Kerala Government vs Governor Dispute: 6 मई को तय होगी विधेयक मंजूरी की समयसीमा की राष्ट्रव्यापी वैधता

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By headlineslivenews.com

Kerala Government vs Governor Dispute: 6 मई को तय होगी विधेयक मंजूरी की समयसीमा की राष्ट्रव्यापी वैधता

Kerala Government vs Governor Dispute: नई दिल्ली- अप्रैल 2025 — भारत के संवैधानिक ढांचे में राज्यपालों की भूमिका को लेकर एक बार फिर

Kerala Government vs Governor Dispute: 6 मई को तय होगी विधेयक मंजूरी की समयसीमा की राष्ट्रव्यापी वैधता

Kerala Government vs Governor Dispute: नई दिल्ली- अप्रैल 2025 — भारत के संवैधानिक ढांचे में राज्यपालों की भूमिका को लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में बहस छिड़ गई है।

Kerala Government vs Governor Dispute: 6 मई को तय होगी विधेयक मंजूरी की समयसीमा की राष्ट्रव्यापी वैधता
Kerala Government vs Governor Dispute: 6 मई को तय होगी विधेयक मंजूरी की समयसीमा की राष्ट्रव्यापी वैधता

इस बार केंद्र बिंदु बना है केरल और तमिलनाडु की सरकारों द्वारा विधानसभा में पारित विधेयकों को राज्यपाल द्वारा लटकाए जाने का मामला। केरल सरकार ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कई विधेयकों पर जानबूझकर फैसला टाल रहे हैं और इससे संवैधानिक प्रक्रिया बाधित हो रही है।

अब इसी मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला, केरल के मामले पर स्वत: लागू नहीं होगा। दरअसल, तमिलनाडु केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि विधेयकों पर मंजूरी या अस्वीकृति के लिए राज्यपाल को अनिश्चितकाल तक फैसला टालने का अधिकार नहीं है और इसके लिए व्यावहारिक समयसीमा तय होनी चाहिए।

Kerala Government vs Governor Dispute: केरल का दावा — हमारे मामले को भी फैसले में माना जाए

केरल सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि जिस फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल के मामले में समयसीमा की बात की गई है, वही बात केरल के मामले में भी लागू होती है। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु केस में यह स्पष्ट किया है कि कोई भी विधेयक अगर राष्ट्रपति के पास भेजना हो तो उसके लिए अधिकतम तीन महीने की सीमा मानी जानी चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा कि इस आधार पर केरल के मामले को भी उसी फैसले की परिधि में रखा जाना चाहिए।

अटॉर्नी जनरल का विरोध — केरल का केस अलग परिस्थितियों वाला

लेकिन अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि केरल का मामला तमिलनाडु से अलग है। उनके मुताबिक, “फैसले में केरल केस को नहीं शामिल किया गया क्योंकि इसमें कुछ तथ्यात्मक अंतर हैं। हम उन अंतरों को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना चाहेंगे।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इसी बात का समर्थन किया और कोर्ट से कुछ वक्त मांगा ताकि वे देख सकें कि हालिया फैसला केरल केस पर कितना लागू होता है। उनका कहना था कि सरकार को फैसले के प्रभाव की बारीकी से जांच करने की जरूरत है।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी — दोनों याचिकाओं को जोड़ा जाए

सुनवाई के दौरान जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने संकेत दिया कि इस मामले की सुनवाई को पहले से लंबित दूसरी याचिका से जोड़ने की आवश्यकता है। दरअसल, केरल सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा चार विधेयकों पर सहमति रोकने के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने इस दूसरी याचिका को 13 मई 2025 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका को भी वर्तमान याचिका के साथ जोड़ा जा सकता है और इसके लिए सीजेआई के समक्ष विशेष उल्लेख करना होगा। फिलहाल कोर्ट ने केरल के मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 मई की तारीख तय कर दी है।

