KARNATAKA HC,: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और उसके बाद की सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिसने अपने विवाह के निमंत्रण कार्ड पर एक संदेश छपवाया था, जिसमें लोगों से 2024 के संसदीय चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट देने का अनुरोध किया गया था।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की खंडपीठ ने आरोपी शिवप्रसाद द्वारा दायर याचिका को मंजूरी देते हुए इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने उस प्रिंटिंग एजेंसी के खिलाफ भी सभी कार्यवाही रद्द कर दी, जिसने शिवप्रसाद के निमंत्रण कार्ड को छापा था।
KARNATAKA HC: मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला दक्षिण कन्नड़ जिले के निवासी शिवप्रसाद से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपनी शादी के निमंत्रण कार्ड पर एक संदेश छपवाया था, जिसमें लिखा था, “मोदी को वोट देना मेरी शादी का उपहार है।
इस संदेश ने विवाद पैदा कर दिया और 25 अप्रैल को चुनाव अधिकारी संदेश केएन की शिकायत पर पुलिस ने शिवप्रसाद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 (लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपी एक्ट) की धारा 127ए के तहत मामला दर्ज किया था।
SUPREME COURT: उत्तर प्रदेश में सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने पर सख्त टिप्पणी
DELHI HC: ट्रेडमार्क मामले में मोती महल को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत
आरोप था कि शिवप्रसाद के निमंत्रण में यह संदेश चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह संदेश किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में प्रचार कर रहा था। चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत, आचार संहिता के दौरान चुनाव प्रचार से जुड़ी किसी भी गतिविधि को प्रतिबंधित किया गया है, और इस प्रकार का संदेश प्रचार के रूप में माना जा सकता था।
हालांकि, शिवप्रसाद ने अपनी याचिका में यह दावा किया कि उनका निमंत्रण कार्ड 1 मार्च को छापा गया था, जो कि आचार संहिता लागू होने से पहले का था।
शिवप्रसाद के वकील ने यह तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने 16 मार्च को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कार्यक्रमों की सूची घोषित की थी और प्रतिवादी चुनाव अधिकारी ने शिकायत 19 अप्रैल को दर्ज की थी। इस कारण से, उनके अनुसार, उनके द्वारा भेजा गया निमंत्रण चुनाव आचार संहिता के लागू होने से पहले था, और इस पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी।
KARNATAKA HC: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान शिवप्रसाद की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि यह एक “अजीब अपराध” था। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि शिवप्रसाद ने अपनी शादी का निमंत्रण भेजते समय जो संदेश लिखा था, वह चुनाव प्रचार नहीं था, बल्कि एक व्यक्तिगत आग्रह था।
कोर्ट ने कहा, “शिवप्रसाद ने अपने निमंत्रण कार्ड पर एक पोस्ट स्क्रिप्ट में लिखा था कि ‘आप मुझे शादी में जो उपहार देंगे वह नरेंद्र मोदी के लिए वोट है।’ इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 127ए के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले में कोई चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि निमंत्रण कार्ड को छापने की तारीख और आचार संहिता की लागू होने की तारीख के बीच पर्याप्त अंतर था। अदालत ने इस मामले को राजनीतिक विवाद से अलग रखते हुए इसे एक व्यक्तिगत और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखा।
KARNATAKA HC: न्यायालय का आदेश और अगले कदम
अदालत ने 11 नवंबर को मामले में अंतरिम रोक आदेश जारी किया था, जिसके बाद एफआईआर पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती थी। अब, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस मामले में सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
अदालत का विस्तृत आदेश अभी जारी किया जाना बाकी है, लेकिन इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आचार संहिता के तहत किसी व्यक्तिगत इशारे को आपराधिक गतिविधि नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह स्पष्ट रूप से चुनाव प्रचार के तहत न आता हो।
अदालत ने सह-आरोपी बालकृष्ण ए के खिलाफ भी सभी कार्यवाही रद्द कर दी, जो प्रिंटिंग एजेंसी का मालिक था जिसने शिवप्रसाद के निमंत्रण कार्ड को छापा था। अदालत ने इस मामले में सभी आरोपों को निरस्त करते हुए दोनों आरोपियों को राहत दी।
KARNATAKA HC: न्यायिक दृष्टिकोण और भविष्य के लिए दिशा
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है। सबसे पहले, यह स्पष्ट करता है कि चुनाव आचार संहिता केवल तब लागू होती है जब चुनावी गतिविधियाँ शुरू हो जाती हैं और यदि कोई व्यक्ति इससे पहले व्यक्तिगत रूप से किसी प्रकार का संदेश छापता है, तो उसे चुनाव प्रचार के रूप में नहीं लिया जा सकता।
इसके अलावा, इस निर्णय से यह भी संकेत मिलता है कि न्यायालय चुनावी विवादों को संवेदनशीलता और वास्तविकता के आधार पर देखता है और व्यक्तिगत मामलों में अति-उत्साही तरीके से कार्यवाही नहीं करता। ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा और विवेक की आवश्यकता होती है, ताकि कानून का पालन करते हुए व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
KARNATAKA HC: निष्कर्ष
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय इस बात का उदाहरण है कि न्यायिक प्रणाली किसी भी मामले में त्वरित और निष्पक्ष निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध है। इसने चुनाव प्रचार और व्यक्तिगत इरादों के बीच की सीमा को स्पष्ट किया और यह सुनिश्चित किया कि किसी को भी केवल इसलिए दंडित न किया जाए क्योंकि उसने एक व्यक्तिगत संदेश चुनावी संदर्भ में दिया है।
यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करेगा, जहां चुनाव आचार संहिता और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक होगा।