IVF technology: भारत में चिकित्सा विज्ञान की दुनिया में साल 1978 एक ऐसा साल था जिसने देश में लाखों निसंतान दंपत्तियों के जीवन में उम्मीद की एक नई किरण पैदा की।
इसी साल भारत में पहली बार Test Tube Baby तकनीक के जरिए एक बच्ची का जन्म हुआ। इस तकनीक का श्रेय जाता है डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय को, जिनकी सोच और मेहनत ने भारत को इस क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों की सूची में ला खड़ा किया। लेकिन विडंबना देखिए कि जिस चमत्कारी उपलब्धि के लिए उन्हें सम्मान मिलना चाहिए था, उसी के कारण उनका जीवन त्रासदी में बदल गया और अंततः उन्हें आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाना पड़ा।
कौन थे डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय?
IVF technology: डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय कोलकाता के एक मेधावी और समर्पित चिकित्सक थे, जिन्होंने भारत में सबसे पहले In-vitro fertilization (IVF) यानी टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक पर काम शुरू किया। उन्होंने बेहद सीमित संसाधनों और दबावों के बीच यह परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया। 3 अक्टूबर 1978 को कनुप्रिया अग्रवाल, जिन्हें जन्म के समय “दुर्गा” नाम दिया गया था, का जन्म हुआ। वह भारत की पहली और विश्व की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी बनीं।
क्या है टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक?
IVF technology: Test Tube Baby तकनीक में महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को शरीर के बाहर लैब में मिलाया जाता है और भ्रूण बनने पर उसे मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह तकनीक खास तौर पर उन दंपत्तियों के लिए वरदान साबित होती है जो प्राकृतिक रूप से संतान सुख से वंचित रहते हैं।
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सरकारी उपेक्षा और वैज्ञानिक ईर्ष्या ने छीनी एक जान
जैसे ही डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने अपने इस क्रांतिकारी प्रयोग की घोषणा की, उन्हें न केवल मेडिकल बिरादरी बल्कि सरकारी तंत्र से भी तिरस्कार मिला। कई वरिष्ठ डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों ने उनके काम को झूठा, अवैज्ञानिक और अप्रमाणित बताया। तत्कालीन सरकार ने उनके शोध को मान्यता देने से इनकार कर दिया। यहां तक कि एक समिति गठित की गई जिसने उनका उपहास उड़ाया और उनके शोध को “नकली” करार दिया।
डॉ. मुखोपाध्याय को ना तो कोई प्रोत्साहन मिला, न ही अनुसंधान करने की अनुमति। उन्हें ट्रांसफर कर दिया गया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। इन सब अपमान और मानसिक प्रताड़नाओं से दुखी होकर उन्होंने 19 जून 1981 को आत्महत्या कर ली।
ईमानदारी की मिसाल बने डॉक्टर टीसी आनंद कुमार
डॉक्टर मुखोपाध्याय की मौत के कई सालों बाद, 1986 में डॉक्टर टीसी आनंद कुमार की निगरानी में मुंबई में एक बच्ची “हर्षा” का जन्म हुआ, जिसे तब भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी घोषित किया गया। लेकिन जब डॉक्टर आनंद को डॉक्टर मुखोपाध्याय की पत्नी द्वारा उनकी डायरी और शोध दस्तावेज सौंपे गए, तब उन्होंने खुद सच को स्वीकार किया। उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ सार्वजनिक रूप से कहा कि डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ही भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक थे, और उन्हें ही इसका श्रेय मिलना चाहिए।
सिनेमा के माध्यम से जीवित हुआ एक वैज्ञानिक का संघर्ष
धीरे-धीरे डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। वैज्ञानिक समुदाय और मेडिकल संस्थानों ने उनकी रिसर्च को मान्यता दी। उनका नाम अब IVF तकनीक के पायनियरों में गिना जाता है। कोलकाता में उनके कार्यों पर आधारित फिल्म “एक डॉक्टर की मौत” भी बनी जिसमें पंकज कपूर ने उनका किरदार निभाया।
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कौन हैं भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी?
भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का असली नाम कनुप्रिया अग्रवाल है। जन्म के समय उनका नाम “दुर्गा” रखा गया था। उनका जन्म 3 अक्टूबर 1978 को कोलकाता में हुआ था। कनुप्रिया आज एक सफल महिला हैं और खुद एक 10 साल के बेटे की मां हैं। उन्होंने न केवल समाज की सोच को बदलने में योगदान दिया बल्कि यह भी साबित किया कि IVF तकनीक से जन्म लेना किसी भी तरह से असामान्य नहीं होता।
विज्ञान के बलिदानी योद्धा को नमन
डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय की कहानी भारत में विज्ञान और समाज के टकराव की एक मार्मिक गाथा है। जिस वैज्ञानिक ने लाखों निसंतान माता-पिता को संतान का सुख दिया, उसी को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के कारण समाज के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा। हालांकि देर से ही सही, लेकिन आज उन्हें वह सम्मान और स्थान मिला है जिसके वे हकदार थे।
उनकी कहानी यह भी सिखाती है कि वैज्ञानिक सोच और नवाचार को केवल तकनीकी समर्थन नहीं, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता और नैतिक समर्थन भी मिलना चाहिए। आज जब हम IVF को आम प्रक्रिया मानते हैं, तो हमें उन लोगों को याद करना चाहिए जिन्होंने इसके लिए अपने जीवन की कुर्बानी दी — और ऐसे महान वैज्ञानिक डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय को हमारा शत-शत नमन।