्रंप के टैरिफ ने 2018 से ही वैश्विक व्यापार व्यवस्था में असंतुलन पैदा कर दिया था। अब IMF और अन्य वैश्विक एजेंसियों के संकेत बता रहे हैं कि इसका असर अब गहराने वाला है।

भारत को इसके लिए सतर्क रहना होगा। केंद्र सरकार और RBI को त्वरित नीतिगत फैसले लेने होंगे, ताकि घरेलू इकॉनमी को संभाला जा सके।

कुल मिलाकर, आने वाले छह महीने भारत और पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम होंगे। ये तय करेंगे कि क्या वैश्विक मंदी का खतरा हकीकत बनेगा या दुनिया फिर एक बार इससे उबरने में कामयाब रहेगी।


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