SAMBHAL VIOLENCE: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने संभल में भड़की हिंसा के संबंध में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। यह हिंसा संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश के बाद हुई थी।
न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि एफआईआर को प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध मानते हुए रद्द नहीं किया जा सकता। साथ ही, कोर्ट ने गिरफ्तारी के मामले में राज्य सरकार और पुलिस को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया।
SAMBHAL VIOLENCE: एफआईआर को रद्द करने से इनकार
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि एफआईआर में दर्ज आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध के दायरे में आते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तेलंगाना राज्य बनाम हबीब अब्दुल्ला जेलानी (2017) और नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) के मामलों में दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि एफआईआर को रद्द करने की याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
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अदालत ने अपने आदेश में कहा, “हमने एफआईआर का अवलोकन किया है, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा हुआ है। अत: एफआईआर रद्द करने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि जिया-उर-रहमान बर्क को इस मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो राज्य सरकार को कानून और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रासंगिक दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
कोर्ट ने निर्देश दिया, “यदि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी की जाती है, तो यह सुनिश्चित किया जाए कि बी.एन.एस.एस. (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) की धारा 35 के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन हो।” इस प्रावधान के अनुसार, पुलिस केवल विशेष परिस्थितियों में बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है।
SAMBHAL VIOLENCE: बर्क की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता इमरान उल्लाह और सैयद इकबाल अहमद ने तर्क दिया कि जिया-उर-रहमान बर्क को राजनीतिक कारणों से इस मामले में फंसाया गया है। उन्होंने यह दावा किया कि हिंसा में उनकी कोई संलिप्तता नहीं है और यह सब भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा उन्हें परेशान करने और डराने के लिए किया गया है।
बर्क ने अपनी याचिका में कहा कि मस्जिद के सर्वेक्षण के समय वे संभल में मौजूद नहीं थे, बल्कि बेंगलुरु में थे। उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया और दावा किया कि यह एफआईआर राजनीति से प्रेरित है।
यह विवाद 19 नवंबर, 2024 को शुरू हुआ, जब संभल की एक सिविल अदालत ने शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया। यह आदेश अधिवक्ता हरि शंकर जैन और सात अन्य द्वारा दायर याचिका पर दिया गया, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल काल में एक ध्वस्त मंदिर के स्थान पर किया गया था।
अदालत के आदेश के बाद, इलाके में तनाव बढ़ गया। प्रारंभिक सर्वेक्षण के दौरान पथराव और वाहनों को जलाने की घटनाएं हुईं, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। 24 नवंबर को, जब सर्वेक्षणकर्ताओं की टीम ने मस्जिद का दूसरा सर्वेक्षण करने का प्रयास किया, तो प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं।
SAMBHAL VIOLENCE: पुलिस का दावा
यूपी पुलिस ने दर्ज एफआईआर में जिया-उर-रहमान बर्क और स्थानीय विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहेल इकबाल का नाम शामिल किया। पुलिस का आरोप है कि हिंसा से कुछ दिन पहले बर्क ने शाही जामा मस्जिद की अपनी यात्रा के दौरान भड़काऊ टिप्पणी की थी। पुलिस ने यह भी दावा किया कि बर्क की टिप्पणी ने स्थानीय लोगों को उकसाया, जिसके परिणामस्वरूप यह हिंसा हुई।
हिंसा के दौरान पांच लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। इस बीच, हिंसा में चार व्यक्तियों की मौत के संबंध में पुलिस अधिकारियों और जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए एक अन्य याचिका भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
अदालत ने पुलिस को सख्ती से कानून का पालन करने का निर्देश देते हुए कहा कि गिरफ्तारी के मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही या कानून के उल्लंघन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
SAMBHAL VIOLENCE: राजनीतिक पृष्ठभूमि और आरोप
समाजवादी पार्टी ने इस पूरे मामले को राजनीति से प्रेरित करार दिया है। पार्टी का आरोप है कि भाजपा सरकार इस मुद्दे का इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और विपक्ष को निशाना बनाने के लिए कर रही है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि एफआईआर को रद्द करने के लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। साथ ही, यह सुनिश्चित किया गया कि गिरफ्तारी के मामलों में कानून और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन हो।
अदालत ने अपने फैसले से स्पष्ट कर दिया कि कानून के पालन में किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी। हालांकि, यह मामला सांप्रदायिक और राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बना हुआ है, जिसका प्रभाव क्षेत्र की स्थिति पर पड़ सकता है।