KARNATAKA HC: कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में फर्जी रिटर्न घोटाले के मामले में दो आरोपियों के खिलाफ दर्ज केस को रद्द करने से इनकार कर दिया। मामले में आरोप है कि दोनों आरोपियों ने अमेज़न से उच्च मूल्य के उत्पाद खरीदे और कुछ समय बाद उसे रिटर्न करने का दावा किया। रिटर्न करते समय उन्होंने मूल उत्पाद को बदलकर एक सस्ता उत्पाद भेजा और मूल उत्पाद को अपने पास रख लिया, जबकि रिफंड प्राप्त किया।
यह घोटाला आरोपियों द्वारा अमेज़न और ईबे जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर 104 संदिग्ध लेन-देन के रूप में किया गया, जिससे अमेज़न को लगभग 69 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
KARNATAKA HC: कोर्ट ने कहा- गंभीर रूप से विवादित तथ्य हैं
यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी और धोखाधड़ी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना) और धारा 34 (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज किया गया था। न्यायमूर्ति M. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इस मामले को रद्द करने की याचिका पर निर्णय सुनाते हुए कहा कि यह मामला गंभीर रूप से विवादित तथ्यों से घिरा हुआ है।
इस प्रकार के विवादित तथ्यों को सिर्फ पूर्ण परीक्षण के दौरान ही हल किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस स्तर पर हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, क्योंकि तथ्य इस हद तक विवादित हैं कि उन्हें केवल एक विस्तृत सुनवाई में ही सुलझाया जा सकता है।
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याचिकाकर्ता के वकील हाशमत पाशा ने अपनी दलील में कहा कि इस मामले को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66D (कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके धोखाधड़ी) के तहत दर्ज किया जाना चाहिए था, न कि धारा 420 के तहत। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ग्राहक द्वारा किए गए रिटर्न केवल उसी स्थान से किए जा सकते हैं, जहां उत्पाद मूल रूप से डिलीवर हुआ था, और रिफंड वही खाता प्रक्रिया हो सकती है, जिससे भुगतान हुआ हो।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि इस मामले में किए गए अपराध की रजिस्ट्री (FIR) को गलत तरीके से दर्ज किया गया और इसका आधार गलत था। उनका यह मानना था कि इस मामले में धारा 420 के तहत अपराध नहीं बनता है, क्योंकि यह ऑनलाइन धोखाधड़ी से संबंधित है, जिसे अलग से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सजा दी जानी चाहिए।
KARNATAKA HC: हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले पर अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के कप्तान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई मामला गंभीर रूप से विवादित तथ्यों से घिरा हो, तो हाईकोर्ट को साक्ष्य पर विचार करने का अधिकार नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में जांच और कोर्ट की भूमिका चार्जशीट के बाद शुरू होती है, जब सभी तथ्य और साक्ष्य अदालत में पेश किए जाते हैं।
इस फैसले के संदर्भ में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जब मामले में इतने विवादित तथ्य हो, तो इन पर विचार करने के लिए जांच एजेंसी की भूमिका होती है, और यह अदालत का काम नहीं है कि वह जांच एजेंसी की भूमिका को प्राथमिकता दे। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच एजेंसी को तथ्यों की जांच करनी होगी, और कोर्ट तब ही हस्तक्षेप कर सकता है जब चार्जशीट दाखिल हो और सभी तथ्यों को समग्र रूप से देखा जाए।
आरोपियों के खिलाफ जो मामला दर्ज किया गया है, उसमें आरोप है कि उन्होंने अमेज़न और ईबे पर 104 संदिग्ध लेन-देन किए, जिसमें उत्पादों को दावा करके लौटाया गया था कि वे दोषपूर्ण थे। आरोपियों ने उत्पादों को वापस करने के बाद, असली उत्पाद को बदलकर एक सस्ता उत्पाद भेजा और उसी के बदले रिफंड प्राप्त किया।
यह कार्रवाई कर्नाटक राज्य पुलिस ने 2021 में शुरू की थी और इस मामले में आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी और साजिश के आरोप लगाए गए हैं।
आरोपियों के खिलाफ की गई इन गतिविधियों से अमेज़न को 69 लाख रुपये का नुकसान होने का दावा किया गया है, और इस घोटाले के संबंध में पुलिस द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज किया गया है।
KARNATAKA HC: केस की आगे की कार्यवाही
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह एक गंभीर प्रकार का धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें साक्ष्य और तथ्यों की जांच के लिए विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि आरोपियों के खिलाफ तथ्यों की गंभीरता और उन्हें जोड़ने वाले साक्ष्य इस समय विवादित हैं, इसलिए इस मामले को आगे बढ़ाने का सबसे उपयुक्त तरीका एक पूर्ण परीक्षण है।
आगे की कार्रवाई के लिए कोर्ट ने जांच एजेंसी को मामले की गंभीरता को समझते हुए आगे बढ़ने और तथ्यों की जांच करने का निर्देश दिया। इस समय मामले में उच्च न्यायालय द्वारा कोई निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जांच एजेंसी सभी तथ्यों और साक्ष्यों की पूरी तरह से जांच करे और फिर चार्जशीट पेश करें।
मामला: Sourish Bose और Deepanvita Ghosh बनाम राज्य कर्नाटका और Denu T. Nair [Criminal Petition 10546 of 2024]
वकील: याचिकाकर्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता हाशमत पाशा और अधिवक्ता मोहमद मुबारक
उत्तरदाता: अतिरिक्त विशेष लोक अभियोजक B.N. जगदीश
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi