KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की अपने 3 साल के बेटे की निर्मम हत्या के मामले में उसे सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि अपराध स्थल पर रुकने को मानसिक अस्थिरता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट में आरोपी ने IPC की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि और सजा को चुनौती दी थी, जिसमें उसने दावा किया था कि अपराध के समय वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था और इस कारण उसे सजा से राहत मिलनी चाहिए।
जस्टिस राजा विजयाराघवन वी और जस्टिस जोबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अकेले अपराध स्थल पर रुकने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ था।
पीठ ने कहा, “अपराध स्थल पर बने रहने से यह प्रमाणित नहीं होता कि आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ था, खासकर जब बचाव पक्ष इस बात का कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल रहा कि घटना के समय आरोपी की मानसिक स्थिति असामान्य थी।”
KERALA HC: घटना का विवरण और मामला
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यह मामला वर्ष 2015 का है, जब आरोपी का अपनी पत्नी के साथ विवाद हुआ था। विवाद के बाद, उसने अपने बच्चों को लेकर पड़ोसी के घर गया और वहां अपने 3 वर्षीय बेटे राहुल की गला घोंटकर और नारियल के खुरचनी से मारकर हत्या कर दी। इस अपराध के बाद उसे IPC की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा के साथ-साथ 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। यदि जुर्माना अदा नहीं किया जाता तो उसे तीन साल का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना पड़ेगा।
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने दो गवाहों PW1 और PW2 को पेश किया, जो उस समय घर में मौजूद थे जब यह घटना घटी थी। इन दोनों गवाहों ने अदालत में लगातार गवाही दी कि उन्होंने इस हृदयविदारक घटना को अपने घर में जल रही मिट्टी के तेल के दीपक की रोशनी में देखा।
हाईकोर्ट ने इन गवाहों की उपस्थिति और घटना को देखने की उनकी क्षमता पर विश्वास जताया। पीठ ने यह भी माना कि दोनों गवाहों के बयान आरोपी की दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त हैं और इन गवाहों के बयानों में कोई विरोधाभास नहीं पाया गया।
प्रत्यक्षदर्शी गवाहों ने अदालत को बताया कि किस प्रकार आरोपी ने बच्चे को घर में घसीटा, उसके सिर पर नारियल की खुरचनी से गंभीर चोट मारी और फिर धोती से उसका गला घोंट दिया। अदालत ने गवाहों के इन बयानों पर भरोसा जताते हुए कहा कि उन्होंने घटना को स्पष्ट रूप से देखा और वर्णित किया, जो आरोपी की दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है।
KERALA HC: बचाव पक्ष का तर्क और अदालत का प्रतिवाद
आरोपी के वकील ने अदालत के समक्ष यह तर्क दिया कि अपराध के समय आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ था, और उसे IPC की धारा 84 के तहत आपराधिक दायित्व से छूट मिलनी चाहिए। धारा 84 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपराध करते समय मानसिक रूप से अस्वस्थ हो, तो उसे आपराधिक दायित्व से मुक्त रखा जा सकता है।
लेकिन अदालत ने इस दावे को सबूतों की कमी के कारण खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि बचाव पक्ष आरोपी की मानसिक अस्थिरता का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका, और इस प्रकार आरोपी के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने का दावा स्वीकार्य नहीं है।
बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी का अपराध के बाद घटना स्थल पर बने रहना यह संकेत देता है कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था। इस पर अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं होती, और ऐसा नहीं माना जा सकता कि अपराध के बाद हर आरोपी भागने का प्रयास करेगा।
अदालत ने कहा, “यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि हर अपराधी घटना के बाद अपराध स्थल से भाग जाएगा। हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया भिन्न होती है और यह किसी के मानसिक स्वास्थ्य का प्रमाण नहीं है।”
मुकदमे में PW1 और PW2 द्वारा घटना के दौरान बच्चे को बचाने का प्रयास न करने का प्रश्न भी उठाया गया। अदालत ने इस पर कहा कि एक सशस्त्र और हिंसक हमलावर का सामना करने की उनसे अपेक्षा करना अनुचित है। उन्होंने इस भयावह घटना को अपने सामने होते हुए देखा और गवाही देने में ईमानदारी दिखाई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनका हस्तक्षेप न करना उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा का निर्णय था।
KERALA HC: अभियोजन पक्ष का दृष्टिकोण और अदालत का निर्णय
हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों का अवलोकन किया और पाया कि आरोपी ने हत्या के इरादे से अपने बेटे पर हमले किए, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। गवाहों के प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्यों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने आरोपी के अपराध को प्रमाणित किया। अदालत ने यह भी कहा कि गवाहों के बयान स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं कि आरोपी ने हत्या के उद्देश्य से इस घटना को अंजाम दिया और इसके पीछे कोई असामान्य मानसिक स्थिति नहीं थी।
अंततः, केरल हाईकोर्ट ने सभी तर्कों को खारिज करते हुए आरोपी की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। पीठ ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि अपराध स्थल पर रुकने का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ था, विशेषकर तब जब बचाव पक्ष मानसिक अस्वस्थता का कोई प्रमाण प्रस्तुत करने में असफल रहा।