KARNATAKA HC: कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक दृष्टिहीन उम्मीदवार को प्राथमिक शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए योग्य माना गया था। कोर्ट ने कहा कि राज्य और उसके अधिकारियों को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत उन नीतियों का पालन करना चाहिए जो कानूनी रूप से लागू की गई हैं।
यह फैसला विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके रोजगार में अवसरों की समानता को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
KARNATAKA HC: मामले का संक्षिप्त विवरण
यह मामला राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए एक आदेश से शुरू हुआ, जिसमें अनुसूचित जाति की एक पूर्णतः दृष्टिहीन महिला उम्मीदवार ने प्राथमिक शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। ट्रिब्यूनल ने उनकी याचिका स्वीकार की और संबंधित विभाग को निर्देश दिया कि वे उनकी नियुक्ति पर विचार करें।
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राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि ‘कम दृष्टि’ (Low Vision) वाले उम्मीदवारों और ‘पूर्ण दृष्टिहीन’ (Blind) उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग आरक्षण श्रेणियां हैं। सरकार का कहना था कि ट्रिब्यूनल ने इन श्रेणियों के बीच के अंतर को अनदेखा किया और इसलिए उसका आदेश त्रुटिपूर्ण है।
न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित और न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई की। उन्होंने कहा कि यह समझना मुश्किल है कि दृष्टिहीनता शिक्षक की जिम्मेदारियों को निभाने में कैसे बाधा बन सकती है। खंडपीठ ने ऐतिहासिक दृष्टांतों का हवाला देते हुए कहा, “इतिहास ऐसे दृष्टिहीन व्यक्तियों की उपलब्धियों से भरा हुआ है, जिन्होंने असाधारण काम किए हैं। होमर, जिन्होंने ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ जैसे महाकाव्य लिखे, जॉन मिल्टन, लुई ब्रेल, हेलेन केलर और श्रीकांत बोला जैसे व्यक्तित्व इसके उदाहरण हैं।”
KARNATAKA HC: आरक्षण और नियुक्ति से जुड़े मुद्दे
राज्य सरकार ने अदालत में तर्क दिया कि विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण में ‘कम दृष्टि’ और ‘पूर्ण दृष्टिहीनता’ के लिए अलग-अलग श्रेणियां निर्धारित की गई हैं। सरकार ने कहा कि 2011 की एक अधिसूचना के तहत ‘कम दृष्टि’ वाले उम्मीदवारों को प्राथमिक शिक्षक के पद पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हालांकि, खंडपीठ ने 5 मार्च 2007 की केंद्रीय अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें दृष्टिहीन उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया है। अदालत ने कहा कि केंद्रीय अधिसूचना का कानूनी दर्जा राज्य अधिसूचना से अधिक है और इसलिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
खंडपीठ ने राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दृष्टिहीनता शिक्षक की भूमिका निभाने में बाधा बन सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘कम दृष्टि’ वाले उम्मीदवारों की तुलना में पूर्ण दृष्टिहीन उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि वे अधिक चुनौतियों का सामना करते हैं। हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि यह प्राथमिकता केवल तभी दी जा सकती है, जब दृष्टिहीनता शिक्षक की जिम्मेदारियों को निभाने में बाधा न बने।
KARNATAKA HC: न्यायालय का आदेश
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्य और उसके उपकरणों को उन नीतियों का पालन करना चाहिए, जो कानूनी रूप से लागू हैं और जिनका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को रोजगार में समान अवसर प्रदान करना है। कोर्ट ने कहा, “राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने ‘कम दृष्टि’ वाले उम्मीदवारों को प्रक्रिया से बाहर नहीं किया है। इसके बजाय, उसने प्रक्रिया का दायरा बढ़ाकर दृष्टिहीन उम्मीदवारों को शामिल किया है।”
अदालत ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों को कानून, तर्क और न्याय के अनुरूप निर्णय देना चाहिए।
- केंद्रीय अधिसूचना की प्राथमिकता: कोर्ट ने कहा कि 2007 की केंद्रीय अधिसूचना 2011 की राज्य अधिसूचना से अधिक महत्वपूर्ण है और नियुक्ति प्रक्रिया में इसका पालन किया जाना चाहिए।
- अनुच्छेद 12 का अनुपालन: कोर्ट ने जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य और उसके अधिकारियों को उन नीतियों के अनुसार काम करना चाहिए, जो विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई हैं।
- विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर: अदालत ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों को रोजगार में समान अवसर प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है।
KARNATAKA HC: मामले का विवरण
- मामला: राज्य बनाम एमएस. लता एच.एन.
- याचिकाकर्ता: एचसीजीपी सरिता कुलकर्णी।
कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी विकलांगता को अपनी प्रगति में बाधा नहीं बनने देना चाहते।