Kerala Government vs Governor Dispute

केरल में विधेयक विवाद की पृष्ठभूमि

केरल सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। राज्यपाल पर आरोप है कि वे राजनीतिक कारणों से कई विधेयकों को रोककर बैठे हैं। नवंबर 2023 में केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यपाल के इस रवैये को असंवैधानिक बताया था। आरोप था कि वे विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों पर दो साल तक फैसला नहीं ले रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में इस देरी पर तीखी टिप्पणी करते हुए राज्यपाल की आलोचना भी की थी। बाद में कुछ विधेयक राष्ट्रपति को संदर्भित किए गए। फरवरी 2024 में राष्ट्रपति ने चार विधेयकों को खारिज कर दिया और तीन विधेयकों को मंजूरी दी।

राष्ट्रपति की मंजूरी रोकने वाले विधेयक थे —

  1. विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (सं. 2) विधेयक, 2021
  2. केरल सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक, 2022
  3. विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022
  4. विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) (सं. 3) विधेयक, 2022

इसके बाद केरल सरकार ने 2024 में एक और रिट याचिका दायर की, जिसमें राष्ट्रपति के इनकार को भी चुनौती दी गई। जुलाई 2024 में इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

तमिलनाडु का मामला और उसका प्रभाव

तमिलनाडु सरकार ने भी इसी तरह राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधेयकों को लंबित रखने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में फैसले में स्पष्ट किया कि राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं कराना चाहिए। अदालत ने कहा था कि अगर किसी विधेयक को राष्ट्रपति को भेजना है तो अधिकतम तीन महीने में यह प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।

तमिलनाडु फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधेयक पर या तो मंजूरी देनी चाहिए, या फिर राष्ट्रपति के पास संदर्भित करना चाहिए। अनिश्चितकाल तक इसे रोके रखना संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है।

केंद्र सरकार की रणनीति

केंद्र सरकार चाहती है कि केरल और तमिलनाडु के मामलों को अलग-अलग परिस्थितियों के तहत देखा जाए। यही वजह है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में साफ किया कि केरल केस को तमिलनाडु फैसले से जोड़ना तर्कसंगत नहीं होगा।

सरकार का तर्क है कि दोनों राज्यों की परिस्थितियों, विधेयकों की प्रकृति और संवैधानिक स्थिति अलग-अलग है। साथ ही केंद्र सरकार को आशंका है कि यदि सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु फैसले को केरल पर लागू कर देता है, तो इससे देशभर में राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच विवाद बढ़ सकते हैं।

संवैधानिक विमर्श और भविष्य की दिशा

यह मामला भारतीय संघीय ढांचे और संविधान में राज्यपालों की भूमिका को लेकर गहरी संवैधानिक बहस छेड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम फैसला देगा तो यह अन्य राज्यों में भी राज्यपाल-विधानसभा संबंधों की दिशा तय करेगा।

संविधानविदों का कहना है कि यह बेहद जरूरी है कि विधायी प्रक्रिया में राज्यपाल की भूमिका पर स्पष्ट समयसीमा और बाध्यता हो, ताकि निर्वाचित सरकार की इच्छा के अनुरूप लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित न हो।

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क्या तमिलनाडु का फैसला केरल पर लागू होगा?

सुप्रीम कोर्ट के सामने अब एक बड़ी जिम्मेदारी है कि वह यह तय करे कि तमिलनाडु का फैसला केरल केस पर लागू होगा या नहीं। फिलहाल दोनों पक्षों के तर्क रखे जा चुके हैं और कोर्ट ने 6 मई को अगली सुनवाई तय कर दी है।

संभावना है कि इसी दिन सुप्रीम कोर्ट, तमिलनाडु के फैसले की व्याख्या केरल केस के संदर्भ में भी करेगा और तय करेगा कि क्या विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने की अधिकतम सीमा पूरे देश में एक समान होगी या राज्यों की परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मानी जाएगी।

केस टाइटल:
केरल राज्य और अन्य बनाम केरल राज्य के माननीय राज्यपाल और अन्य
डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1264/2023

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