KERALA HC: केरल उच्च न्यायालय ने सोमवार को एडीएम नवीन बाबू की मौत के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने की याचिका खारिज कर दी। यह याचिका उनकी विधवा मंजूषा द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने चिंता व्यक्त की थी कि राज्य सरकार मुख्य आरोपी पीपी दिव्या को कानूनी नतीजों से बचाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, न्यायालय ने विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा मामले की जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी किए।
KERALA HC: सीबीआई जांच की मांग क्यों की गई?
मंजूषा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि माकपा के नेतृत्व वाली सरकार, दिव्या, जो कन्नूर जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई (एम) नेता हैं, को बचाने के लिए प्रयासरत है। दिव्या पर आरोप है कि उन्होंने नवीन बाबू पर भ्रष्टाचार के सार्वजनिक आरोप लगाए थे, जिसके कारण उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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मंजूषा ने यह भी दावा किया कि एसआईटी निष्पक्ष जांच करने में असफल रही है। उनकी याचिका में कहा गया कि घटनाओं की जांच जल्दबाजी में की गई और कई महत्वपूर्ण साक्ष्य संरक्षित नहीं किए गए। उन्होंने कन्नूर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में एक अनुरोध दायर किया था, जिसमें जिला कलेक्ट्रेट परिसर से सीसीटीवी फुटेज, फोन कॉल लॉग, लोकेशन डेटा और अन्य महत्वपूर्ण रिकॉर्ड्स को सुरक्षित करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति कौसर एडापागथ ने कहा कि इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन्होंने एसआईटी को तेजी और पूरी गंभीरता से जांच करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने जांच की निगरानी कन्नूर के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) द्वारा करने का आदेश दिया। न्यायालय ने एसआईटी को बाबू की विधवा मंजूषा को जांच की प्रगति से अवगत कराने का भी निर्देश दिया।
हत्या की संभावना की जांच के निर्देश
कोर्ट ने एसआईटी को यह निर्देश भी दिया कि वे इस संभावना की जांच करें कि नवीन बाबू की मौत आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या थी। बाबू का शव 15 अक्टूबर, 2024 को उनके आधिकारिक आवास पर फंदे से लटका पाया गया था। यह घटना उस दिन हुई, जब उन्हें दूसरे जिले में स्थानांतरित किए जाने के कारण एक विदाई समारोह आयोजित किया गया था। इस समारोह में, पीपी दिव्या ने बाबू पर सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
दिव्या के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। उन्हें कुछ समय के लिए न्यायिक हिरासत में भी रखा गया, लेकिन बाद में 8 नवंबर को सत्र न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी। बाबू के परिवार और समर्थकों ने दिव्या की जमानत का विरोध किया और निष्पक्ष जांच की मांग उठाई।
दिव्या के खिलाफ गवाही देने वाले गवाहों ने भी सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की। मंजूषा की याचिका में आरोप लगाया गया कि दिव्या के राजनीतिक प्रभाव के कारण गवाहों पर दबाव बनाया जा सकता है।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि एसआईटी द्वारा की जा रही जांच निष्पक्ष है और बिना ठोस सबूत के एसआईटी की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। सरकार ने यह भी कहा कि मामले को सीबीआई को सौंपने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एसआईटी अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।
मंजूषा के वकील ने अदालत को बताया कि दिव्या का राजनीतिक प्रभाव जांच प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि जमानत पर रिहा होने के बाद, दिव्या का पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्वागत किया गया, जो यह दर्शाता है कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।
यह भी तर्क दिया गया कि दिव्या ने भले ही पंचायत पद से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन उन्हें बाद में जिला पंचायत वित्त स्थायी समिति का स्थायी सदस्य नियुक्त किया गया, जो उनके प्रभाव को दर्शाता है।
न्यायालय का अंतिम निर्णय
न्यायालय ने सीबीआई जांच की मांग खारिज करते हुए एसआईटी को अपनी जांच तेजी से पूरी करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, एसआईटी को इस संभावना की जांच करने के लिए भी कहा गया कि बाबू की मौत हत्या का मामला हो सकता है।
इस मामले में अदालत ने एसआईटी को यह भी निर्देश दिया कि वे जांच की प्रगति पर डीआईजी को रिपोर्ट करें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो। मंजूषा और उनके वकीलों ने इस फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की।
एडीएम नवीन बाबू की मौत का मामला अब भी रहस्यमय बना हुआ है। हालांकि कोर्ट ने सीबीआई जांच की याचिका खारिज कर दी है, लेकिन एसआईटी को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ अपनी जांच पूरी करें। इस मामले का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह अभी अनिश्चित है, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देशों से उम्मीद है कि सच्चाई सामने आएगी।